Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 679
________________ स्थविरकल्प ६३२ आगम विषय कोश-२ हैं तो आवश्यक (प्रतिक्रमण आदि) बाहर करते हैं। और असंलोक स्थान में आहार करते हैं। आवश्यक कार्य से निवृत्त ० अवधान-गृहस्थ बाहर जाते समय कहे कि मेरे घर का ध्यान होकर तीसरे प्रहर में ही उपाश्रय में लौट आते हैं। क्षेत्रसंक्रमण-- रखना, उस घर में नहीं रहते। विहार भी तीसरी प्रहर में करते हैं। निष्कारण अवस्था में स्थविरकितने रहेंगे?-गृहस्थ द्वारा यह पूछे जाने पर किसी प्रयोजनवश कल्पिक की भी यही विधि है। वहां रहना पड़े तो साधुओं की संख्या का परिमाण बता देना ___० प्रातराश और सूत्रपौरुषी चाहिये। यदि प्राघूर्णक आ जाएं तो पुनः अनुज्ञा लेनी चाहिए। यः क्षपको"पर्युषितेन प्रथमालिकां कर्तुकामः स ० भिक्षाचर्या, लेपालेप, अलेप, आचाम्ल, प्रतिमा सूत्रपौरुषीं कृत्वा "अथ तावती वेलां न प्रतिपालयितुं क्षमः नियताऽनियता भिक्खायरिया पाणऽन्न लेवऽलेवाडं। ततोऽर्द्धपौरुष्यां निर्गच्छति। (बृभाव पृ५००) अंबिलमणंबिलं वा, पडिमा सव्वा वि अविरुद्धा॥ तपस्वी, बाल या वृद्ध बासी अन्न का प्रातराश करना ...."गच्छे पण सव्वाहिं, सावेक्खो जेण गच्छो उ॥ चाहते हैं तो सूत्रपौरुषी करके भिक्षा के लिए निर्गमन करते हैं। यदि वे इतने समय की भी प्रतीक्षा नहीं कर सकते. तब अर्धसत्रपौरुषी ० भिक्षाचर्या-स्थविरकल्पिक मनि की भिक्षाचर्या नियत करके भिक्षाटन करते हैं। (असंसृष्टा, संसृष्टा आदि अभिग्रह संयुक्त) और अनियत दोनों ७. भिक्षा के लिए संघाटक-असंघाटक क्यों? प्रकार की होती है। (भिक्षाचर्या विधि द्र पिण्डैषणा) एगाणियस्स दोसा, साणे इत्थी तहेव पडिणीए। गच्छवासी संसष्टा आदि सातों एषणाओं से आहार ग्रहण भिक्खविसोहि महव्वय, तम्हा सबिइज्जए गमणं॥ कर सकते हैं। क्योंकि गच्छ बाल, वृद्ध, शैक्ष आदि से युक्त होने गारविए काहीए, माइल्ले अलस लुद्ध निद्धम्मे। के कारण सापेक्ष होता है।। दुल्लह अत्ताहिट्ठिय, अमणुन्ने या असंघाडो॥ ० लेप-अलेप-उनका अन्न-पान लेपकृत और अलेपकृत दोनों (बृभा १७०२, १७०३) प्रकार का होता है। भिक्षा के लिए मुनि अकेला जाता है, वहां अनेक दोषों की ० आचाम्ल-वे आचाम्ल और अनाचाम्ल दोनों करते हैं। संभावना रहती है-श्वान पीछे से आकर अकेले मुनि को काट ० प्रतिमा-वे इच्छानुसार प्रतिमाएं स्वीकार कर सकते हैं। सकता है। स्त्री उसके साथ व्यभिचार कर सकती है। प्रत्यनीक ६. जिनकल्प-स्थविरकल्प : आहार-विहार-काल उसे कष्ट दे सकता है। एषणा की शोधि नहीं कर पाता। महाव्रतों निरवेक्खो तइयाए, गच्छे निक्कारणम्मि तह चे की विराधना कर सकता है। इन संभावित दोषों से बचने के लिए बहु वक्खेवदसविहे, साविक्खे निग्गमो भइओ॥ संघाटक (मनिद्वय) को भिक्षा के लिए जाना चाहिए। गहिए भिक्खे भोत्तुं, सोहिय आवास आलयमुवेइ। एकाकी भिक्षाटन के नौ कारण हैंजहिं निग्गओ तहिं चिय, एमेव य खेत्तसंकमणे॥ १. गौरविक-मैं लब्धिसम्पन्न हूं-ऐसा जिसे गर्व है, वह अकेला (बृभा १६७०, १६७१) जाना चाहता है। जिनकल्पी आदि निरपेक्ष मनि तीसरी प्रहर में उपाश्रय के २. काथिक-जो गृहस्थ के घर कथा करता है, वह अकेला जाना बाहर निकलते हैं। स्थविरकल्पी भी कारण नहीं होने पर तीसरी चाहता है। प्रहर में ही निकलते हैं। किन्तु गच्छ में आचार्य, उपाध्याय आदि ३. मायावी-जो सरस आहार स्वयं खाकर शेष आहार लेकर दशविध वैयावृत्त्य संबंधी कारण होने पर प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ आता है, वह एकाकी जाना चाहता है। प्रहर में भी निष्क्रमण कर सकते हैं। ४. आलसी-जो लम्बे समय तक घम नहीं सकता। जिनकल्पिक आदि तीसरी प्रहर में भिक्षा प्राप्त कर अनापात ५. लुब्धक-जो दुग्ध, दधि आदि मांगकर लेता है। व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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