Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 700
________________ आगम विषय कोश-२ ६५३ स्वाध्याय गणित की सक्ष्मता है तथा एक गण काला आदि वर्ण-गंध-रस- कालादिउवयारेणं विज्जा न सिज्झए विणा देति। स्पर्शयुक्त परमाणु आदि के पर्यवविकल्पों की सूक्ष्मता है। वहां रंधे व अवद्धंसं, सा वा अण्णा वा से तहिं । अष्टांगनिमित्त का भी निरूपण है। ग्रन्थ की विशालता के कारण __ (व्यभा ३०१७, ३०१८) दृष्टिवाद की सात पृच्छाएं निर्दिष्ट हैं। काल, विनय आदि के भेद से ज्ञानाचार आठ प्रकार का है। १०. संध्याकाल में स्वाध्याय-निषेध अकाल में स्वाध्याय करने वाला ज्ञानाचार के प्रथम प्रकार की जे भिक्ख चउहिं संझाहिं सज्झायं करेति, करेंतं वा विराधना करता है। काल आदि के उपचार के बिना विद्या सिद्ध सातिज्जति, तं जहा-पुव्वाए संझाए, पच्छिमाए संझाए, नहीं होती। प्रान्त/अभद्र देवता कोई न कोई छिद्र खोजकर अकालअवरण्हे, अड्डरत्ते॥ (नि १९/८) पाठी का अवध्वंस कर सकते हैं। * ज्ञानाचार के भेद द्र श्रीआको १ आचार जो भिक्षु पूर्व सन्ध्या, पश्चिम सन्ध्या, अपराह्न और अर्धरात्रि-इन चार संध्याओं में स्वाध्याय करता है, वह प्रायश्चित्त १४. पर्वदिनों में स्वाध्याय का निषेध क्यों? का भागी होता है। जे भिक्खू चउसु महामहेसुसज्झायं करेति"-इंदमहे खंदमहे जक्खमहे भूतमहे॥"चउसु महापाडिवएसुसज्झायं ११. संध्याओं में स्वाध्याय का निषेध क्यों? करेति..-सुगिम्हयपाडिवए आसाढीपाडिवए आसोयलोए वि होति गरहा, संझासु तु गुज्झगा पवियरंति। पाडिवए कत्तियपाडिवए॥ (नि १९/११, १२) आवासग उवओगो, आसासो चेव खिन्नाणं॥ अन्नतापमादजतं. छलेज्ज अप्पिडिओ ण पण जत्तं । (निभा ६०५५) __ अद्धोदहिट्टिती पुण, छलेज जयणोवउत्तं पि॥ संध्याकाल में सूत्रपाठ करने से लोक में गर्दा होती है। (निभा ६०६६) संध्याओं में गुह्यक देव गमनागमन करते हैं। वे प्रमत्त स्वाध्यायी स्कन्दमह, इन्द्रमह, भूतमह और यक्षमह-ये चार महामह को छल सकते हैं। स्वाध्याय-विनिविष्ट चित्त वाला संध्या के हैं। इन पर्वो की क्रमश: मुख्य तिथियां हैं-चैत्र पूर्णिमा, आषाढ समय आवश्यक में उपयुक्त होता है, स्वाध्याय से श्रांत हुए चित्त पूर्णिमा (लाटदेश में श्रावणपूर्णिमा को इन्द्रमह होता है), आश्विन के लिए उस समय वह आश्वास होता है। पूर्णिमा और कार्तिक पूर्णिमा। इन पूर्णिमाओं और इनके अनन्तर समागत कृष्ण पक्ष की प्रतिपदाओं में स्वाध्याय वर्जित है। १२. अकाल में आवश्यक का निषेध क्यों नहीं? स्वाध्याय निषेध क्यों? साधु सरागता के कारण किसी भी प्रमाद जाव होमादिकज्जेसु , उभओ संझओ सुरा। से, विशेषतः महामह में प्रमत्त होता है, तब अल्पर्द्धिक प्रत्यनीक लोगेण भासिया, तेण संझावासगदेसणा॥ देव उसे छल सकते हैं। अप्रमत्त साध को अल्पर्द्धिक (अर्धसागरोपम (व्यभा ३०२६) से न्यून स्थिति वाला) देव छल नहीं सकता। अर्ध सागरोपम की दोनों संध्याओं में लोगों के आवाहन करने पर देव यज्ञ स्थिति वाले देव में इतना सामर्थ्य होता है कि वह पूर्व बद्ध वैर आदि अनुष्ठानों में ठहर जाते हैं, तब तक आवश्यक भी सम्पन्न का स्मरण कर किसी अप्रमत्त साधु को भी छल सकता है। हो जाता है। आवश्यक (प्रतिक्रमण आदि) दोनों संन्ध्याओं में (आयुर्वेद में भी अस्वाध्यायिक का उल्लेख हैअवश्य करणीय है। कृष्णेऽष्टमी तन्निधनेऽहनी द्वे, शुक्ले तथाऽप्येवमहर्द्विसन्ध्यम्। १३. अकालस्वाध्याय से ज्ञानाचार की विराधना अकालविद्युत्स्तनयित्नुघोषे, स्वतंत्रराष्ट्रक्षितिपव्यथासु॥ अट्ठहा नाणमायारो, तत्थ काले य आदिमो। श्मशानयानायतनाहवेसु, महोत्सवौत्पातिकदर्शनेषु। अकालझाइणा सो तु, नाणायारो विराधितो॥ नाध्येयमन्येषु च येषु विप्रा, नाधीयते नाशुचिना च नित्यम्॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732