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आगम विषय कोश-२
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स्वप्न
७. अकुरड़ी पर कमल उगा हुआ देखा। अर्थ-ब्राह्मण आदि चारों ० स्वप्नदर्शन और मोक्ष-भगवती में चौदह ऐसे स्वप्नों का उल्लेख वर्गों में जो धर्म फैला हुआ है, वह सिमट कर प्राय: वैश्यों के हाथ है, जिन्हें देखने वाला उसी भव में अथवा दूसरे भव में सिद्धमें चला जाएगा। बहुत थोड़े लोग श्रमणसंघ की सुरक्षा करने वाले बुद्ध-मुक्त होता है। यथातथा बहुत लोग इसके प्रत्यनीक, अवर्णवादी और अपयशकारक १. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न में एक महान् अश्वपंक्ति, गजपंक्ति, होंगे, व्रत-आचार की परम्परा से बाह्य होंगे।
नरपंक्ति, किन्नरपंक्ति, किंपुरुषपंक्ति, महोरगपंक्ति, गंधर्वपंक्ति ८. राजा ने जुगनू को प्रकाश करते हुए देखा।
अथवा वृषभपंक्ति को देखता हुआ देखता है, उस पर आरोहण अर्थ-श्रमणगण आर्यमार्ग को छोड, केवल क्रिया का फटाटोप करता हुआ आरोहण करता है, अपने आपको आरूढ मानता/ दिखा वैश्यवर्ग में उद्योत करेगा, निर्ग्रन्थों का सत्कार कम हो जानता है, तत्क्षण ही जाग जाता है, वह उसी जन्म में सिद्ध होता जाएगा और बहुत लोग मिथ्यात्वरागी हो जाएंगे।
है यावत् सब दुःखों का अंत करता है। ९. शुष्क सरोवर को देखा, केवल दक्षिण दिशा में थोड़ा जल भरा २. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न में पूर्व से पश्चिम तक आयत, समुद्र के है और वह भी स्वच्छ नहीं है।
दोनों छोरों को छूती हुई एक बड़ी रस्सी को देखता हुआ देखता है, अर्थ-जिस-जिस भूमि में तीर्थंकरों के पांच कल्याण (च्यवन, उसे समेटता हुआ समेटता है, मैंने समेट ली है-ऐसा मानता है, जन्म, दीक्षा, कैवल्य और निर्वाण) हुए थे, वहां-वहां धर्म की तत्क्षण ही जाग जाता है, वह उसी भव में मुक्त होता है। हानि होगी। दक्षिण-पश्चिम में थोड़ा धर्म रहेगा और वह भी ३. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न में पूर्व से पश्चिम तक प्रसृत, दोनों ओर अनेक मतवादों और पारस्परिक संघर्षों से पूर्ण होगा।
से लोकांत से स्पृष्ट एक दीर्घ रज्जु को देखता है, उसे छिन्न करता १०. कुत्ते को स्वर्णथाल में खीर खाते हुए देखा। .
है, अपने द्वारा छिन्न जानता है, तत्काल ही जागता है, वह उसी अर्थ-उत्तम कुलों की लक्ष्मी नीच कुलों में चली जाएगी। उत्तम भव में मुक्त हो जाता है। व्यक्ति अपने कुलक्रममार्ग को छोड़ देंगे।
४. स्त्री या पुरुष स्वप्न में कृष्ण, नील, रक्त, पीत अथवा श्वेत वर्ण ११. बन्दर को हाथी पर आरूढ़ देखा।
वाले सूत्र को देखता है, विमुग्ध होता है, तत्क्षण जाग जाता है, अर्थ-आचारहीम व्यक्तियों को उच्च पद मिलेंगे।
वह उसी भव में मुक्त हो जाता है। १२. सागर को मर्यादा तोड़ते हुए देखा।
५. स्वप्न में लोहे, तांबे, रांगे या शीशे की महान् राशि पर स्वयं को अर्थ-उत्तम लोग मर्यादाहीन होकर कार्य करेंगे।
आरूढ देखने वाला दूसरे भव में मुक्त हो जाता है। १३. एक विशाल रथ में बछड़े जुते हुए देखे।
६. स्वप्न में रजत, स्वर्ण, रत्न और वज्र की राशि पर अपने को अर्थ-बालक वैराग्यपरायण होंगे। वृद्ध चारित्र-ग्रहण नहीं करेंगे। आरूढ देखने वाला उसी भव में मुक्त हो जाता है। जो बाल दीक्षित होंगे, वे लज्जावान् और गुरुकुलवास को नहीं ७. जो स्वप्न में एक महान् तृणराशि, काष्ठ, पत्र, छाल, तुष, भूसे, छोड़ने वाले होंगे।
गोबर अथवा कचवर के विपुल ढेर को बिखेर देता है, वह उसी १४. महामूल्यवान् रत्न को तेजहीन देखा। अर्थ-भरत-ऐरवत भव में मुक्त हो जाता है। क्षेत्र के श्रमण चारित्र-तेज से विहीन होंगे। वे कलहकारी और ८. स्वप्न में एक महान् शरस्तंभ, वीरणस्तंभ, वंशीमूलस्तंभ या अविनीत होंगे, शुद्धमार्गप्ररूपकों से मात्सर्य रखेंगे।
वल्लीमूलस्तंभ को देखकर उसे उन्मूलित कर देने वाला उसी भव १५. राजकुमार को वृषभारूढ़ देखा।
में मुक्त हो जाता है। अर्थ-क्षत्रिय राज्यभ्रष्ट होंगे, म्लेच्छ राज्य करेंगे।
९. स्वप्न में क्षीर, दधि, घृत या मधु के महान् कुंभ को देखकर १६. दो काले हाथियों को युद्ध करते देखा।
उसे ऊपर उठाने वाला उसी भव में मुक्त होता है। अर्थ–पुत्र पिता की और शिष्य गुरुजनों की सेवा नहीं करेंगे। १०. सुरा, सौवीर, तैल या वसा के बड़े घड़े को देखकर उसका समय पर वर्षा नहीं होगी।-व्यवहारचूलिका
भेदन करने वाला दूसरे भव में मुक्त हो जाता है।
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