Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 728
________________ आगम विषय कोश-२ ६८१ परिशिष्ट३ जल्ल-मल निरालम्ब-अप्रतिष्ठित • जल्ल-स्वेदजनित मैल।। - निरालंब-इह-पारलौकिक आशंसा से मुक्त। - मल-मैल, जो हाथ आदि के घर्षण से दूर हो जाए। - अप्रतिष्ठित-इह-पारलौकिक प्रतिबद्धता से मुक्त। अशरीरी। जल्लो तु होति कमढं, मलो तु हत्थादि घट्टितो सडति।। 'निरालम्बनः' ऐहिकामुष्मिकाशंसारहितः 'अप्रतिष्ठितः' न (निभा १५२२) क्वचित प्रतिबद्धोऽशरीरी वा। (आचूला प ४३१) जाति-कुल नृत्य-नाट्य • जाति-मातृपक्षीय वंश। - नृत्य-गीतविरहित नर्तन। • कुल-पैतृक वंश । इक्ष्वाकु आदि कुल।। - नाट्य-गीतयुक्त अभिनय। मातिपक्खविसुद्धा इब्भजाई । पियपक्खविसुद्धं इक्खागुमादियं । नर्से होइ अगीयं, गीयजुयं नाडयं तु नायव्वं। (बृभा २४५३) कुलं। (निचू ३ पृ २९) पणि-विपणि डाग-शाक • पणि-बृहत्तर दुकान। • डाग-डाल (शाखा) प्रधान शाक। • विपणि-सीमित वस्तुओं वाली दुकान। - शाक-पत्रप्रधान शाक। ये बृहत्तरा आपणास्ते पणय इत्युच्यन्ते, ये तु दरिद्रापणास्ते 'डाग' त्ति डालप्रधानं शाकं पत्रप्रधानं तु शाकमेव। विपणयः। (बृभा ३२७८ की वृ) (आचूलावृ प ४११) पथ-मार्ग दंड-विदंड • पथ-जिसमें ग्राम, नगर, पल्ली आदि न हों, वह रास्ता। -दंड-तीन हाथ लम्बा। - मार्ग-जिसमें एक ग्राम के बाद दूसरे ग्राम आदि की -विदंड-दो हाथ लम्बा। श्रृंखला हो, वह रास्ता। तिण्णि उ हत्थे डंडो, दोण्णि उ हत्थे विदंडओ होति। पंथम्मि नत्थि किंची, मग्गो सग्गामो....॥ (बृभा ३०४१) (निभा ७००) पुञ्ज-राशि दमक-मेंठ - पुञ्ज-धान्य का वृत्ताकार ढेर। • दमक-अश्व आदि को सर्वप्रथम प्रशिक्षित करने वाला। - राशि-वह ढेर, जो किंचित् लम्बा हो। - मेंठ-अश्व या हाथी को योग्य आसनों में व्याप्त करने पुंजो य होति वट्टो, सो चेव ईसिंआयतो रासी। (बृभा ३३११) वाला। पुष्य-कषाय आसाण य हत्थीण य, दमगाजे पढमताए विणियंति। • पुष्प-स्वच्छ और मनोज्ञ वर्ण-गंध-रस-स्पर्श युक्त जल। परियट्टमेंठ पच्छा, ............... || (निभा २६०१) - कषाय-दुर्गंधित, अरस और कलुषित जल। दर्पिका-कल्पिका जं गंधरसोवेतं अच्छं व दवं तु तं भवे पुष्फं। • दर्पिका-राग-द्वेष के वशीभूत होकर की जाने वाली प्रतिसेवना। जं दुब्भिगंधमरसं, कलुसं वा तं भवे कसायं॥ • कल्पिका-शुद्ध नीति से आवश्यकतावश की जाने वाली (निभा ११०४) प्रतिसेवना। (द्र प्रतिसेवना) पूत-रुधिर दिशा-अनुदिशा • पूत-पक्व शोणित। • दिशा-आचार्य-उपाध्याय-प्रवर्तिनी। •रुधिर-स्वभावस्थ शोणित। • अनुदिशा-आचार्य-उपाध्यायपद से द्वितीय स्थानवर्ती। पयं वा पक्कं सोणियं रुहिरं सभावत्थं सोणियं भण्णति। (द्र दिग्बंध) (निचू २ पृ २१५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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