Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 724
________________ आगम विषय कोश - २ प्रथमसमवसरण - - वर्षाकाल । पढमसमोसरणं वरिसाकालो भण्णति । (निचू १ पृ ११७) प्राभृतिका - देवों द्वारा कृत समवसरण - रचना, महाप्रातिहार्य आदि से पूजा । 'प्राभृतिकां' सुरविरचितसमवसरणमहाप्रातिहार्यादिपूजालक्षणाम्'''''। (बृभा ४९७६ की वृ) बकुशत्व - शरीर और उपकरणों की विभूषा करना । कुत्वं शरीरोपकरणविभूषाकरणम्। (व्यभा १५८९ की वृ) बिलधर्म - एक ही वसति - साधारण सभा आदि में साधु और गृहस्थ का एकत्र अवस्थान । 'बिलधर्मो नाम' एकस्यामेव वसतौ गृहस्थैः समं संवत्कत्रावस्थानम् ।···· साधारणे सभादौ पिण्डीभूय साधवो गृहस्थाश्च यदेकत्रावतिष्ठन्ते स बिलधर्मः । (बृभा ३१५८-३१६१ की वृ) भूतार्थ- संयम को सिद्ध करने वाली विचार-विहारसंस्तार - भिक्षा आदि क्रियाएं । भूत्थो णाम विआर-विहार- संथार- भिक्खादिसंजमसाहिका किरिया । (निचू १ पृ ४४) भृगु — नदीतट आदि । नदितडमादी उ भिगू ...॥ ( निभा ३८०२) मातृग्राम - स्त्री । स्त्रीवर्ग । इत्थी माउग्गामो भण्णति । (निचू २ पृ ३७१) मातृग्रामो नाम समयपरिभाषया स्त्रीवर्गः । (बृभा २०९६ की वृ) मैथुनिका - मामा की पुत्री । मैथुनिका - मातुलदुहिता । (बृभा ४९३८की वृ) मोहोपासक - कुप्रवचन व कुधर्म का उपासक । कुप्पवयणं कुधम्मं, उवासए मोहुवासको सो उ ॥ ६७७ (दशानि ३६ ) म्लेच्छ-उ - अव्यक्त और अस्फुट बोलने वाला । मिलक्खू जे अव्वत्तं भासंति । (निचू ४ पृ १२४) यथाच्छन्द - उत्सूत्र का प्रज्ञापक, स्वच्छंदचारी । (द्र श्रमण ) यथालन्द - अप्रमाद की साधना का प्रयोग । (द्र यथालन्दकल्प) Jain Education International परिशिष्ट २ यावन्तिका 'जितने भिक्षाचर आयेंगे, उतनों को भिक्षा दी जाएगी' – इस अभिप्राय से बना भोजन । यावन्तो भिक्षाचरा आगमिष्यन्ति तावतां दातव्यम् इत्यभिप्रायेण यस्यां दीयते सा यावन्तिका । (बृभा ३१८४ की वृ) रचितभोजी - कांस्यपात्र, पट आदि में देयबुद्धि से पृथक् रूप से स्थापित भोजन को करने वाला। (द्र पिण्डैषणा) लन्द — काल । तरुण स्त्री का गीला हाथ जितने समय में सूखता है, वह जघन्य लंद है। पूर्वकोटि उत्कृष्ट लंद है। दमिति कालस्तस्य व्याख्या - तरुणित्थीए उदउल्लो करो जावतिएण काण सुक्कति जहण्णो लंदकालो । उक्कोसेण पुव्वकोडी । (निचू ४ पृ ५१ ) लवसत्तम - वे देव, जिनकी आयु सात लव अधिक होती तो वे उसी भव में मुक्त हो जाते। (द्र देव ) लाढ - साधु । 'लाढे' त्ति साहुणो अक्खा। (निचू ४ पृ १२५) वयवान् - तीसवर्षीय युवा । तीसतिवरिसो वयवं । (निचू ३ पृ २९) वस्तु — अर्थाधिकार विशेष । वस्तूनि नाम अर्थाधिकारविषेशाः । (व्यभा ४३५ वाताहत - आगंतुक शैक्ष वायाहडो 'वाताहृतो नाम' आगन्तुक शैक्ष: । (बृभा ४६५८ वृ) विचार — प्रस्रवण । 'विचार: ' प्रश्रवणम्। (बृभा २०२५ की वृ) विचारभूमि - उत्सर्गभूमि । ( द्र समिति) विह — मार्ग | - की For Private & Personal Use Only वृ) विहं णाम अद्धाणं । (निचू ४ पृ १०५ ) वृषभ - अविकारी गीतार्थ । गच्छ की अनुकूल-प्रतिकूल स्थिति में भारवहन में समर्थ । गीतार्था अविकारिणो वृषभा उच्यन्ते । (बृभा ५१८७ की वृ) गच्छस्स सुभासुभकारणेसु भारुव्वहणसमत्था वसभा भण्णंति । (निचू ३ पृ १०७) वृषभग्राम – जहां ऋतुबद्ध (शेष) काल में पन्द्रह और - www.jainelibrary.org

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