Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 662
________________ आगम विषय कोश-२ सार्थवाह पा संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ मुनियों से द्वेष रखने वाले हो सकते हैं अथवा सार्थ स्वल्प संबल अणापुच्छित्ता आयरियंकप्पइ से आपुच्छित्ता"ते य से नो (पाथेय)वाला हो सकता है। वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ। जत्थुत्तरियं धम्मविणयं सार्थ के पांच प्रकार हैंलभेज्जा, एवं से कप्पइ"॥ (क ४/१९) १. भण्डी-बैलगाडियों से यात्रा करने वाला सार्थ । भिक्षु गण से अवक्रमण कर अन्य गण में संभोज के निमित्त २. बहिलक-करभी, खच्चर आदि से यात्रा करने वाला सार्थ। उपसम्पदा ग्रहण कर विहरण करना चाहे तो वह आचार्य को पछे ३. भारवह-पोट्टलिका-वाहकों का सार्थ। बिना नहीं जा सकता, पूछकर जा सकता है, वे आज्ञा न दें तो नहीं ४. औदरिक-मुद्रा देकर भोजन कर पुनः अग्रगामी सार्थ। जा सकता। जिस गण में स्मारणा-वारणा आदि रूप उत्तम ५. कार्पटिक-भिक्षाचरों का सार्थ। आचारविनय का प्रशिक्षण प्राप्त हो, उस गण में वह संभोजप्रत्ययिक यात्रापथ में उपयोगी सार्थ उपसम्पदा स्वीकार कर सकता है। उप्परिवाडी गुरुगा, तिसु कंजियमादिसंभवो होज्जा। परिवहणं दोसु भवे, बालादी सल्ल गेलन्ने॥ सार्थवाह-व्यापारीयात्रियों के संघ का नायक। (बृभा ३०६८) १.सार्थवाह मनि को यथोक्त क्रम का उल्लंघन कर अर्थात भंडी सार्थ २. सार्थ के प्रकार के होने पर बहिलक के साथ जाने पर चतर्गरु प्रायश्चित्त प्राप्त होता ० यात्रापथ में उपयोगी सार्थ है। वह भंडी के अभाव में बहिलक के साथ, बहिलक के अभाव में * मुनि और शुद्ध सार्थ द्र विहार भारवह के साथ जा सकता है। प्रथम तीन सार्थों के साथ जाने से ३. सार्थ की प्रत्युपेक्षा : यान-वाहन स्वीकृति ४. सार्थवाह और सार्थरक्षक के प्रकार कांजी आदि पानक की प्राप्ति हो सकती है। प्रथम दो सार्थ बाल, ५. सार्थ का प्रस्थान और शकुन वृद्ध, दुर्बल, शल्यविद्ध और ग्लान को वहन कर सकते हैं। १. सार्थवाह ३. सार्थ की प्रत्युपेक्षा : यान-वाहन स्वीकृति जो वाणिओ रातीहिं अब्भणुण्णातो सत्थं वाहेति, सो अणुरंगाई जाणे, गुंठाई वाहणे अणुण्णवणा। धम्मु त्ति वा", बालादि अणिच्छे पडिकुट्ठा॥ सत्थवाहो। (निभा १७३५ की चू) दंतिक्क-गोर-तिल्ल-गुल-सप्पिएमादिभंडभरिएसु। जो वणिक्-व्यापारी राजा के द्वारा अभ्यनुज्ञात है, राजा की ___ अंतरवाघातम्मि व, तं दितिहरा उ किं देंति॥ स्वीकृति प्राप्त कर देशांतर-गमन करने वाले व्यापारी वर्ग का । खेत्ते जं बालादी, अपरिस्संता वयंति अद्धाणं। नेतृत्व करता है, वह सार्थवाह कहलाता है। काले जो पुव्वण्हे, भावे सपक्खादणोमाणं॥ २. सार्थ के प्रकार _ (बृभा ३०७१, ३०७२, ३०७५) .."ओमाण पंत सत्थिय, अतियत्तिय अप्पपत्थयणो॥ ___ मुनि जिस सार्थ के साथ जाना चाहे, उसकी द्रव्य, क्षेत्र, रागहोसविमुक्को, सत्थं पडिलेहें सो उ पंचविहो। काल और भाव से प्रत्युपेक्षा करे। भंडी बहिलग भरवह, ओदरिया कप्पडिय सत्थो॥ . द्रव्यतः प्रत्युपेक्षा-मुनि चलने में असमर्थ, बाल-वृद्ध आदि (बुभा ३०६५,३०६६) के लिए सार्थवाह से अनरंगा. शकट आदि यान और अश्व, जिस मुनि का गन्तव्य में न राग हो, न द्वेष हो, उसे सार्थ महिष आदि वाहन की स्वीकृति ले। यदि वह अपना धर्म की प्रत्युपेक्षा करनी चाहिए, क्योंकि सार्थ कदाचित् अपमान से मानकर स्वीकृति दे, तब तो सुन्दर, निषेध करे, तब उसके साथ अत्यधिक उद्वेजित हो सकता है, अथवा सार्थिक या सार्थचिन्तक न जाए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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