Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 690
________________ आगम विषय कोश-२ ६४३ स्थापनाकुल २७. , कालक (चतुर्थ) ९८३-९९४ २८. " सत्यमित्र ९९४-१००० २९. , हारिल्ल १०००-१०५५ ३०. , जिनभद्रगणि १०५५-१११५ ३१. , उमास्वाति १११५-११९७ ३२. , पुष्यमित्र ११९७-१२५० ३३. , संभूति १२५०-१३०० ३४. , माठर संभूति १३००-१३६० ३५. , धर्मऋषि १३६०-१४०० ३६. , ज्येष्ठांगगणी १४००-१४७१ ____३७. ,, फल्गुमित्र १४७१-१५२० ३८. , धर्मघोष १५२०-१५९८ -जैन धर्म के प्रभावक आचार्य खण्ड १ पृ. ३६-३८ माथुरी युगप्रधान-पट्टावलि १. आचार्य सुधर्मा १७. आचार्य धर्म २. , जम्बू १८. ) भद्रगुप्त ३. "प्रभव १९. ॥ वज्र ४. ॥ शय्यंभव २०. " रक्षित ५. , यशोभद्र २१. , आनन्दिल ६. " सम्भूतविजय २. , नागहस्ती ७. , भद्रबाहु २३. ,, रेवतीनक्षत्र स्थूलभद्र २४. , सिंह ९. , महागिरि ___स्कन्दिल १०. " सुहस्ती , हिमवंत ११. " बलिस्सह २७. , नागार्जुन १२. , स्वाति २८. , गोविन्द १३. , श्याम २९. " भूतदिन्न १४. , शाण्डिल्य ३०. , लौहित्य १५. , समुद्र ३१. , दूष्यगणि १६. " मंगु ३२. , देवर्द्धिगणि -जैनदर्शन : मनन और मीमांसा, पृ. ६६१, ६६२ तीन प्रधान परम्पराएं१. गणधर-वंश। २. वाचक-वंश ३. युग-प्रधान। आचार्य सुहस्ती तक के आचार्य गणनायक और वाचनाचार्य दोनों होते थे। वे गण की सार-सम्भाल और गण की शैक्षणिक व्यवस्था-इन दोनों उत्तरदायित्वों को निभाते थे। आचार्य सहस्ती के बाद ये कार्य विभक्त हो गए। चारित्र की रक्षा करने वाले 'गणाचार्य' और श्रुतज्ञान की रक्षा करने वाले वाचनाचार्य' कहलाए। गणाचार्यों की परम्परा (गणधरवंश) अपने-अपने गण के गुरुशिष्य क्रम से चलती है। वाचनाचार्यों और युगप्रधानों की परम्परा एक ही गण से सम्बन्धित नहीं है। जिस किसी भी गण या शाखा में एक के बाद दूसरे समर्थ वाचनाचार्य तथा युगप्रधान हुए हैं, उनका क्रम जोड़ा गया है। आचार्य सुहस्ती के बाद भी कुछ आचार्य गणाचार्य और वाचनाचार्य-दोनों हुए हैं। जो आचार्य विशेष लक्षण-सम्पन्न और अपने युग में सर्वोपरि प्रभावशाली हुए, उन्हें युगप्रधान माना गया। वे गणाचार्य और वाचनाचार्य दोनों में से हए हैं। हिमवंत की स्थविरावलि के अनुसार वाचक-वंश (विद्याधरवंश) की परम्परा इस प्रकार है१. आचार्य सुहस्ती ११. आचार्य सिंह २. , बहुल-बलिस्सह १२. , स्कन्दिल ३. , उमास्वाति १३. , हिमवन्त " श्याम १४. , नागार्जुन ,, शांडिल्य १५. , भूतदिन्न " समुद्र १६. , लोहित्य ७. " मंगु १७. , दूष्यगणी ८. , नन्दिल १८. , देववाचक (देवर्द्धिगणी) ९. , नागहस्ती १९. , कालक (चतुर्थ) १०. , रेवतीनक्षत्र २०. " सत्यमित्र। -जैन दर्शन : मनन और मीमांसा, पृष्ठ ९३, ९४) स्थापनाकुल-स्थाप्य (निषिद्ध) कुल। विशिष्ट कुल। 3 १. स्थापनाकुल : पारिहारिक कुल २. स्थापनाकुल के प्रकार ३. स्थापनाकुल में प्रवेश का निषेध ० भिक्षानयन के अनर्ह ४. कुलों को स्थापित करने की विधि ५. स्थापनाकुलों में गीतार्थ ही क्यों ? ६. आहार-ग्रहण की सामाचारी | ७. अनेक गच्छों के साथ सामाचारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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