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सम्यक्त्व
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आगम विषय कोश-२
किया जा रहा है। जमालि के मन में विचिकित्सा उत्पन्न हुई- मोक्ष का उपाय नहीं है। (आत्मा है, वह नित्य है, कर्ता है, भगवान महावीर क्रियमाण को कृत कहते हैं--यह मिथ्या है। यह भोक्ता है, मोक्ष है, मोक्ष का उपाय है-ये छह सम्यगदष्टि के प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है कि बिछौना क्रियमाण है, पर कृत नहीं है। स्थान हैं।-सन्मति ३/५५) इस प्रकार वेदनाविह्वल जमालि मिथ्यात्वमोहनीय के उदय से निह्नव असंज्ञी और अज्ञानी अनाभिग्रहिक मिथ्यात्वी होते हैं। कुछ बन गया।-श्रीआको १ निह्नव
संज्ञी भी अनाभिग्रहिक मिथ्यात्वी होते हैं। ० गोष्ठामाहिल-'मिथ्यात्व आदि के द्वारा गृहीत कर्म जीव के
९. सम्यक्त्वदीक्षा और वाचना के अयोग्य साथ एकीभूत हो जाते हैं'-गुरु के द्वारा इसकी व्याख्या सुनकर
तओ दुसण्णप्पा"दुढे मूढे वुग्गाहिए। वह विप्रतिपत्ति को प्राप्त हुआ। उसने कहा-कर्म का जीव के
दुःखेन-कृच्छ्रेण संज्ञाप्यन्ते -प्रतिबोध्यन्त इति साथ तादात्म्य संबंध होने पर जीव की प्रदेशराशि की तरह कर्मराशि को जीव से अलग नहीं किया जा सकता। इसलिए
दुःसंज्ञाप्याः प्रज्ञप्ताः । तद्यथा-'दुष्टः' तत्त्वं प्रज्ञापकं वा प्रति यह कथन उचित है कि कर्म जीव का स्पर्श करते हैं. उससे बद्ध
द्वेषवान् , स चाप्रज्ञापनीयः, द्वेषेणोपदेशाप्रतिपत्तेः।एवं मूढः'
गुण-दोषानभिज्ञः । व्युद्ग्राहितो नाम' कुप्रज्ञापक-दृढीकृतनहीं होते। 'साधु के यावज्जीवन तीन करण तीन योग से सावधयोग
विपरीतावबोधः।
(क ४/८७) के प्रत्याख्यान होते हैं'- नौवें प्रत्याख्यान पूर्व की इस व्याख्या को सम्मत्ते वि अजोग्गा, किमु दिक्खण-वायणासु दुवादी। सुनकर गोष्ठामाहिल विप्रतिपत्ति को प्राप्त हुआ। उसने कहा- ....... मोह
परिस्समो
होज्जा॥ जिस प्रत्याख्यान में अवधि होती है, वह प्रत्याख्यान आशंसा दोष
(बृभा ५२११) से दूषित होता है। श्रीआको १ निह्नव
दुःसंज्ञाप्य-कठिनाई से प्रतिबोध्य के तीन प्रकार हैं० मिथ्यात्व के तीन हेतु हैं-अभिनिवेश आदि। इनके उदाहरण
१. दुष्ट-तत्त्व या तत्त्वप्रज्ञापक के प्रति द्वेष रखने वाला। वह द्वेष हैं-गोष्ठामाहिल आदि।-श्रीआको १ गुणस्थान)
के कारण उपदेश को स्वीकार नहीं करता है,अतः अप्रज्ञापनीय है। ८. मिथ्यादर्शन के प्रकार ।
२. मूढ-गुणों और दोषों से अनभिज्ञ । मिच्छादसणं समासतो दुविहं-अभिग्गहितं अण- ३. व्युद्ग्राहित–दुराग्रही, कुप्रज्ञापक द्वारा जिसका विपरीत बोध भिग्गहितं च।
सदढ हो जाता है। ये त्रिविध व्यक्ति सम्यक्त्व-ग्रहण के भी योग्य संक्षेप में सिध्यान दोपकार का आभिडिक नहीं होते तो दीक्षा और वाचना के योग्य कैसे होंगे? इनको प्रज्ञप्ति अभिनिवेशात्मक मिथ्यात्व-सही तत्त्व को समझ लेने के बाद भी देने वाले प्रज्ञापक का श्रम निष्फल होता है। पूर्वाग्रह से ग्रस्त होना। २. अनाभिग्रहिक-अज्ञान आदि के १०. अक्रियावादी-कृष्णपक्षी कारण गलत तत्त्व को पकड कर रखना।
अकिरियावादी भवितो अभविओ वा नियमा ० आभिग्रहिक-अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व
किण्हपक्खिओ।
(दशा ६/३ की चू) अभिग्गहितं-णत्थि अप्या, ण णिच्चो, ण कुव्वति,
अक्रियावादी नियमतः कृष्णपक्षी (अपरीत संसारी) होता कतं न वेदेति. ण णिव्वाणं, णस्थि य मोक्खो -वातो। छ है चाहे वह भव्य हो या अभव्य। मिच्छत्तस्स ठाणाई। अणभिग्गहितं असन्नीणं सन्नीणंपि
....."अकिरियावादी यावि भवति–नाहियवादी केसिंचि। 'अण्णाणीओ वा। (दशा ६/३ की चू) नाहियपण्णे नाहियदिट्ठी, नो सम्मावादी, नो नितियावादी,
आभिग्रहिक मिथ्यात्व के छह स्थान हैं-आत्मा नहीं है, नसंति-परलोगवादी, णत्थि इहलोए णत्थि परलोए णत्थि माता वह नित्य नहीं है, कर्ता नहीं है, भोक्ता नहीं है, मोक्ष नहीं है, णत्थि पिता णत्थि अरहंता णत्थि चक्कवट्टी णत्थि बलदेवा
(दशाह
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