Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 687
________________ स्थविरकल्प आगम विषय कोश-२ कल्पस्थित नियमतः श्रुत और वय से परिणत होते हैं, जिणकप्पिए न कप्पति, दप्पेणं अजतणाय थेराणं। कृतयोगी (तपोयोग से भावित) और तरमाण होते हैं। कप्पति य कारणम्मि, जयणाय गच्छे स सावेक्खो॥ प्रकल्पस्थित परिणत और कृतयोगी होते भी हैं, नहीं भी चिट्ठति परियाओ से, तेण च्छेदादिया न पावेंति। होते, किन्तु जो संहनन और धृति से सम्पन्न होते हैं, वे नियमतः परिहारं च न पावति, परिहार तवो त्ति एगटुं॥ तरमाण होते हैं-प्रारब्ध अनुष्ठान को पूर्णता तक पहुंचाते हैं। __ (व्यभा २४४५, २४४६) द्वितीय-तृतीय भंगवर्ती मध्यम पुरुष स्थविरकल्पी ही होते जिनकल्पी स्वपक्ष (साधु) और परपक्ष (साध्वी)-दोनों हैं, जिनकल्पी नहीं। उनमें परिणतता और कृतयोगिता वैकल्पिक से वैयावृत्त्य नहीं करवा सकता। है। संहननसंपन्न पुरुष धृतिविहीन होने पर भी सर्वथा असमर्थ स्थविरकल्पी दर्प से या अयतना से वैयावृत्त्य (या चिकित्सा) नहीं होता। संहनन शरीर का उपकारक गुण है। वह अल्प धृति या नहीं करवा सकता। कारण उपस्थित होने पर यतनापूर्वक करवा अधृति से भग्न नहीं होता। सकता है, क्योंकि वह गच्छ में सापेक्ष है-शरीर-निरपेक्ष होकर कछ आचार्यों का अभिमत है-धृति तप-संयम का मूल साधना नहीं करता। है, अतः धृतिसंपन्न पुरुष तरमाण/समर्थ होता है। वैयावृत्त्य या चिकित्सा करवाने से उसका स्थविरकल्प रहता संहनन नामकर्म के उदय से प्राप्त होता है। धृति मोहकर्म है (नष्ट नहीं होता) तथा प्रायश्चित्तस्वरूप छेद या परिहार भी (अरति नोकषाय चारित्रमोहनीय) के क्षयोपशम से प्राप्त होती है। प्राप्त नहीं होता। परिहार और तप एकार्थक हैं। .. यद्यपि संहनन और धृति की उत्पत्ति भिन्न है, फिर भी दृढ़ स्थविरावलि-आचार्य-परम्परा। संहननी में जैसी धृति होती है, वैसी धृति हीन-संहनन वाले में नहीं होती। इसलिए तीसरा भंग अतरमाण है। कुछ इसे तरमाण समणस्स भगवओ महावीरस्स कासवगोत्तस्स अग्जभी मानते हैं। सुहम्मे थेरे अंतेवासी अग्गिवेसायणसगोत्ते। थेरस्स णं चतुर्थ भंग में परिणतता और कृतयोगिता वैकल्पिक है। अज्जसुहम्मस्स"अज्जजंबुनामे थेरे अंतेवासी कासवगोत्ते।" धृति-संहननविरहित भी सर्वथा अतरमाण नहीं होता। वह भी अज्जप्पभवे थेरे अंतेवासी कच्चायण सगोत्ते। अज्जसेज्जंभवे रात्रिभोजनविरमण, पौरुषी आदि प्रत्याख्यानों का निर्वहन करता है। थेरे अंतेवासी मणगपिया वच्छसगोत्ते। अज्जजसभद्दे". २१. सापेक्ष-निरपेक्ष : वैयावृत्त्य और चिकित्सा तुंगियायणसगोत्ते। निग्गंथं च णं राओ वा वियाले वा दीहपट्ठो लूसेज्जा, संखित्तवायणाए अज्जजसभद्दाओ अग्गओ एवं थेरावली भणिया तं जहा-थेरस्स णं अज्जजसभहस्स"अंतेवासी इत्थी वा पुरिसं""पुरिसो वा इत्थिं ओमज्जेज्जा। एवं से कप्पइ, दवे थेरा-थेरेअज्जसंभयविजए माढरसगोत्ते. थेरे अज्जभहबाह एवं से चिट्ठइ, परिहारं च णो पाउणइ-एस कप्पे थेर पाईणसगोत्ते।"अंतेवासी थेरे अज्जथूलभद्दे गोयमसगोत्ते।थेरस्स कप्पियाणं। एवं से नो कप्पड़, एवं से नो चिद्रइ, परिहारं च। णं अज्जथूलभहस्स" अंतेवासी दुवे थेरा-थेरे अज्जमहागिरी पाउणइ-एस कप्पे जिणकप्पियाणं॥ (व्य ५/२१) एलावच्छसगोत्ते, थेरे अज्जसुहत्थी वासिट्ठसगोत्ते।... थेरस्स निर्ग्रन्थ को रात्रि या विकालवेला में सांप काट खाये, उस णं अज्जसुहत्थिस्स""अंतेवासी दुवे थेरा-सुट्ठियसुप्पडिबुद्धा स्थिति में स्त्री पुरुष का और पुरुष स्त्री का अपमार्जन करे-यह कोडियकाकंदगा वग्घावच्चसगोत्ता। थेराणं सुट्ठियसुप्पडिकल्पनीय है। इस स्थिति में उसे प्रायश्चित्त प्राप्त नहीं होता-यह बद्धाणं"अंतेवासी थेरे अज्जइंददिन्ने कोसियगोत्तेr"अंतेवासी स्थविरकल्पिकों का कल्प है। थेरे अज्जदिन्ने गोयमसगोत्ते।"अंतेवासी थेरे अज्जसीहगिरी जिनकल्पिक को सांप काट खाये, उस स्थिति में वह जाइस्सरे कोसियगोत्तेr"अंतेवासी थेरे अज्जवडरे गोयमसगोत्ते। अपमार्जन न कराए। यदि कराए तो उसे प्रायश्चित्त प्राप्त होता ___..."अंतेवासी थेरे अज्जवडरसेणे कोसियगोत्ते। है-यह जिनकल्पिकों का कल्प है। (दशा ८ परि सू १८६, १८७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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