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आगम विषय कोश-२
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सूत्र
१. देशसूत्र-जिसमें देशग्रहण करने पर तज्जातीय सभी का ग्रहण ० स्वसमयसूत्र-करेमि भंते! सामाइयं .... (आव १) हो जाता है। जैसे-... वणस्सइकाइया सबीया....(द ४/सू ८ ० परसमयसूत्र-पंच खंधे वयंतेगे........(सू १/१/१७) जिचू)-इस सूत्र में सबीज शब्द से वनस्पति के मूल, कंद आदि ० उत्सर्गसूत्र-जिसमें आचारविषयक सामान्य विधि का प्रतिपादन दस भेदों को सूचित किया गया है।
हो। यथा-..."अभिक्खणं निव्विगई गया य।... (द चूला २/७) २.सर्वसूत्र-जिसमें निरवशेष अभिधेय पदों का ग्रहण किया गया ० अपवादसूत्र-जिसमें विशेष विधि का प्रतिपादन हो। यथाहो। जैसे-दशवैकालिक (८/३९) में एक साथ चारों कषायों का तिण्हमन्नयरागस्स, निसेज्जा जस्स कप्पई। ग्रहण किया गया है
जराए अभिभूयस्स, वाहियस्स तवस्सिणो॥ कोहो य माणो य अणिग्गहीया, माया य लोभो य पवड्डमाणा।
(द ६/५९) चत्तारि एए कसिणा कसाया, सिंचंति मूलाइं पुणब्भवस्स॥ ० हीन-अधिक सूत्र-हीनाक्षर सूत्र, जिसका अर्थ उन अक्षरों के
अनिगृहीत क्रोध और मान, प्रवर्द्धमान माया और लोभ-ये बिना पूर्ण न हो। इसी प्रकार अधिक अक्षर वाला सूत्र। मुनि सूत्र चारों संक्लिष्ट कषाय पनर्जन्मरूपी वक्ष की जडों का सिंचन का सही अर्थ ज्ञात हो जाने पर हीन सूत्र को पूर्ण करता है और करते हैं।
अधिक अक्षरों का परित्याग करता है। ३. उत्क्रम सूत्र-जिनमें वर्णन क्रमशः न हो, जैसे-आचारांग के ० जिनकल्पिकसूत्र-तेगिच्छं नाभिनंदेज्जा॥ (उ २/३३) शस्त्रपरिज्ञा अध्ययन में तेजस्काय के पश्चात् क्रमप्राप्त वायुकाय ० स्थविरकल्पिकसूत्र-भिक्खू इच्छेज्जा अन्नयरिं तेइच्छं आउट्टित्तए का वर्णन न करके वनस्पतिकाय और त्रसकाय के पश्चात् उसका
(दशा ८ परि सू २७४) वर्णन किया गया है।
० जिनकल्प-स्थविरकल्प-सामान्य सूत्र४. क्रमसत्र-जिनमें क्रमश: वर्णन हो। जैसे-पेटा, अर्धपेटा आदि .."संसट्ठकप्पेण चरेज्ज भिक्खू," || (द चूला २/६) आठ गोचरभमियां. (उ ३०/१९) । असंसष्टा, संसष्टा आदि सात ० आर्यासूत्र-यथा-कप्पइ निग्गंथीणं अंतोलित्तं घडिमत्तयं पिण्डैषणाएं (आचला १/१४१-१४७)।।
धारित्तए।
(क १/१६) सत्रों में उत्क्रम से प्रतिपादन का प्रयोजन है-शैक्ष आदि ० कालसूत्र-यथा-अनागत काल विषयक सूत्रमुनि प्रतिपाद्य विषय को सहजता से समझ सकें।
न या लभेज्जा निउणं सहायं, ___कहीं-कहीं अनुयोगधर सूत्र के प्रस्तुत अर्थ को छोड़कर
गणाहियं वा गणओ समं वा। (द चूला २/१०) प्रसंगोपात्त अर्थ का पहले प्रतिपादन करते हैं।
० वचनसूत्र-से एगवयणं वदिस्सामीति एगवयणं वएज्जा ॥
(आचूला ४/४) १०. सूत्र के अनेक भेद सन्नाइसुत्त ससमय, परसमय उस्सग्गमेव अववाए।
११. सूत्र के छह प्रकार : उत्सर्ग सूत्र आदि हीणा-ऽहिय-जिण-थेरे, अज्जा काले य वयणाई॥
उस्सग्गसुतं किंची, किंची अववातियं भवे सुत्तं। इह मौनीन्द्रप्रवचनेऽनेकधा सूत्राणि भवन्ति"देशी
तदुभयसुत्तं किंची, सुत्तस्स गमा मुणेयव्वा॥ भाषानियतं सूत्रं दिगिंछा' इति बुभुक्षा।...
णेगेसु एगगहणं, सलोम णिल्लोम अकसिणे अइणे।
विहिभिन्नस्स य गहणं, अववाउस्सग्गियं सुत्तं ॥ __ (बृभा १२२१ वृ)
उस्सग्गठिई सुद्धं, जम्हा दव्वं विवजयं लभति। जिनप्रवचन में अनेक प्रकार के सूत्र होते हैं। जैसे
ण य तं होइ विरुद्धं, एमेव इमं पि पासामो॥ ० संज्ञासूत्र-आगम के सांकेतिक शब्द प्रयोग वाले सूत्र।
उस्सग्ग गोयरम्मी, निसेज्ज कप्पाऽववादतो तिण्हं। ० देशीभाषानियतसूत्र-देशीशब्दप्रयोग वाले सूत्र । जैसे
मंसं दल मा अट्ठी, अववादुस्सग्गियं सुत्तं ॥ 'दिगिंछापरीसहे....।' (उ २/३) दिगिंछा का अर्थ है क्षुधा।
एते सत्रस्य 'गमाः' प्रकारा:.....। अथवा 'गमा नाम'
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