Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 689
________________ स्थविरावलि ६४२ आगम विषय कोश ७८ ॥ ___ नंदी की भूमिका तथा गाथा २३-४२ के टिप्पणों में इस २१. , वज्रसेन आवलि पर गहन विमर्श किया गया है। यथा-पर्युषणाकल्प की २२. , नागहस्ती स्थविरावली में स्वाति, श्यामार्य और शाण्डिल्य का उल्लेख नहीं २३. , रेवतीमित्र ५९ ॥ है। यदि पर्युषणाकल्प की स्थविरावलि देवर्द्धिगणी से प्राचीन है ___, सिंह तो नंदी की स्थविरावलि और पर्युषणाकल्प की स्थविरावलि में २५. , नागार्जुन यह अंतर क्यों? आगम के संकलन काल में देवर्द्धिगणी ने २६. , भूतदिन्न पर्युषणाकल्प की स्थविरावलि को नंदी की स्थविरावलि से भिन्न २७. , कालक ११ " क्यों रखा? यदि पर्युषणाकल्प की स्थविरावलि देवर्द्धिगणी के दुस्सम-काल-समण-संघत्थव 'युग-प्रधान पट्टावली' उत्तरकाल की है तो यह अंतर हो सकता है। भिन्न-भिन्न नाम समय (वीर निर्वाण से) स्थविरावलियों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं १. आचार्य सुधर्मा १-२० कि अनेक शाखाएं और अनेक गुरुपरंपराएं रही हैं। जो लेखक २. " जम्बू २०-६४ जिस शाखा व गुरुपरंपरा का था, उसने अपनी गुरुपरंपरा के ३. , प्रभव ६४-७५ आधार पर स्थविरावलियां कर दी। अत: सब स्थविरावलियों में ४. ,, शय्यंभव ७५-९८ समानता खोजना प्रासंगिक नहीं है।-नंदी, गा २६ का टि ५. ,, यशोभद्र ९८-१४८ वल्लभी युगप्रधान पट्टावली समय ६. , संभूतविजय १४८-१५६ १. आचार्य सुधर्मा २० वर्ष ७. " भद्रबाहु १५६-१७० २. "जम्बू ८. " स्थूलभद्र १७०-२१५ ३. प्रभव ९. , महागिरि २१५-२४५ ४. , शय्यंभव १०. , सुहस्ती २४५-२९१ ५. , यशोभद्र ११. " गुणसुन्दर २९१-३३५ ६. , सम्भूतविजय १२. " श्याम ३३५-३७६ ७. , भद्रबाहु १३. " स्कन्दिल ३७६-४१४ ८. " स्थूलभद्र १४. , रेवतिमित्र ४१४-४५० ९. " महागिरि १५. , धर्मसूरि ४५०-४९५ १०. " सुहस्ती १६. " भद्रगुप्त ४९५-५३३ ११. " गुणसुन्दर १७. " श्रीगुप्त ५३३-५४८ १२. , कालक १८. , वज्र ५४८-५८४ १३. , स्कन्दिल १९. , आर्यरक्षित ५८४-५९७ १४. , रेवतीमित्र २०. , दुर्बलिकापुष्यमित्र ५९७-६१७ १५. " मंगु २१. , वज्रसेन ६१७-६२० १६. ॥ धर्म २२. , नागहस्ती ६२०-६८९ " भद्रगुप्त २३. ,, रेवतीमित्र ६८९-७४८ १८ वज्र २४. , सिंह ७४८-८२६ १९. " रक्षित २५. ' नागार्जुन ८२६-९०४ २०. , पुष्यमित्र २६. , भूतदिन ९०४-९८३ → 9 ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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