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आगम विषय कोश-२
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वास्तुविद्या
नंदे भोइय खण्णा, आरक्खिय घडण गेरु नलदामे। नलदाम ने तब अवसर देखकर सभी चोरों तथा उनके पुत्रों का मूतिंग गेह डहणा, ठवणा भत्ते सपुत्त सिरा॥ शिरच्छेद करवा डाला।
(व्यभा ७१५, ७१६)
वास्तुविद्या-गृहनिर्माण विद्या। आठ प्रकार के व्यक्ति वाद के योग्य नहीं हैं-१. धनाढ्य २. नृपति ३. पक्षवान् ४. बलवान् ५. प्रचण्ड क्रोधी ६. धर्मगुरु- ग्राम-संस्थान के प्रकार एवं स्वरूप विद्यागुरु ७. नीचजातीय व्यक्ति ८. विकृष्ट तपस्वी।। ...."तत्थ इमे संठाणा, हवंति खलु मल्लगादीया॥
(इनमें से कोई भी व्यक्ति यदि वाद के लिए अत्यंत आग्रह उत्ताणग ओमंथिय, संपुडए खंडमल्लए तिविहे। करे तो चातुर्य से ऐसा प्रयत्न करना चाहिये, जिससे उसकी वाद
भित्ती पडालि वलभी, अक्खाडग रुयग कासवए। करने की मानसिकता पूर्णतः समाप्त हो जाए।)
मज्झे गामस्सऽगडो, बुद्धिच्छेदा ततो उ रज्जूओ। चाणक्य-नलदाम दृष्टांत-चाणक्य ने नंद राजा को राज्यच्यत निक्खम्म मूलपादे, गिण्हंतीओ वइं पत्ता॥ कर चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक किया और नंद के सामन्तों को ओमंथिए वि एवं, देउल रुक्खो व जस्स मज्झम्मि। तिरस्कृत कर पदच्युत कर दिया। वे सभी सामन्त चन्द्रगुप्त के
कूवस्सुवरिं रुक्खो, अह संपुडमल्लओ नाम॥ आरक्षकों से सांठ-गांठ कर नगर में सेंध लगाकर चोरी करने
जइ कूवाई पासम्मि होंति तो खंडमल्लओ होइ। लगे। चाणक्य ने दूसरे आरक्षकों की नियुक्ति की। वे सामंत पुव्वावररुक्खेहिं, समसेढीहिं भवे भित्ती॥ इनसे भी सांठ-गांठ कर पूर्ववत् चोरी करने लगे, तब चाणक्य पासट्ठिए पडाली, वलभी चउकोण ईसि दीहा उ। प्रतिदिन परिव्राजक का वेश बनाकर नगर के बाहर घूमने लगा। चउकोणेसु जइ दुमा, हवंति अक्खाडतो तम्हा॥ एक दिन उसने देखा, तंतवायशाला में नलदाम नामक तंतुवाय वट्टाग्गारठि एहिं, रुयगो पुण वेढिओ तरुवरेहिं । बैठा है। उस समय उसका पुत्र खेल रहा था। वह रोता हुआ तिक्कोणो कासवओ, छुरघरगं कासवं बिंती॥ अपने पिता के पास आकर बोला-मकोड़े ने मुझे काट खाया।
(बृभा ११०२-११०८) नलदाम मकोडे के बिल के पास गया और जो मकोड़े बिल से ग्राम संस्थान के बाद पकार हैंबाहर निकले हुए थे, उन सबको मार डाला। फिर उसने बिल
१. उत्तानकमल्लकसंस्थित ७. भित्तिसंस्थित को खोदा और उसमें जो मकोड़े तथा उनके अंडे थे, उन पर
२. अधोमुखमल्लकसंस्थित ८. पडालिकासंस्थित घास डालकर जला डाला। चाणक्य ने यह सब देखकर पूछा
३. सम्पुटकमल्लकसंस्थित ९. वलभीसंस्थित तुमने बिल को खोदकर अंदर आग क्यों लगाई ? नलदाम बोला
४. उत्तानखंडमल्लकसंस्थित १०. अक्षपाटकसंस्थित 'अंडों से मकोड़े पैदा होकर कभी और भी काट सकते हैं।'
५. अधोमुखखंडमल्लकसंस्थित ११. रुचकसंस्थित चाणक्य ने उसे कोतवाल के रूप में नियुक्त कर दिया। नंद-पक्ष
६. सम्पुटखंडमल्लकसंस्थित १२. काश्यपसंस्थित के चोरों को यह ज्ञात हुआ। वे नलदाम के पास आए और
१. उत्तानमल्लकसंस्थान-जिस ग्राम के मध्यभाग में कूप है, बोले-हम तुम्हें चोरी के धन का बहुत बड़ा भाग देंगे। तुम
बुद्धि से उसके पूर्व आदि दिशाओं में छेद की परिकल्पना की हमारी रक्षा करना। नलदाम ने कहा-ठीक है। अब तुम सभी
जाती है। फिर कूप के अधस्तन तल से बुद्धिकृत छेद के द्वारा चोरों को विश्वास दिलाकर मेरे पास ले आओ। एक दिन सभी
रज्जुओं को दिशा-विदिशाओं में निकालकर घरों के मूलपाद के चोर नलदाम के पास एकत्रित हुए। नलदाम ने उनका सत्कार
ऊपर से ग्रहण करते हुए ग्रामपर्यन्तवर्ती वृति तक तिर्यक् विस्तारित सम्मान किया और दूसरे दिन सभी चोरों के लिए विशाल भोज
किया जाता है, फिर ऊपर अभिमुख होकर ऊंचाई में वे हर्म्यतलों की तैयारी की। सभी चोर अपने-अपने पुत्रों को साथ ले आए।
ए। के समीभूत होकर वहां पटहच्छेद से उपरत हो जाती हैं। इस
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