Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 730
________________ आगम विषय कोश-२ ६८३ परिशिष्ट ३ विचारभूमि-विहारभूमि - विचारभूमि-उत्सर्गभूमि। - विहारभूमि-स्वाध्यायभूमि। वियारे त्ति सण्णाभूमीओ। विहारे त्ति सज्झायभूमीए। (निचू २ पृ २११) विद्या-मन्त्र - विद्या-जो स्त्रीदेवता अधिष्ठित है अथवा पूर्व सेवा आदि की प्रक्रिया से साध्य है। (द्र मंत्र-विद्या) -मन्त्र-जो पुरुषदेवता अधिष्ठित है अथवा पठितसिद्ध है। विरस-अरस -विरस-पुराना धान्य। - अरस-हींग आदि से असंस्कृत। विरसः-पुराणौदनादिः । अरसस्य हिंग्वाद्यसंस्कृतस्य। (बृभा १२५६ की वृ) विवेचन-विशोधन - विवेचन-मुंह में, हाथ में या पात्र में जो अकल्पनीय भक्तपान है, उसका परिष्ठापन करना । एक बार परिष्ठापन या शुद्धि करना। - विशोधन-हाथ से पोंछना, जल से धोना-कल्प करना। बार-बार परिष्ठापन-शोधन करना। सव्वस्स छड्डण विगिंचणा उ मुह-हत्थ-पादछूढस्स। फुसण धुवणा विसोहण, सकिं व बहसो व णाणत्तं ॥ (बृभा ५८१३) व्यतिकीर्ण-विप्रकीर्ण - व्यतिकीर्ण-एक ओर से सम्मिलित सभी धान्य। •विप्रकीर्ण-सर्वतः संस्तुत धान्य। .वितिकिण्णे सम्मेलो, विपइण्णे संथडं जाणे॥ (बभा ३३०२) शय्या-संस्तारक - शय्या-शरीर के प्रमाणवाली। यथासंस्तृत पाट-बाजोट आदि। - संस्तारक-ढाई हाथ विस्तृत बिछौना। (द्र शय्या) शिल्प-नैपुण्य - शिल्प-बढ़ई आदि का कर्म। - नैपुण्य-लिपि, गणित आदि कलाओं का कौशल। शिल्पानि-रथकारकर्मप्रभृतीनि, नैपुण्यानि लिपिगणितादि- कलाकौशलानि । (बृभा ५१०९ की वृ) समान-वसमान • समान-वृद्धवासी, स्थिरवासी। • वसमान-मासकल्पविहारी। (द्र विहार) सहोढ-सविहोढ - सहोढ-सदृश। - सविहोढ-लज्जनीय। सहोढ त्ति सरिच्छो सविहोढ त्ति लज्जावणिज्जो। (निचू ३ पृ५०२) साधारण • साधारण सूत्र-जिसमें दो, तीन आदि बहुत पद हों। यथा-विकटसूत्र, उदकसूत्र, पिंडसूत्र (क २/४, ५, ८)। - प्रत्येकसूत्र-जिस सूत्र में एक पद हो। यथा-ज्योतिसूत्र प्रदीपसूत्र (क २/६, ७)। साधारणसूत्राणि नाम यत्रैकसूत्रे द्वयादिप्रभृतीनि बहूनि पदानि भवन्ति । प्रत्येकसूत्राणि तु चाकसूत्रे एकमेव पदम्। (बृभा ३४०२ की वृ) सारूपिक-सिद्धपुत्र - सारूपिक-जिसका शिर मुंडा हुआ होता है, जो श्वेत वस्त्र धारण करता है, जो कच्छा नहीं बांधता, जिसके पत्नी नहीं होती, जो भिक्षाजीवी होता है। - सिद्धपुत्र-जो मुंडित है अथवा चोटी रखता है, जो पत्नी सहित होता है। मुण्डितशिराः शुक्लवास:परिधायी कच्छामबध्नानोऽभार्यको भिक्षां हिण्डमानः सारूपिक उच्यते । यस्तु मुण्डः सशिखाको वा सभार्यकः स सिद्धपुत्रकः। (बृभा ५४४९ की वृ) सुरा-सौवीर - सुरा-ब्रीहि आदि के आटे से निष्पन्न मद्य। - सौवीर-द्राक्षा, खजूर आदि द्रव्यों से निष्पन्न मद्य। ब्रीह्यादिसम्बन्धिना पिष्टेन यद् विकटं भवति सा सुरा। यत्तु पिष्टवर्जितं द्राक्षाखर्जूरादिभिर्द्रव्यैर्निष्पाद्यते तद् मद्यं सौवीरकविकटम्। (बृभा ३४०६ की वृ) सूचा-असूचा वचन • सूचा वचन-स्पष्ट रूप से पर-दोषसूचक वचन। - असूचा वचन-अपने दोष बताने के बहाने दूसरों के दोष प्रकट करने वाले वचन। (द्र समिति) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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