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आगम विषय कोश-२
५९१
समिति
समिति-चारित्र के अनुकूल प्रवृत्ति। १. पांच समितियां २. ईर्यासमिति : प्राणियुक्तपथगमनविधि * ईर्यासमिति का विघ्न
द्र परिमंथ ३. भाषा-समिति : जानते हुए भी मौन * भाषा के प्रकार
द्र भाषा ० सावध भाषा वर्जन ० सत्य महाव्रत : भाषासमिति की सूक्ष्मता • आगाढ-परुषवचन-निषेध ० आगाढ वचन : असूचा-सूचा ० वस्तुसापेक्ष मृदु-अमृदु वचन, षड्विध अवचन • निषिद्ध भाषा : नभोदेव आदि ० अवधारिणी भाषा प्रयोगविधि : षोडश वचन ० आमंत्रणी भाषा-विवेक ० इह-परलोक-हितभाषी * एषणा समिति
द्र पिण्डैषणा * एषणा समिति का विघ्न
द्र परिमंथ ४. विचारकल्पिक
० विचारभूमि : उत्सर्गभूमि ५. उत्सर्ग-समिति : प्रासुक स्थण्डिल * जिनकल्पी की स्थण्डिलभूमि
द्र जिनकल्प ० उच्चार-प्रस्रवणभूमि प्रतिलेखन ० समाधिपात्र ० उत्सर्ग विधि : दिशा आदि * शवपरिष्ठापन विधि
द्र महास्थण्डिल ६. चंचल : गतिचंचलता आदि समिति नहीं १. पांच समितियां
इरिएसणभासाणं कामं तु सव्वकालं, पंचसु समितीसु होति जतियव्वं ।"
(दशानि ८९, ९०) मुनि को सदा ईर्या, भाषा, एषणा, आदाननिक्षेप और उत्सर्ग समिति-इन पांच समितियों से समित रहना चाहिये। ___ (समिति के आठ प्रकार हैं। समिति और गुप्ति का संयुक्त नाम है प्रवचनमाता। द्र श्रीआको १ समिति) * जघन्य श्रुत : प्रवचनमाता का ज्ञान
द्र स्थविरकल्प
* तीन गुप्तियां
द्र गुप्ति २. ईर्यासमिति : प्राणीयुक्तपथगमनविधि ____..पुरओ जुगमायं पेहमाणे, दह्रण तसे पाणे उद्धट्ट पायं रीएज्जा, साहट्ट"""उक्खिप्प""तिरिच्छं वा कट्ट पायं रीएज्जा। सति परक्कमे संजतामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा।
(आचूला ३/६) ___ मुनि आगे युगप्रमाण भूमि को देखता हुआ चले, मार्ग में त्रस प्राणियों को देखे तो पैर को ऊपर उठाकर चले, पैर को संकुचित कर, पैर के अग्रभाग को उत्क्षिप्त कर (एड़ी से) चले, पैर को तिरछा कर चले। दूसरा मार्ग हो तो यतनापूर्वक उससे जाये, सीधे मार्ग से न जाये। ३. भाषा-समिति : जानते हुए भी मौन
से भिक्खू"गामाणुगामं दूइज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया उवागच्छेज्जा।ते"एवं वदेज्जा-आउसंतो! समणा! अवियाई एत्तो पडिपहे पासह, तंजहा-मणुस्सं वा, गोणं वा, महिसं वा, पसुंवा, पक्खि वा"""से आइक्खह, दंसेह " ...' केवइए एत्तो गामस्स वा..."मग्गे?से आइक्खह, दंसेह।तं णो आइक्खेज्जा, णो दंसेज्जा, णो तेसिंतं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वाणो जाणंति वएज्जा"।
(आचूला ३/५४,५८) भिक्षु को ग्रामानुग्राम परिव्रजन करते हुए बीच में प्रातिपथिक मिलें । वे इस प्रकार कहें-आयुष्मन्! श्रमण! क्या इस प्रतिपथ में मनुष्य, बैल, महिष, पशु या पक्षी को देखा है? (देखा हो तो) बताओ, दिखाओ। यहां से ग्राम या नगर का कौन-सा मार्ग है? उसे बताओ, दिखाओ। वह उनको न बताए, न दिखाए, न उनकी उस परिज्ञा को स्वीकार करे, मौन रहता हुआ उपेक्षा करे, जानता हुआ भी 'जानता हूं' ऐसा न कहे। ० सावध भाषा वर्जन
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा इमाई वइ-आयाराई सोच्चा णिसम्म इमाइं अणायाराई अणायरियपुव्वाइं जाणेज्जा-जे कोहा वा.."माणा वा..."मायाए वा.."लोभा वा वायं
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