Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 721
________________ परिशिष्ट १ ६७४ आगम विषय कोश-२ सन्दर्भ २३८२-२३८५ २४०३-२४०६ २४५३, २४५४ २५४९ २५५२-२५५७ २५६०-२५६४ २६१०-२६१३ २६३७,२६३८ २६४१, २६४२ २६४५-२६५७ २६५३-२६५९ वृ विषय कथा-संकेत साधु-साध्वी : परस्पर वैयावृत्त्य कपट भिक्षुउपासक चिकित्सा युद्ध और वैद्य कपटपूर्ण व्यवहार सूपकार और बकरी आचार्य : संज्ञाभूमि में गमनविधि इन्द्रदत्त राजा का पुत्र लौकिक-लोकोत्तर विनय गंगा का प्रवाह किस ओर? आचार्य तोसलिक राजा और दो प्रतिमाएं सहयोग से लाभ एक कौटुम्बिक और बहु कृषक भावों के अनुसार निर्जरा जिन-गौतम-सिंह दृष्टांत मुद्रांकन का मूल्य राजा और तीन पुरुष आस्थानिका का महत्त्व राजा शातवाहन और पट्टरानी पृथिवी दृष्टि-विक्षेप (चंचलता) से हानि, किसान, दासी और कर्मकर। मुडिंबक एकाग्रता से ज्ञानोपलब्धि मुनि। अर्जुनस्तेन प्रमाद का फल राजा और ग्रामीण आचार्य प्रायोग्य आहार आर्य समुद्र और मंगु प्रवर्तिनी की जागरूकता अनिवार्य परिव्राजिका अमंगल का निवारण जम्बूवृक्षगृहवासी और वटवृक्षगृहवासी आज्ञा उल्लंघन से नाश आचार्य और श्राविका। म्लेच्छ-भय उपकार राजा और पांच सेवक न्याय और करुणा राजा और वणिक्-स्त्री युक्ति और साहस क्षुल्लक और आर्यिकाएं लोभ से हानि अमात्य अहंकार से हानि अट्टण मल्ल, मात्सिक मल्ल संस्कारदात्री मां चोर बालक की मां दंडित संघ रक्षा दूध रक्त बन गया संलेखना शिष्य द्वारा अंगुलि त्रोटन आज्ञाभंग : मृत्यु का वरण अमात्य और कोंकणदेशवासी अनशन में धृति-सहिष्णुता पांच सौ स्कन्दक-शिष्य। चाणक्य। चिलातीपुत्र। कालासवैश्यपुत्र । बांसों से विद्ध मुनि। अवंतिसुकुमाल। जल-उपद्रुत। म्लेच्छ-उपद्रुत बत्तीस मित्र मुनि विनय से वैभवप्राप्ति राजा शक और सेवक २६६६, २६६७ २६८५-२६९२ २८४८, २८६२, २८६३ २८८०, २८८१ २९५६, २९५७, ३१०३ ३१०६-३१०८ ३२५१ ३२५२ ३६९२-३६९४ ३८४० ४२०८ ४२७८ ४२९०,४२९१ ४२९२,४२९३ ४४१७-४४२९ ४५५५-४५६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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