Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 727
________________ परिशिष्ट ३ ६८० आगम विषय कोश-२ उस्सग्गो पइन्नकहा य, अववातो होति णिच्छयकधा तु। खरपरुष-निष्ठुर वचन ... ववहारणया, पइण्णसुद्धा य णिच्छइगा॥ (निभा २१३१) .खरपरुष-उच्च स्वर से रोषपूर्वक जो कहा जाता है। हिंसक उद्यानी-अवयानी और मर्मवेधी वचन । आक्रोशयुक्त और उपचार रहित वचन। - उद्यानी-प्रतिस्रोतगामिनी नौका। • निष्ठुरवचन-असभ्य वचन। - अवयानी-अनुस्रोतगामिनी नौका। उच्चं सरोसभणियं, हिंसगमम्मवयणं खरं तं तू। नौः या नद्याः प्रतिस्रोतोगामिनी सा उद्यानी, अनुस्रोतोगामिनी । अक्कोस णिरुवचारिं, तमसब्भं णिठुरं होती ॥ (बृभा ५७५१) अवयानी। (व्यभा ११० की वृ) खिंसा-उपालंभ औदारिक-हिरण्य -खिंसा-निष्ठुर-स्नेहहीन वचन। - औदारिक-घटित रूप, स्वर्णाभरण आदि। - उपालंभ-मृदु-स्निग्ध वचन। - हिरण्य-स्वर्ण आदि का अघटित रूप। खिंसा तु णिप्पिवासा, सपिवासो हो उवालंभो ॥(निभा २६३७) घडियरूवं द्रविणं ओरालियं भण्णति, अघडियरूवं पुण हिरण्णं गंजशाला-उपस्करणशाला भण्णति। (निचू १ पृ १३१) - गंजशाला-जहां धान्य का मर्दन किया जाता है। औषध-भैषज - उपस्करणशाला-रसोईघर। • औषध-हरीतकी आदि। जत्थ धण्णं दमिज्जति सा गंजसाला, उवक्खडणसाला -भैषज-पेया आदि अथवा त्रिफला आदि। महाणसो। (निचू २ पृ ४५५) औषधानि हरीतक्यादीनि। भैषजानि पेयादीनि त्रिफलादीनि गणित-विभाजित वा। (बृभा १४८६ की वृ) • गणित-गिने हुए, पांच व्यक्ति, छह व्यक्ति आदि। कर्म-शिल्प • विभाजित–'अमुक-अमुक' नामोल्लेखपूर्वक निर्धारित। -कर्म-आचार्य के उपदेश के बिना प्राप्त कला। पंच इति गणिया। अमुगनामेहिं विभातिया। (निचू ३ पृ १५) - शिल्प-आचार्य के उपदेश से प्राप्त कला। गिरि-मरु विणा आयरिओवदेसेण जं कज्जति तणहारगादि तं कम्मं इतरं - गिरि-नीचे का वह प्रपात स्थान, जो पर्वत पर आरूढ पुण जं आयरिओवदेसेण कज्जति तं सिप्पं । (निचू ३ १ ४१२) व्यक्ति को दिखाई देता है। कृतयोगी-गीतार्थ - मरु-जहां से प्रपात दिखाई नहीं देता। - कृतयोगी-श्रुतार्थ के प्रत्युच्चारण में असमर्थ। जत्थ पवातो दीसति, सो तु गिरी मरु अदिस्समाणो तु। - गीतार्थ-श्रृतार्थ के प्रत्युच्चारण में समर्थ। (द्र गीतार्थ) (निभा ३८०२) कोष्ठागार-भाण्डागार ग्लान-बहुरोगी • कोष्ठागार-अन्नभण्डार। - ग्लान-तत्काल उत्पन्न रोग वाला। - भाण्डागार-हिरण्य-सुवर्ण-भंडार। - बहुरोगी-पुराना रोगी अथवा अनेक रोगों से अभिभूत। धण्णभायणं कोट्रागारो, भांडागारो हिरण्ण-सुवण्णभायणं। ग्लानः अधुनोत्पन्नरोगः । बहुरोगी नाम चिरकालं बहुभिर्वा (निचू २ पृ ४५५) रोगैरभिभूतः । (बृभा ५३९९ की वृ) क्षण-उत्सव घृष्ट-मृष्ट - क्षण-एकदिवसीय पर्व। • घृष्ट-दूध आदि के झाग से जंघाओं को मसलना। • उत्सव-बहुदिवसीय पर्व। - मृष्ट-केशों को अथवा शरीर को तेल से चुपड़ना। क्षण:-एकदैवसिकः, उत्सवः-बहुदैवसिकः। घट्ठा फेणादिणा जंघाओ, तेल्लेण केसे सरीरं वा मटेति । (बृभा ३३५५ की वृ) (निचू ४ पृ७७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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