Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 675
________________ स्थविरकल्प स्थविरकल्प - संघबद्ध साधना करने वाले श्रमण- श्रमणी - वर्ग की आचार - मर्यादा । १. स्थविरकल्पी का स्वरूप २. स्थविरकल्पी गच्छवासी : आचार्य आदि * गच्छ के आधार : आचार्य आदि • श्रमणीवर्ग: प्रवर्तिनी, अभिषेका..... • गणधर : श्रमणीवर्गव्यवस्थापक ३. वृषभ : मंडलीनियोजक, कार्यचिन्तक * श्रमणी -रक्षक वृषभ की अर्हता * वृषभ- चिकित्सा की कालावधि * स्थविरकल्प : कल्पस्थिति का भेद * स्थविरकल्पी : स्थितकल्पी * सदृशकल्पी सांभाजिक ४. स्थविरकल्पी की प्रव्रज्या आदि • प्रव्रज्या के बाद शिक्षा * साधु द्विसंगृहीत, साध्वी त्रिसंगृहीत O * दशविध सामाचारी ५. सामाचारी के सत्ताईस बिंदु: श्रुत आदि ० स्थविरकल्पी की श्रुत- अर्हता संहनन, आतंक, उपसर्ग, वेदना o वसति, कतिजन ? स्थण्डिल, कब तक ? ० उच्चार, प्रश्रवण, अवकाश कितने ? o भिक्षाचर्या, लेपालेप, अलेप, आचाम्ल, प्रतिमा ६. जिनकल्प - स्थविरकल्प : आहार-विहार- काल • प्रातराश और सूत्रपौरुषी * भिक्षाचर्या से पूर्व कायोत्सर्ग ७. भिक्षा के लिए संघाटक-असंघाटक क्यों ? * रात्रि में अशन आदि का अग्रहण ८. दूर भिक्षा के लाभ • भिक्षाचर्या और स्वाध्याय में उद्यम ९. साध्वियों की आहारविधि : गणप्रभावना * श्रमण की आहारविधि १०. प्राघूर्णक का प्रवेशकाल और आतिथ्य ११. साधु की साध्वी - वसति में प्रवेशविधि ० सहभिक्षाविधि १२. साधु साध्वी के स्थान पर क्यों ? Jain Education International द्र संघ द्र विहार द्रवैयावृत्त्य द्र कल्पस्थिति द्र कल्पस्थिति द्र साम्भोजिक द्र आचार्य द्र सामाचारी द्र स्वाध्याय द्र महाव्रत द्र आहार ६२८ १३. वर्षा आदि में जाना निषिद्ध • ज्ञातिजनों में गमन का हेतु और विधि १४. रात्रि में एकाकी गमन का निषेध १५. शयनविधि, रत्नाधिक की प्राथमिकता १६. पृथक् वसति : आलोचना आदि की विधि १७. उपधि- प्रतिलेखन का काल १८. स्थविर - अवस्थिति : क्षेत्र आदि उन्नीस द्वार ० क्षेत्र, काल, चारित्र वेद ० लिंग, लेश्या, ध्यान, गणना * अभिग्रह के प्रकार ० प्रव्राजना- मुंडापना ० प्रायश्चित्त, कारण, परिकर्म आगम विषय कोश-: १९. सापेक्ष-निरपेक्ष के प्रायश्चित्त में अंतर २०. जिन स्थविर - कल्प: कृतयोगिता, धृति - संहनन २१. सापेक्ष-निरपेक्ष : वैयावृत्त्य और चिकित्सा * साधु-साध्वी चिकित्सा : विद्याप्रयोगविधि द्र मंत्रविद्या * साध्वी वैयावृत्त्य : साधु की अर्हता द्र वैयावृत्त्य द्र क्षेत्रप्रतिलेखना * गच्छवासी द्वारा क्षेत्रप्रतिलेखना * अवग्रह के प्रकार तथा उसके अधिकारी * पर्युषणाकल्प * मासकल्प * नौकाविहार-विधि द्र भिक्षाचर्या For Private & Personal Use Only द्र अवग्रह पर्युषणाकल्प द्र कल्पस्थिति द्र नौका १. स्थविरकल्पी का स्वरूप संजमकरणुज्जोवा, णिप्फातग णाण- दंसण- चरित्ते । दीहाउ वुड्ढवासो, वसहीदोसेहि य विमुक्का ॥ मोत्तुं जिणकप्पठिइं, जा मेरा एस वण्णिया हेट्ठा । एसा तु दुपदजुत्ता, होति ठिती थेरकप्पस्स ॥ संयमः सप्तदशविधः, तं कुर्वन्ति - यथावत् पालयन्तीति संयमकरणाः उद्योतकाः - तपसा प्रवचनस्योज्ज्वालकाः यद्वा सूत्रार्थपौरुषीकरणेन संयमकरणमुद्योतयन्ति ।" या शेषा सामाचारी वर्णिता सा 'द्विपदयुक्ता' उत्सर्गाउपवादपदद्वययुक्ता । (बृभा ६४८५, ६४८६ वृ) जो संयमी पृथ्वीकायसंयम आदि सतरह प्रकार के संयम का यथावत् पालन करते हैं, तपस्या के द्वारा प्रवचन की प्रभावनाअर्हत् वाणी को संज्वलित करते हैं, सूत्रपौरुषी और अर्थपौरुषी www.jainelibrary.org

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