Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 716
________________ आगम विषय कोश-२ ६६९ परिशिष्ट १ विषय अर्हत्-वाणी-श्रवण का लाभ सूत्र के अर्थग्रहण की उपयोगिता । प्रतीच्छक शिष्य की परीक्षा स्मारणा आपात कटु एकत्व भावना पात्र का गुण पोषण का उद्देश्य पुरःकर्मकृत कर्मबंध अभ्यर्थना की आकांक्षा से हानि अपहरण हेतु प्रलोभन कथा-संकेत वणिक् की वृद्ध दासी बैल। शालिकरण दृष्टांत वधू दृष्टांत राजा की नेत्रचिकित्सा पुष्पचूल और पुष्पचूला साधु और ब्राह्मण उरभ्र और अतिथि उडंकऋषि और ब्रह्महत्या राजा और अभिमानी मरुक भृगुकच्छ में कपटश्राद्ध सन्दर्भ १२०५ १२१९ १२५८-१२६१ १२७७वृ १३४७-१३५२ वृ १७१४ वृ १८१२ वृ १८५६ वृ १८८३, १८८४ वृ २०५४ २१६६ वृ २२९१-२२९३ २४८७, २४८९ वृ २५०५-२५०८, २५४५-२५४७ बृभा भाग-३ दोषायतन वर्जन आवश्यक आम्रप्रिय राजपुत्र निमित्त का परिहार मुरुंड राजा का दूत आज्ञा का महत्त्व चन्द्रगुप्त राजा कामातुर देवियां, स्त्रियां आदि व्यंतर देवियां और धूर्त । रयणा देवी। अर्हन्नक-मर्कटी। सिंही-पुरुष । श्वान-मानुषी योनिप्राभृत : विद्या से अश्व निर्माण सिद्धसेनाचार्य कलह की उपेक्षा से विनाश गज और सरट कषाय से चारित्रनाश द्रमक और कनकरस अभियोग का प्रयोग संन्यासी और पणिहारी रात्री में भिक्षाटन सदोष कालोदाई भिक्षु कृतकरण का साहस तीन सिंह और साधु मिथ्या अहंकार सर्पशीर्ष और पूंछ बोली से यथार्थ बोध खसद्रुम आख्यानक अयोग्य को उपदेश वानर और शकुनि चिकित्सा का अपप्रयोग अनधीत वैद्यपुत्र अनार्य क्षेत्र में विहरण के दोष आचार्य स्कंदक श्रमण-संघ के प्रभावक राजा सम्प्रति और आर्यमहागिरि २६८१ की वृ २७०६, २७०७ वृ २७१३-२७१५ वृ २८१९ वृ २८४१, २८४२ वृ २९६४ वृ ३२४६-३२५६वृ ३२५१ वृ ३२५२ वृ ३२५९, ३२६० ३२७१-३२७४ वृ ३२७५-३२८९ वृ सुहस्ती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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