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स्वाध्याय
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आगम विषय कोश-२
११. स्वप्न में एक कुसुमित महापद्मसरोवर को देखकर उसमें अवगाहन करने वाला उसी भव में मुक्त हो जाता है।। १२. स्त्री अथवा पुरुष स्वप्न (के अवसान) में हजारों ऊर्मियों से तरंगित एक महासागर को देखता है, उसे तैरता है, मैं तर गया हूं-ऐसा अपने को मानता है, तत्काल ही जाग जाता है, वह उसी भव में मोक्ष को प्राप्त होता है। १३. स्त्री या पुरुष स्वप्न में सर्वरत्नमय एक महाभवन को देखता है, उसमें अनुप्रविष्ट होता है, मैं भवन में प्रविष्ट हो गया हूं-ऐसा अपने को जानता है, तत्क्षण ही जाग जाता है, वह उसी भवग्रहण से सिद्ध होता है। १४. स्वप्न में सर्वरत्नमय एक महाविमान को देखता है, उसमें आरोहण करता है, मैं विमान में आरूढ हूं-ऐसा अपने को जानता है और उसी क्षण प्रतिबुद्ध हो जाता है, वह उसी भव में सिद्ध हो जाता है।-भ १६/९२-१०५ वृ) स्वाध्याय-श्रुतग्रन्थों का अध्ययन-अध्यापन।
१. स्वाध्याय के प्रकार २. अस्वाध्यायिक के प्रकार ३. अस्वाध्यायिक में स्वाध्याय वर्जन ४. अस्वाध्यायिक में स्वाध्याय से हानि ५. अस्वाध्यायिक-परिज्ञान हेतु कालप्रेक्षा ६. अस्वाध्यायिक में स्वाध्यायकरण के अपवाद ७. कालिक-उत्कालिक श्रुतस्वाध्याय-काल ८. व्यतिकृष्ट काल (उद्घाटा पौरुषी): स्वाध्याय-विकल्प ९. अकाल में श्रुतस्वाध्याय : पृच्छा परिमाण ___ * उत्सारकल्प में अकाल वर्जन नहीं द्र उत्सारकल्प १०. संध्याकाल में स्वाध्याय-निषेध ११.संध्याओं में स्वाध्याय-निषेध क्यों? १२. अकाल में आवश्यक का निषेध क्यों नहीं? १३. अकाल स्वाध्याय से ज्ञानाचार की विराधना १४. पर्वदिनों में स्वाध्याय का निषेध क्यों? १५. स्वाध्यायभूमि : नैषेधिकी, निषद्या, अभिशय्या १६. नैषेधिकी और अभिशय्या में जाने का हेतु १७. अभिशय्या का नायक कौन? १८. अभिशय्या में गमनागमन-विधि
१९. स्वाध्यायभूमि : विहारभूमि
० विहारभूमि में एकाकी गमननिषेध, अपवाद
० साध्वी की विहारभूमि संबंधी सामाचारी २०. स्वाध्यायभूमि : आगाढ-अनागाढ
० आगाढयोग-अनागाढयोग * उपधान : आगाढ-अनागाढश्रुत
द्र आचार |२१. योगवाही : भिक्षाचर्या से पूर्व कायोत्सर्ग |२२. विकृति के लिए योगनिक्षेप नहीं २३. योगवहन में विकृति-वर्जन के विकल्प |२४. उत्थानश्रुत आदि ग्रन्थों का अतिशय | २५. विशिष्ट ग्रंथ-परावर्तन : देवता की उपस्थिति |२६. स्वाध्याय आदि से अतिशय निर्जरा २७. प्रकीर्णग्रन्थों के स्वाध्याय से विपुल निर्जरा * श्रुतस्वाध्याय की निष्पत्ति
द्र श्रुतज्ञान * वाचना या स्वाध्याय से लाभ . द्रवाचना १. स्वाध्याय के प्रकार
..."वायण-पुच्छण-परियट्टणाणुपेह-धम्माणुओगचिंताए।....
(आचूला १/४२) स्वाध्याय के पांच प्रकार हैं-वाचना, प्रच्छना, परिवर्तना, अनुप्रेक्षा और धर्मानुयोगचिन्ता। (द्र श्रीआको १ स्वाध्याय) २. अस्वाध्यायिक के प्रकार
असज्झायं तु दुविधं, आतसमुत्थं च परसमुत्थं च। जं तत्थ परसमुत्थं, तं पंचविहं तु नायव्वं ॥ संजमघाउप्पाते, सादिव्वे वुग्गहे य सरीरे।...
(व्यभा ३१०१, ३१०२) अस्वाध्यायिक के दो प्रकार हैं-आत्मसमुत्थ (शरीर सम्बन्धी) और परसमुत्थ। परसमुत्थ अस्वाध्यायिक के पांच प्रकार हैं-संयमोपघाती, औत्पातिक, देवसंबंधी, व्युद्ग्रहसंबंधी तथा
औदारिक शरीर संबंधी। * अस्वाध्यायिक के भेदों का विवरण द्र श्रीआको १ अस्वाध्याय ३. अस्वाध्यायिक में स्वाध्याय वर्जन
नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा असज्झाइए सज्झायं करेत्तए॥ नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गथीण वा
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