Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 718
________________ आगम विषय कोश-२ ६७१ परिशिष्ट १ विषय कुशलता से द्रव्य रक्षा श्रम से स्व-परहित ऋजुजड़-ऋजुप्राज्ञ पारिहारिक-अनुपारिहारिक नौका-संतरण संबंधी दोष सन्दर्भ ५२९२, ५२९३ वृ ५२९७-५२९९ ५३५२ ५६०७ ५६२५-५६२८ प्रायश्चित्त के नानात्व के कारण सदृश अपराध, विसदृश दण्ड । अतिरिक्त भोजन से हानि महाव्रतों की रक्षा लज्जा से संरक्षण दूसरे के मोकपान से हानि ५७६१ वृ ५७७५, ५७८० ५८३१ वृ ५८५७,५८५८ ५९४१, ५९४२ ५९८७, ५९८८ खिंसनाकारी अग्राह्य परुष वचन परुषवचन और उपशांति दोष का अपलाप, प्रायश्चित्त की वृद्धि अदत्तादान संयमी की स्खलना भय और राग से क्षिप्तचित्तता अतिहर्ष से पागलपन यक्षावेश के हेतु : वैर और राग भाषा कौकुचिक शरीर कौकुचिक मुखरता प्रतिक्रमण का महत्त्व कथा-संकेत अगारी दृष्टांत बदरीफल दृष्टांत नटप्रेक्षणक दृष्टांत गौ दृष्टांत मुरुड राजा और साधु । सुदाढ देव और भगवान महावीर साहुकार की चार पत्नियां तीन राजकुमार अमात्य और बटुक रत्नसहित वणिक् स्नुषा दृष्टांत देवी दृष्टांत बृभा भाग-६ यथाघोषश्रुतग्राहक मुनि व्याध की दो पुत्रियां चंडरुद्राचार्य और इभ्यसुत शैक्ष दर्दुर घातक मोदकग्रहण परिव्राजिका रोहा और अजापालक सोमिल बटक। राजक्षल्लिका राजा सातवाहन सपत्नी। भृतक। दो भाई श्रेष्ठी दृष्टांत मृत-सुप्त दृष्टांत राजा और शीघ्रगामी पुरुष तीन प्रकार के वैद्य और राजपुत्र व्यभा (व्यवहार भाष्य-वृत्ति) ब्राह्मण कुंभकार का मिच्छा मि दुक्कडं दो गीतार्थ मुनि ६०९१-६०९८ ६१००, ६१०१ ६१०२-६१०४ ६१३५-६१४१ ६१४६-६१४८ ६१६९,६१७० ६१९६-६२०० ६२४३-६२४९ ६२५८-६२६१ ६३२५ ६३२६ ६३२८ ६४२७-६४३० श्रे व्यवहर्त्तव्य और प्रायश्चित्त अव्यवहार्य प्रायश्चित्त निर्णायक की न्यायनिष्ठा १८वृ २५ वृ २९, ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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