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आगम विषय कोश-२
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साम्भोजिक
गृहीत शिष्य, वस्त्र आदि अवग्रहस्थ साधुओं को नहीं सौंपता है, एत्थ चउक्को भंगो-दाणं गहणं, एत्थ संभोतिता। तो उसे विसांभोजिक कर दिया जाता है।
दाणं नो गहणं, एत्थ संजतितो। नो दाणं गहणं, एत्थ पार्श्वस्थ आदि का अवग्रह शुद्ध साधुओं को मान्य नहीं । गिहत्था। नो दाणं नो गहणं, एत्थ पासत्थाती। पढम-बितिया होता, फिर भी उनका क्षेत्र छोटा हो और शुद्ध साधुओं का अन्यत्र सवक्खे, ततितो परपक्खे। चउत्थोसुण्णो।। निर्वाह होता हो तो साधु उस क्षेत्र को छोड़ देते हैं। यदि उनका क्षेत्र
खेत्तोवहिसेज्जाइएसुं खेत्तसंकमणेसु य संजतीओ विस्तीर्ण हो और शुद्ध साधुओं का अन्यत्र निर्वाह कठिन हो तो उस विधीए अणुपालेयव्वातो। (निभा २१३८, २१३९ चू) क्षेत्र में साधु जा सकते हैं और शिष्य, वस्त्र आदि ग्रहण कर सकते हैं।
० अभिग्रह संभोज-यथाशक्ति द्वादशविध तप संबंधी अभिग्रह • सन्निषद्या-कथाप्रबंध संभोज
ग्रहण करना। परियट्टणाणुओगो, वागरण पडिच्छणा य आलोए।...
० दानग्रहण संभोज--स्वपक्ष और परपक्ष के भेद से यह दो प्रकार जो उ णिसज्जोवगतो, पडिपुच्छे वा वि अहव आलोवे।
का है, जिसके चार विकल्प हैंलहुया य विसंभोगो, ...........॥
१. दान-ग्रहण (देना-लेना)-सांभोजिक साधु से संबंधित। वादो जप्प वितंडा, पइण्णग-कहा य णिच्छय-कहा या" २. दान-अग्रहण-साध्वी से संबंधित । वादं जप्प वितंडं, सव्वेहि विकणति समणिवज्जेहिं।
। ३. नो दान-ग्रहण-गृहस्थ से संबंधित।
नो टान गदा समणीण वि पडिकुट्ठा, होति सपक्खे वि तिण्णिह कहा॥ ४. नो दान-नो ग्रहण---पार्श्वस्थ आदि से संबंधित। प्रथमउस्सग्गो पइन्नकहा य अववातो होति णिच्छयकधा। द्वितीय भंग स्वपक्ष, तीसरा भंग परपक्ष और चौथा भंग संभोज के
(निभा २१२५, २१२८-२१३१) प्रति शून्य है। ० सन्निषद्या संभोज-इस व्यवस्था के अनुसार दो सांभोजिक आचार्य ० अनपालना संभोज-यह साध्वीवर्ग से संबंधित है। (इस व्यवस्था अपनी-अपनी निषद्या पर बैठकर संघाटक के रूप में श्रत परिवर्तना करते हैं। शिष्य द्वारा अनुयोग और व्याकरण के समय निषद्या की विधियुत व्यवस्था करते हैं, क्षेत्रसंक्रमण के समय उनका सहयोग जाती है अन्यथा प्रायश्चित्त आता है। जो निषद्या पर बैठकर सूत्र- करते हैं, सुरक्षा का दायित्व निभाते हैं।) अर्थ की प्रतिपृच्छा अथवा आलोचना करता है, उसे मासलघु
० उपपात-संवास संभोज प्रायश्चित्त आता है और निषद्या-संबंधी मर्यादा का अतिक्रमण .....उखवाते संभोगो. पंचविधवसंपदाए त॥ करने पर विसांभोजिक कर दिया जाता है।
सुत सुह-दुक्खे खेत्ते, मग्गे विणए य होइ बोधव्वो।.... ० कथाप्रबंध संभोज-कथासंबंधी व्यवस्था। कथा के पांच प्रकार संवासे संभोगो, सपक्ख-परपक्खतो य णायव्वो। हैं- १. वाद २. जल्प ३. वितण्डा ४. प्रकीर्णकथा (उत्सर्ग) और सरिकप्पेसु सपक्खे, परपक्खम्मी गिहत्थेसु॥ ५. निश्चयकथा (अपवादकथा)। प्रथम त्रिविध कथाएं साध्वियों ___."सुहदुक्खोवसंपया धाउविसंवादादिएहिं अहिडक्काके साथ नहीं की जाती, अन्यतीर्थिकों आदि के साथ की जा सकती तीहिं वा आगंतुगेहिं बहं पच्चवायं माणुस्सं जाणिऊण हैं। प्रथम तीन कथाएं साध्वियां साध्वियों के साथ भी नहीं कर अण्णतरेण मे रोगातंकेण वाहियस्स ममेते वेयावच्चं काहिंति, सकतीं।
अहं पि एतेसिं करिस्सामि अतो असहायो गच्छे उवसंपयं ५. अभिग्रह-दान-अनुपालना संभोज
पवजति। एक्कस्स आयरियस्स बहुगुणं खेत्तं तमण्णो अभिग्गहसंभोगो पण, णायव्वो तवे दुवालसविधम्मि। आयरिओ जाणिऊण अणुजाणावेऊण तस्स खेत्ते ठायति एस दाणग्गहणे दुविधो, सपक्खपरपक्खतो भइतो॥ खेत्तोवसंपया। अणुपालणसंभोगो, णायव्वो होति संजतीवग्गे।... दुवे आयरिया गंतुकामा ताण एक्को देसितो एक्को
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