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आगम विषय कोश-२
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स्थविरकल्प
उपाश्रय में प्रवेश करें। साध्वियों के कृतिकर्म व्यवहार के पश्चात् १२. साधु साध्वी के स्थान पर क्यों जाए? गीतार्थ मुनि नीची दृष्टि किए आचार्य की ओर से सुखपृच्छा करता उवस्साए य संथारे उवही संघपाहुणे। है-आपके संयमयोग निराबाधरूप से सध रहे हैं?
सेहट्ठवणुद्देसे, अणुना भंडणे गणे॥ ० सहभिक्षाविधि
अणप्पज्झ अगणि आऊ वीआर पुत्त संगमे। कडमकड ति य मेरा, कडमेरा मित्ति बिंति जइ पुट्ठा।
संलेहण वोसिरणे, वोसटे निट्ठिए तिहं ।। ताहे भणंति थेरा, साहह कह गिण्हिमो भिक्खं ।
काश्चिद् वा संयत्यः परीषहपराजिता अवधावनाता बेंति अम्ह पुण्णो, मासो वच्चामु अहव खमणं णे। भिमुख्यो वर्तन्ते तासां स्थिरीकरणार्थं संघप्राघुणो गच्छेत्। संपत्थियाउ अम्हे, पविसह वा जा। वयं नीमो॥ इह कुलस्थविरो'"संघस्थविरो वा संघस्य गौरवाईतया... तुब्भे गिण्हह भिक्खं, इमम्मि पउरन्न-पाण गामद्धे। प्राघुण उच्यते।
(बृभा ३७२२, ३७२३ वृ) वाडग साहीए वा, अम्हे सेसेसु घेच्छामो॥
सामान्यतः साधु साध्वी के स्थान पर न जाए। परन्तु ओली निवेसणे वा, वज्जेत्तु अडंति जत्थ व पविद्वा। आपवादिक स्थिति में इन कारणों से जा सकता है
० उपाश्रय, संस्तारक तथा उपधि देने के लिए। न य वंदणं न नमणं, न य संभासो न वि य दिट्ठी॥
० परीषहों से पराजित होकर उत्प्रवजित होने वाली साध्वी के (बृभा २२११, २२१२, २२१५, २२१६)
स्थिरीकरण के लिए संघप्राघुर्णक मुनि जा सकता है। स्थविर आर्या से पूछते हैं-आप सामाचारी में शिक्षित हैं
संघ के गौरवाह होने के कारण कुलस्थविर, गणस्थविर और या नहीं? 'हम सामाचारी-भिक्षाविधि जानती हैं ' ऐसा कहने पर संघस्थविर प्राघुण-प्राघूर्णक कहलाते हैं। स्थविर पुनः पूछते हैं-हम गोचरी कैसे-कहां करें?
० शैक्ष मुनि की उपस्थापना के लिए। ___ आर्यिका कहती है-हमारा मासकल्प पूर्ण हो गया है, ० स्थापनाकुलों की स्थापना के लिए। हम सूत्रपौरुषी करके यहां से विहार कर देंगी। उसके बाद आप ० श्रुत के उद्देश अथवा अनुज्ञा हेत्। यथेच्छ विहरण करें। अथवा मासकल्प तो पूर्ण नहीं हुआ, किन्तु
० पारस्परिक कलह का उपशमन करने के लिए। आज हम सबके उपवास है अतः आप इच्छानुसार भिक्षा के लिए प्रवर्तिनी के कालगत हो जाने पर गणचिन्ता के निमित्त । जा सकते हैं। दोनों को ही भिक्षा करनी हो तो आर्यिका निवेदन ० परवश साध्वी को मंत्र आदि से स्वस्थ करने के लिए। करती है-पहले हम भिक्षा के लिए जाएं, बाद में आप अथवा ० साध्वियों की वसति अग्नि से जल जाने पर अथवा पानी में बह पहले आप.भिक्षा करके आ जाएं, फिर हम चली जायेंगी। प्रचुर जाने पर नई वसति-ग्रहण हेत। अन्न-पान वाले इस ग्राम के अर्ध भाग में आप और अर्धभाग में विचारभमि में उपसर्ग उपस्थित होने पर। हम अथवा इस पाटक और इस गली में आप और शेष में हम साध्वियों के स्वजन की मत्य हो जाने पर। गोचरी कर लेंगी।
. साध्वियों के स्वजन को उनसे मिलाने के लिए। साधु-साध्वियों की भिक्षाटन वाली गृहपंक्ति और निवेशन संलेखना या अनशन के लिए तत्पर अथवा अनशन में स्थित को छोडकर अन्य पंक्ति और निवेशन (एक निष्क्रमण-प्रवेश वाले साध्वी को दर्शन देने के लिए। घरों) में पर्यटन करते हैं। जहां ग्राम छोटा हो, घरों की पंक्ति का साध्वी के कालगत हो जाने पर अन्य साध्वियों के शोकापनयन विभाग न हो सके वहां घर में प्रवेश करते हुए अथवा गली में के लिए निरन्तर तीन दिन वहां जाए। संयत-संयती का मिलन हो सकता है, वहां वे परस्पर न वंदना १३ वर्षा आदि में जाना निषिद करें, न नमन करें और न ही संभाषण और अवलोकन करें।
....."तिव्वदेसियं वासं वासमाणं पेहाए, तिव्वदेसियं वा
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