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स्थविरकल्प
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आगम विषय कोश-२
महियं सण्णिवयमाणिं पेहाए, महावाएण वा रयं समुद्धयं सकता। गच्छ में जो बहुश्रुत-बहुआगमज्ञ है, उसके साथ ज्ञातवीथि पेहाए, तिरिच्छं संपाइमा वा तसा-पाणा संथडा सन्निवय- में जा सकता है। माणा पेहाए, से एवं णच्चा णो सपडिग्गहमायाए गाहावइ- माता-पिता आदि का जो संबंध है या जो पूर्वसंस्तुत और कुलं पिंडवाय-पडियाए"बहिया वियारभूमि वा विहार पश्चात् संस्तुत है, वह ज्ञातविधि है। इसके अनेक भेद हैं। यहां भूमिं वा णिक्खमेज्ज वा पविसेज्ज वा, गामाणुगामं वा विधि शब्द भेदवाची है। दूइज्जेज्जा॥
(आचूला ६/५३) १४. रात्रि में एकाकी-गमन का निषेध (यदि भिक्षु) तेज या मंद वर्षा बरसती देखे, तीव्र या मंद नो कप्पइ निग्गंथस्स एगाणियस्स राओ वा वियाले कुहरा गिरता देखे, महावात से रजें उड़ती देखे, तिर्यक् वा बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमि वा निक्खमित्तए वा। संपातिम (भौंरा, पतंग आदि) त्रस प्राणी मार्ग में छाये हुए या कप्पड़ से अप्पबिइयस्स वा अप्पतइयस्स वा ... ॥ नो गिरते हुए देखे, वह ऐसा (जीवविराधना का प्रसंग) जानकर पात्र कप्पड निग्गंथीए एगाणियाए' लेकर गृहपति के घर में भिक्षा की प्रतिज्ञा से न जाए और न प्रवेश वा... अप्पचउत्थीए वा........ (क १/४५.४६) करे, न बाहर स्थण्डिलभूमि और स्वाध्यायभूमि में गमन और
निर्ग्रन्थ रात्रि में या विकाल में उपाश्रय के बाहर विचारभूमि प्रवेश करे, न ग्रामानुग्राम परिव्रजन करे।
या विहारभमि में अकेला नहीं जा सकता। वह एक या दो निर्ग्रन्थों ० ज्ञातिजनों में गमन का हेतु और विधि
के साथ वहां जा-आ सकता है। उवदेसं काहामि य, धम्मं गाहिस्स पव्वयावेस्सं।
यही विधि साध्वी के लिए निर्दिष्ट है। विशेष इतना है सड्ढाणि व वुग्गाहे, भिक्खुगमादी ततो गच्छे॥ कि वह एक या दो या तीन साध्वियों के साथ जा सकती है।
(व्यभा २५१८) १५. शयन-विधि, रत्नाधिक की प्राथमिकता मैं ज्ञातिजनों को धर्मोपदेश दूंगा, उन्हें श्रावकधर्म या श्रमणधर्म
..सेज्जासंथारभूमिं ...", णण्णत्थ आयरिएण वा, में दीक्षित करूंगा। वे कुल दानश्रद्धालु हैं। अन्यतीर्थिकों ने उन्हें
उवज्झाएण वा, पवत्तीए वा, थेरेण वा, गणिणा वा, गणहरेण बहका दिया है। उनको यथार्थ मार्ग पर लाऊंगा-इन कारणों से वा. गणवच्छेडण वा. बालेण वा. बडेण वा. सेहेण वा. साधु ज्ञातिजनों के बीच जा सकता है।
गिलाणेण वा, आएसेण वा, अंतेण वा, मझेण वा, समेण भिक्खू य इच्छेज्जा नायविहिं एत्तए"कप्पड़ से थेरे वा, विसमेण वा, पवाएण वा, णिवाएण वा तओ संजयामेव आपुच्छित्ता । थेरा य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ नायविहिं पडिलेहिय-पडिलेहिय, पमज्जिय-पमज्जिय बहु-फासुयं एत्तएनो से कप्पइ अप्पसुयस्स अप्पागमस्स एगाणियस्स"। सेज्जा-संथारगं संथरेज्जा।।..सेज्जा-संथारए दुरुहमाणे, से कप्पइ से जे तत्थ बहुस्सुए बब्भागमे तेण सद्धिं नायविहिं पुव्वामेव ससीसोवरियं कायं पाए य पमज्जिय-पमज्जिय तओ एत्तए।
(व्य ६/१) संजयामेव"दुरुहेत्ता तओ संजयामेव"सएज्जा"सयमाणे, अम्मा-पितिसंबंधो, पुव्वं पच्छा व संथुता जे तु। णो अण्णमण्णस्स हत्थेण हत्थं, पाएण पायं, काएण कार्य एसो खलु णायविधी, णेगा भेदा य एक्केक्के॥ आसाएज्जा।...
(आचूला २/७२-७४)
आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक. स्थविर, गणी, गणधर, भिक्ष ज्ञातविधि/ज्ञातवीथि में जाना चाहे तो वह स्थविर गणावच्छेदक, बाल, वृद्ध, शैक्ष, ग्लान और अतिथि की शय्या(आचार्य) को पूछकर जा सकता है, वे अनुमति दें तो जा सकता संस्तारक-भूमि को छोड़कर उपाश्रय के अंतिम कोने या मध्य में. है। अल्पश्रुत और अल्पागम भिक्षु अकेला ज्ञातिजनों में नहीं जा सम या विषम, हवादार या निर्वात स्थान में संयमपूर्वक प्रतिलेखन
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