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आगम विषय कोश- २
दुविहो उ पंडओ खलु, दूसी - उवघापंडओ चेव । उवघा वि य दुविहो, वेए य तहेव उवकरणे ॥ आसित्तो ऊसित्तो, दुविहो दूसी उ होइ नायव्वो । आसित्तो सावच्चो अणवच्चो होड़ ऊसित्तो ॥ (बृभा ५१४९, ५१५१)
पण्डक के दो प्रकार हैं- दूषी पण्डक और उपघात पण्डक । दूषी पण्डक के दो प्रकार हैं
१. आसिक्त - जिसमें सन्तान उत्पादन का सामर्थ्य है। २. उपसिक्त - जो सन्तान उत्पादन के सामर्थ्य से विकल है। उपघात पण्डक के दो प्रकार हैं- वेद और उपकरण । ० वेदउपघात - उपकरणउपघात-दृष्टांत
पुवि दुच्चिण्णाणं, कम्माणं असुभफलविवागेणं । उवहम्मइ वेओ, जीवाणं पावकम्माणं ॥ जह हेमो उ कुमारो, इंदहमहे भूणियानिमित्तेणं । मुच्छिय गिद्धो यमओ, वेओ वि य उवहओ तस्स ॥ उवहय उवकरणम्मि, सेज्जायरभूणियानिमित्तेणं । तो कविलगस्स वेओ, ततिओ जाओ दुरहियासो ॥ (बृभा ५१५२-५१५४) • वेदउपघात - जब पापकर्मा जीव के पूर्व अर्जित दुष्कर्म का अशुभ फलदायी उदय होता है, तब उसका वेद उपहत होता है।
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एक बार राजकुमार हेम इन्द्रमह के अवसर पर इन्द्रस्थान में गया। वहां उसने नगर की पांच सौ रूपवती कुलबालिकाओं को देखा और पूछा- ये बालिकाएं क्यों आई हैं ? क्या चाहती हैं ? सेवकों ने बताया- ये इन्द्र से सौभाग्य का वर चाहती हैं। राजकुमार ने कहा - इन्द्र ने वर रूप में मुझे भेजा है, इसलिए इन सबको अन्तःपुर में ले जाओ। सेवक उन्हें अन्तःपुर में ले गया। राजकुमार ने सबके साथ शादी कर ली। वह उनमें अत्यन्त आसक्त था । आसक्ति के कारण उसका सारा वीर्य निर्गलित हो गया, उससे वेद का उपघात हुआ और वह मृत्यु को प्राप्त हो गया।
• उपकरण उपघात - कपिल मुनि शय्यातर की लड़की में आसक्त हो गया। उसने उसका अपहरण कर लिया। लड़की के पिता ने कपिल को देखा और उसका लिंगच्छेद कर डाला। उसके कारण उसमें नपुंसक वेद का उदय हुआ। वह एक वेश्या के घर चला गया। वहां उसके स्त्रीवेद का भी उदय हो गया।
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वेद
६. क्लीब नपुंसक : स्वरूप और प्रकार कीवस्स गोन्न नामं, कम्मुदय निरोहें जायती ततिओ
....... स च चतुर्धा - दृष्टिक्लीबः शब्दक्लीब आदिग्धक्लीबो निमन्त्रणाक्लीबश्चेति । तत्र यस्यानुरागतो विवस्त्राद्यवस्थं विपक्षं पश्यतो मेहनं गलति स दृष्टिक्लीबः । यस्य तु सुरतादिशब्दं शृण्वतः स द्वितीयः । यस्तु विपक्षेणोपगूढो निमन्त्रितो वा व्रतं रक्षितुं न शक्नोति स यथाक्रममादिग्धक्लीबो निमन्त्रणाक्लीबश्चेति । (बृभा ५१६४ वृ)
क्लब गुणनिष्पन्न नाम है। मैथुन मात्र के अभिप्राय से तथा मोहोदय से जिसके वीर्य का क्षरण होने लग जाता है, वह क्लीब है। क्षरित होते हुए वीर्य का निरोध करने वाला कालान्तर में नपुंसक हो जाता है। उसके चार प्रकार हैं
१. दृष्टिक्लीब - अनुराग से अपने विपक्ष को निर्वस्त्र देखते ही जिसका वीर्य स्खलित हो जाता है।
२. शब्दक्लीब- शब्द सुनने से जिसके वीर्य का क्षरण होता है। ३. आदिग्धक्लब - विपक्ष का आलिंगन करने से जिसके वीर्य का क्षरण हो जाता है।
४. निमन्त्रणाक्लीब - भोग के लिए निमन्त्रित करने पर जो अपने स्वीकृत व्रत का पालन नहीं कर सकता ।
७. वातिक नपुंसक का स्वरूप
उदएण वादियस्सा, सविकारं जा ण तस्स संपत्ती ।''''' (बृभा ५१६५)
मोह के उदय से जिसका लिंग विकारग्रस्त हो जाता है और प्रतिसेवना के बिना शांत नहीं होता, वह वेद का निरोध करने पर नपुंसक बन जाता है।
८. दीक्षा के अर्ह - अनर्ह : नपुंसक
पुंसा दुविहा- इत्थीणपुंसगा य पुरिसणपुंसगा य । इत्थीणपुंसगा अपव्वावणिज्जा । जे ते पुरिसणपुंसगा अप्पडिसेविणो छज्जणा - - वद्धिय, चिप्पिय, मंत-ओसहिउवहता, ईसिसत्तो, देवसत्तो ॥ (निभा ८७ की चू) नपुंसक के दो भेद हैं- पुरुष नपुंसक और स्त्री नपुंसक । स्त्रीनपुंसक अप्रव्राजनीय हैं। छह प्रकार के पुरुष नपुंसक
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