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आगम विषय कोश - २
विषय
युक्ति से लाभ राग से विक्षिप्तता
अतिहर्ष से पागलपन
यक्षावेश के हेतु मानुषिक उपसर्ग साधु सुरक्षा के उपाय
दासत्व से मुक्ति के उपाय
आचार्य : परगण में उपस्थापना प्रतिसेवना
अगृहीभूत उपस्थापना
झूठे आरोप का अनावरण
परस्परता का लाभ आचार्य प्राज्ञ हो
शक्तिसम्पन्न की पारगामिता वाणी से यथार्थ बोध बुद्धिसम्पन्न विजयी
कल्पना के कोर से उदर नहीं भरता यथास्थान नियुक्ति : गणवृद्धि विरक्ति का हेतु : रूपदर्शन प्रमाद से चारित्र - चन्दन दग्ध कामशमन का उपाय : व्यस्तता
पद के योग्य : दायित्वशील संघकार्य की प्रधानता कपटयुक्त व्यवहार
अनुशासन पिता का दायित्व
गृहव्यवस्था हेतु परीक्षण पदयोग्य शिष्य की परीक्षा
पिता नाराज क्यों ?
प्रमाद से हानि
देववन्द्य तपस्वी
सांभोजिक-पृच्छा- प्रवर्तन
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कथा-संकेत
कृषक और वृषभ
जितशत्रु राजा और कनिष्ठ भ्राता
शातवाहन राजा
श्रेष्ठी । दो भाई । कौटुम्बिक
चोरों द्वारा अपहरण
राजसेवक और गणिका
वणिक् पुत्र
मिथ्या दोषारोपण
आचार्य को प्रायश्चित्त
दो गण : दो आचार्य
दो मुनि
दो सगे भाई
शक्तिहीन राजकुमार
सिंह और सियार | चन्द्रमा का उद्धार नीलवर्णी सियार ( खसद्रुम) शशक और सिंह
भिखारी का सपना । ग्वाला और आभूषण
वज्रभूति आचार्य और पद्मावती अंगारदाहक और चंदनखोडी पुत्रवधू
अजापालक । श्रीघर का रक्षक विवाद - निर्णय, धूलिजंघ मुनि पैर ने मारा । लाट देशवासी मूलदेव राजा
कन्यान्तःपुर में वणिक् कन्या धन श्रेष्ठी और चार पुत्रवधुएं
राजा और राजकुमार पुत्र का राज्याभिषेक
अजापालक । वैद्य । योद्धा । माली स्तूप विवाद, संघ विजयी कूप दृष्टांत । दो भाई । तिल- तंदुल । शैव । गोवर्ग
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सन्दर्भ
१०४५ वृ
१०८१, १०८२
११२५-११३१
११४३ - ११४५
११६१
११७५-११७९
११८० - ११९०
१२३०, १२३१ वृ
१२३२, १२३३
१२३४ - १२३६
१२३९-१२४७
१३३१, १३३२
१३७८
१३८०, १३८२
१३८३ वृ
१३८५, १३८६
१३८८ - १३९१
१४०९-१४११
१४१४, १४१५
१४४४-१४४६
१६०१ वृ १६११-१६१४
१६५०-१६६१
१६९८ - १७०१
१८९५- १८९७
१९०१ - १९०८
१९१०
१९९४
२०४६
२३२२-२३२६
२३३०, २३३१ २३५६ - २३५८ वृ
परिशिष्ट १
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