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सूत्र
द्विरुच्चारणीयानि पदानि । तद्यथा - उत्सर्गौत्सर्गिकम् अपवादा(बृभा ३३१६-३३१९ वृ)
पवादिकम् ।
कुछ सूत्र औत्सर्गिक होते हैं, कुछ सूत्र आपवादिक होते हैं और र कुछ सूत्र तदुभय होते हैं- ये सूत्र के गम - प्रकार हैं । अथवा गम का अर्थ है- दो बार उच्चारणीय पद । जैसे उत्सर्ग - उत्सर्ग । इस प्रकार सूत्र के छह प्रकार हैं१. उत्सर्ग सूत्र
४. अपवाद - उत्सर्ग सूत्र
५. उत्सर्ग - उत्सर्ग सूत्र
२. अपवाद सूत्र
३. उत्सर्ग- अपवाद सूत्र
६. अपवाद - अपवाद सूत्र
०
कुछ सूत्र ऐसे होते हैं, जिनमें एक का ग्रहण साक्षात् रूप से होता है पर अर्थतः वह तत्सदृश अन्य अर्थों का भी ग्राहक होता है। (जैसे - जहां क्रोधनिग्रह का उल्लेख होता है, अर्थतः उसमें माननिग्रह आदि का भी ग्रहण हो जाता है ।)
• कुछ सूत्र साधु-साध्वी के प्रत्येकविषयक होते हैं, जैसे- सलोम चर्म का ग्रहण निर्ग्रन्थों के लिए विहित है पर निर्ग्रन्थियों के लिए वही निषिद्ध है। निर्लोम चर्म निर्ग्रन्थों के लिए निषिद्ध एवं निर्ग्रन्थियों के लिए विहित है । (क ३/३, ४)
• अकृत्स्न चर्म विषयक सूत्र साधारण है। (क ३/६)
• विधिभिन्न तालप्रलम्ब के ग्रहण का विधान अपवादौत्सर्गिक सूत्र का उदाहरण है। (क १/५)
• उत्सर्ग मार्ग में उद्गम आदि दोषों से रहित विशुद्ध भक्तपान का ग्रहण ही विहित है। अपवाद पद में विपरीत द्रव्य का ग्रहण भी विरुद्ध नहीं है क्योंकि वह ज्ञान आदि गुणों का उपकारक है। इसी प्रकार अपवाद रूप से अनुज्ञात तालप्रलम्ब के ग्रहण के सूत्र के साथ अविधिभिन्न तालप्रलम्ब का साध्वियों के लिए निषेध करने वाले सूत्र का कोई विरोध दृष्टिगत नहीं होता है। (अपवाद मार्ग अनुज्ञात कार्य का भी पुनः प्रतिषेध किया जा सकता है और वही अपवादौत्सर्गिक सूत्र कहलाता है ।)
में
• उत्सर्ग सूत्र - गोचरचर्या करते हुए निर्ग्रथ अन्तर्गृह में नहीं बैठ सकते। (क ३/२१ )
• अपवाद सूत्र - वृद्ध, रोगी और तपस्वी यदि मूर्च्छित हो रहे हों .....तो वे अन्तर्गृह में बैठ सकते हैं। (क ३/२२) • अपवादौत्सर्गिक सूत्र -- फल का गूदा ग्राह्य है, गुठली नहीं । (आचूला १/१३५)
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आगम विषय कोश-:
• उत्सर्गापवादिक सूत्र - रात्रि अथवा विकाल वेला में अशनपान, वस्त्र- पात्र आदि ग्राह्य नहीं हैं। केवल पूर्वप्रतिलेखित एक शय्या - संस्तारक लिया जा सकता है। ( क १/४२, ४३) ० उत्सर्गौत्सर्गिक सूत्र - प्रथम प्रहर में गृहीत अशन आदि को पश्चिम प्रहर में नहीं रखा जा सकता। यदि कदाचित् रह जाए तो जो उसका भोग करता है, वह प्रायश्चित्तार्ह है। (क४/१२) • अपवाद - आपवादिक सूत्र - जिन सूत्रों में अपवाद का कथन हो, साथ ही अर्थ की दृष्टि से अनुज्ञा प्रवृत्त हो। यथा
भक्षु राजा के अंत:पुर में प्रवेश करता है, वह प्रायश्चित्त का भागी होता है। (नि ९/३,२९) (इसका आपवादिक सूत्र है - पांच कारणों से राजा के अंतःपुर में प्रवेश करता हुआ श्रमण निर्ग्रथ आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता । - द्र स्था ५/१०२)
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१२. उत्सर्ग- अपवाद का विषय विभाग
उस्सग्गेण भणियाणि जाणि अववादतो तु जाणि भवे । कारणजातेण मुणी!, सव्वाणि वि जाणितव्वाणि ॥ उस्सग्गेण निसिद्धाइँ, जाइँ दव्वाइँ संथरे मुणिणो । कारणजाते जाते, सव्वाणि वि ताणि कप्पंति ॥ (बृभा ३३२६, ३३२७)
यह ज्ञातव्य है कि उत्सर्ग और अपवाद रूप से जितने सूत्र प्रतिपादित हैं, वे कारण होने पर ही आचरणीय हैं।
उत्सर्गसूत्रों में साक्षात् उत्सर्ग विषय निबद्ध है, अर्थ की अपेक्षा कारण उत्पन्न होने पर उनमें भी प्रतिषिद्ध के आचरण की अनुज्ञा है । अपवादसूत्रों में साक्षात् रूप से तो सकारण अपवादविषय निबद्ध है, अर्थ की दृष्टि से उनमें भी उत्सर्गविषय निबद्ध है। वास्तव में सब सूत्रों में उत्सर्ग और अपवाद दोनों ही निबद्ध हैं। १३. विधान और निषेध की संगति
ण वि किंचि अणुण्णायं, पडिसिद्धं वा वि जिणरवरिंदेहिं । एसा तेसिं आणा, कज्जे सच्चेण होतव्वं ॥
तीर्थकृतां निश्चय - व्यवहारनयद्वयाश्रिता सम्यगाज्ञा मन्तव्या - यदुत 'कार्ये 'ज्ञानादावालम्बने 'सत्येन' सद्भावसारेण साधुना भवितव्यम्, न मातृस्थानतो यत्किञ्चिदालम्बनीयमित्यर्थः । अथवा सत्यं नाम संयमः तेन कार्ये
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