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परिशिष्ट १
विषय
ज्ञानाचार : काल, विनय आदि
दर्शनाचार : अमूढदृष्टि आदि मायायुक्त आलोचना
विषम प्रतिसेवना, तुल्य शोधि अनवस्था प्रसंग निवारण जानबूझकर बहुदोष सेवन अनेक अपराधों का एक दंड
दोषों का एकत्व कब ? प्रायश्चित्त दानविधि प्रायश्चित्त वहन और वैयावृत्त्य आलोचना की गंभीरता छोटी त्रुटि की उपेक्षा से हानि शुद्धत - परिहारतप
अनुशिष्टि-उपालंभ-उपग्रह
निषद्याकरण का महत्त्व योनिप्राभृतग्रंथ : जीवोत्पादन शल्योद्धरण से भवसंतरण अंगुलिनिर्देश (रोकटोक ) का मूल्य शास्त्रार्थ (वाद) किसके साथ ?
बल भावना
चिकित्सा : अक्षिप्रत्यारोपण त्रिया (स्त्री) हठ अल्पश्रुत: प्रतिमा के अनर्ह
बड़ा अपराध : भय नर नारी के वशवर्ती गीतार्थनिश्रित विहार क्यों ?
मोक्ष का व्याघात : शल्य प्रायश्चित्त- वहन
प्रतिशोध
प्रोत्साहन - प्रशंसा
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कथा - संकेत
तक्रकुट । अभय, राजा और हरिकेश । ब्राह्मण और भील । अशकटपिता। नापित सुलसा । श्रेणिक
अश्व । कुंचिक तापस | योद्धा । मालाकार । मेघ
पांच वणिक् और पन्द्रह खर राजा और तीन रक्षक
गंजा पनवाड़ी और सैनिक पुत्र रथकारभार्या। चोर
मूलदेव
ब्राह्मण। वणिक् । निधि राजसेवक
दंतपुरवासी दृढ़मित्र
तृणक । सर्षप। शकट । वस्त्र लघु-वृहत्-मंत्री
सुभद्रा । मृगावती । आचार्य
निः श्मश्रु राजा और नापित महिष दृष्टांत
दो व्याध कन्यान्तः पुर
चाणक्य और नलदाम
खंडकर्ण और सहस्रयोधी
शैक्ष और देव
पटरानी : रणभूमि में
बहुपुत्र - विकुर्वणा
संग्रामद्विक
राजा और पुरोहित तीन गोरक्षक
सर्पदंश
हरिण की बुद्धिमत्ता
राजा का कटु व्यवहार पराजित योद्धा विजयी
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सन्दर्भ
६३ वृ
आगम विषय कोश - २
६४ वृ
३२१, ३२४ वृ
३२९, ३३०
३३२-३३४
३३७, ३३८
४४८-४५०
४५२ वृ
४५४-४५८
४८१, ४८२
५१७, ५१९ वृ
५५५ वृ
५५६ वृ
५६०, ५६१ वृ
५८६ वृ
६४६ वृ
६६२-६६४
६६७-६६९
७१६ वृ
७८४ वृ
७९५, ७९६
८१२
८२०
८२७-८३०
९३२-९३५
९९९, १०००
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