Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 651
________________ सामाचारी ६०४ आगम विषय कोश-२ समाधि के दो प्रकार हैं १२. अनुत्पन्न नए कलहों को उत्पन्न करने वाला। १. द्रव्य समाधि-जिस द्रव्य से समाधि होती है, वह द्रव्य अथवा १३. क्षामित और उपशान्त पुराने कलहों की उदीरणा करने वाला। एक या अनेक द्रव्यों का परस्पर अविरोध अथवा तुलारोपित द्रव्य १४. अकाल में स्वाध्याय करने वाला। के साथ जो द्रव्य आरोपित होकर तुला के दोनों पलडों को सम १५. सचित्त रज से लिप्त हाथ से भिक्षा लेने वाला और सचित्त रज रखता है, वह द्रव्य द्रव्यसमाधि है। से लिप्त पैरों से अचित्त भूमि में संक्रमण करने वाला। २. भावसमाधि-जीव के प्रशस्त योगों से होने वाली सुसमाहित १६. शब्दकर-बकवास करने वाला। अवस्था भावसमाधि है। १७. झञ्झाकर-गण में भेद डालने वाला या गण के मन को ४. बीस असमाधिस्थान पीड़ित करने वाली भाषा बोलने वाला। "वीसं असमाहिट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहा-१. दव १८. कलह करने वाला। दवचारी यावि भवति। २. अप्पमज्जियचारी"। ३. दुप्प १९. सूर्योदय से सूर्यास्त तक बार-बार भोजन करने वाला। मज्जियचारी" । ४. अतिरित्तसेज्जासणिए। ५. रातिणिय- २०. एषणा समिति का पालन नहीं करने वाला। परिभासी।६. थेरोवघातिए। ७. भूतोवघातिए।८. संजलणे। . द्रुतगति से चलना असमाधि स्थान ९. कोहणे।१०. पिट्ठिमंसिए यावि भवइ। ११. अभिक्खणं- दवदवचारी निरवेक्खो वच्चंतो अत्ताणं परं च इह अभिक्खणं ओधारित्ता। १२. णवाइं अधिकरणाई अणुप्पण्णाई परत्र च असमाधीए जोएति।अत्ताणं ताव इह भवे आतविराहणं उप्पाइत्ता भवइ। १३. पोराणाई अधिकरणाई खामित पावति आवडण-पडणादिसु। परलोगे सत्तवहए पावं कम्म विओसविताई उदीरित्ता भवइ। १४. अकाले सज्झाय बंधइ। परं संघट्टण-परितावण-उद्दवण-करेंतो असमाहीए कारए"।१५. ससरक्खपाणिपादे।१६. सद्दकरे। १७. झंझकरे। १८. कलहकरे। १९. सूरप्पमाणभोई। २०. एसणाए असमिते जोएति। (दशा १/३ की चू) यावि भवइ।" (दशा १/३) द्रुतचारी मुनि निरपेक्ष होकर चलता है। वह स्वयं को और (प्रस्तुत संदर्भ में मुनि के जीवनव्यवहार में संभावित दूसरे मुनि को इहलोक-परलोक संबंधी असमाधि से संयुक्त कारणों के आधार पर असमाधिस्थानों की सूची है। कारण में करता है। शीघ्रगामिता के कारण वह गिर जाता है तो उससे आत्म कर्ता का उपचार कर असमाधि करने वाले को असमाधिस्थान (शरीर) विराधना होती है। यह इहलोक संबंधी असमाधि है। कहा गया है।) असमाधि के बीस स्थान (कारण) हैं गिरने से अन्य प्राणियों का भी वध होता है। इससे कर्म बंधते हैं। १. शीघ्रगति से चलने वाला। यह परलोक संबंधी असमाधि है। दूसरों का संघट्टन-परितापन२. प्रमार्जन किए बिना चलने वाला। अपद्रावण करता हुआ वह उन्हें असमाधि से योजित करता है। ३. अविधि से प्रमार्जन कर चलने वाला। ५. असमाधिस्थान बीस ही क्यों? ४. प्रमाण से अतिरिक्त शय्या, आसन आदि रखने वाला। वीसं तु णवरि णेम्मं, अइरेगाइं तु तेहिं सरिसाइं। ५. रत्नाधिक साधुओं का पराभव करने वाला। नायव्वा एएसु य, अन्नेसु य एवमादीसु॥ ६. स्थविरों का उपघात करने वाला। ___."म्मं आधारमानं"न केवलं दवदवचारिस्स ७. प्राणियों का उपघात करने वाला। असमाही दवदवभासिस्सावि, दवदवपडिले हिस्सावि, ८. प्रतिक्षण क्रोध करने वाला। दवदवभोइस्सावि""जत्तिया असंजमट्ठाणा, तत्तिया असमाधि९. अत्यन्त क्रुद्ध होने वाला। ट्ठाणावि।तेय असंखेज्जा।अहवा मिच्छत्त-अविरति-अन्नाणा १०. परोक्ष में अवर्णवाद बोलने वाला। असमाहिट्ठाणा। (दशानि ११ चू) ११. बार-बार निश्चयकारी भाषा बोलने वाला। असमाधि के ये बीस स्थान केवल निदर्शनमात्र हैं। इनके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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