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स्थविरावलि
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आगम विषय कोश
७८ ॥
___ नंदी की भूमिका तथा गाथा २३-४२ के टिप्पणों में इस २१. , वज्रसेन आवलि पर गहन विमर्श किया गया है। यथा-पर्युषणाकल्प की २२. , नागहस्ती स्थविरावली में स्वाति, श्यामार्य और शाण्डिल्य का उल्लेख नहीं २३. , रेवतीमित्र
५९ ॥ है। यदि पर्युषणाकल्प की स्थविरावलि देवर्द्धिगणी से प्राचीन है ___, सिंह तो नंदी की स्थविरावलि और पर्युषणाकल्प की स्थविरावलि में २५. , नागार्जुन यह अंतर क्यों? आगम के संकलन काल में देवर्द्धिगणी ने २६. , भूतदिन्न पर्युषणाकल्प की स्थविरावलि को नंदी की स्थविरावलि से भिन्न २७. , कालक
११ " क्यों रखा? यदि पर्युषणाकल्प की स्थविरावलि देवर्द्धिगणी के दुस्सम-काल-समण-संघत्थव 'युग-प्रधान पट्टावली' उत्तरकाल की है तो यह अंतर हो सकता है। भिन्न-भिन्न
नाम
समय (वीर निर्वाण से) स्थविरावलियों के अध्ययन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं १. आचार्य सुधर्मा
१-२० कि अनेक शाखाएं और अनेक गुरुपरंपराएं रही हैं। जो लेखक २. " जम्बू
२०-६४ जिस शाखा व गुरुपरंपरा का था, उसने अपनी गुरुपरंपरा के ३. , प्रभव
६४-७५ आधार पर स्थविरावलियां कर दी। अत: सब स्थविरावलियों में ४. ,, शय्यंभव
७५-९८ समानता खोजना प्रासंगिक नहीं है।-नंदी, गा २६ का टि
५. ,, यशोभद्र
९८-१४८ वल्लभी युगप्रधान पट्टावली समय
६. , संभूतविजय
१४८-१५६ १. आचार्य सुधर्मा
२० वर्ष ७. " भद्रबाहु
१५६-१७० २. "जम्बू
८. " स्थूलभद्र
१७०-२१५ ३. प्रभव
९. , महागिरि
२१५-२४५ ४. , शय्यंभव
१०. , सुहस्ती
२४५-२९१ ५. , यशोभद्र
११. " गुणसुन्दर
२९१-३३५ ६. , सम्भूतविजय
१२. " श्याम
३३५-३७६ ७. , भद्रबाहु
१३. " स्कन्दिल
३७६-४१४ ८. " स्थूलभद्र
१४. , रेवतिमित्र
४१४-४५० ९. " महागिरि
१५. , धर्मसूरि
४५०-४९५ १०. " सुहस्ती
१६. " भद्रगुप्त
४९५-५३३ ११. " गुणसुन्दर
१७. " श्रीगुप्त
५३३-५४८ १२. , कालक
१८. , वज्र
५४८-५८४ १३. , स्कन्दिल
१९. , आर्यरक्षित
५८४-५९७ १४. , रेवतीमित्र
२०. , दुर्बलिकापुष्यमित्र ५९७-६१७ १५. " मंगु
२१. , वज्रसेन
६१७-६२० १६. ॥ धर्म
२२. , नागहस्ती
६२०-६८९ " भद्रगुप्त
२३. ,, रेवतीमित्र
६८९-७४८ १८ वज्र
२४. , सिंह
७४८-८२६ १९. " रक्षित
२५. ' नागार्जुन
८२६-९०४ २०. , पुष्यमित्र
२६. , भूतदिन
९०४-९८३
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