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आगम विषय कोश-२
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श्रुतज्ञान
सौंपते हुए कहा-इनकी सुरक्षा करना, मांगने पर लौटा देना। एक
१२. आगम-वाचना में संयमपर्याय की कालमर्यादा पुरुष ने उस घट के नीचे राख लगाकर, उसे कंटिकाओं से ० संयमपर्याय की कालमर्यादा क्यों? वेष्टित कर कपाटयुक्त निर्बाध प्रदेश में रख दिया और तीनों * उत्क्रम से आगमवाचना का निषेध द्र वाचना संध्याओं में उसकी देखभाल करता रहा। दूसरे पुरुष ने शर्कराघट * अपरिणामक"वाचना के अयोग्य द्र अंतेवासी को कीटिकानगर के पास स्थापित कर दिया। शक्कर की गंध से * छेदसूत्रपठन के योग्य
द्र छेदसूत्र समागत चींटियों ने मद्रा को विद्रवित नहीं किया. नीचे से घट |१३. श्रुत का उद्देश-समुद्देश-अनुज्ञा-काल को चालनी कर दिया और उस जर्जरित बने घट में से सारी * सर्वश्रुत का अनुयोग
द्र अनुयोग शक्कर खा डाली। कुछ समय पश्चात् राजा ने घड़े मंगवाये।
* आगाढ-अनागाढयोग : स्वाध्यायभूमि द्र स्वाध्याय
* जिनकल्प, परिहारतप, पारांचित, प्रतिमा प्रथम पुरुष को पुरस्कृत किया, दूसरे पुरुष को प्रमाद करने के कारण दण्डित किया। इसी प्रकार मुद्रा रूपी मुनि-लिंग होने पर
और स्थविरकल्प में श्रुतअर्हता द्र सम्बद्ध नाम भी प्रमादयुक्त साधु का शक्कर रूपी चारित्र अपराध रूप चींटियों
|१४. जीव में श्रुत की भजना से नष्ट हो जाता है। जो संयमश्रेणी में आरूढ़ होता है, वह
० अकेवली भी केवलीतुल्य
* गीतार्थ और केवली : प्रज्ञप्ति में तुल्य द्र गीतार्थ यदा-कदा प्रमाद करके भी संभल जाता है।
* चतुर्दशपूर्वी की विलक्षणताएं
द्र आगम श्रावक-सम्यग्दृष्टि। व्रती
द्र संज्ञी ० श्रुतज्ञान तृतीयनेत्र * प्रतिमाधारी श्रावक
द्र उपासकप्रतिमा
|१५. श्रुत को प्रमाण मानने वाला प्रमाणभूत * श्रुतसम्पदा
द्र गणिसम्पदा श्रुतज्ञान-शब्द,शास्त्र, संकेत, प्रकम्पन आदि के माध्यम से * आचार्य की अवज्ञा से श्रत की हानि द्र आचार्य होने वाला ज्ञान।
* श्रुत व्यवहार का स्वरूप
द्र व्यवहार
१६. श्रुतग्रहण हेतु वृद्धवास की अनुज्ञा १. श्रुत के कर्ता कौन?
* ज्ञानहेतु उपसम्पदा
द्र उपसम्पदा ___ * श्रुतज्ञान : परोक्षज्ञान
द्रज्ञान १७. श्रुत-स्वाध्याय की निष्पत्ति २. श्रुतज्ञान के हेतु
| * श्रुतपरावर्तन से कालज्ञान
द्र जिनकल्प ३. द्रव्यश्रुत-भावश्रुत
१८. अप्रमाद से श्रुतज्ञान की वृद्धि ४. अक्षर श्रुत का एक भेद : संज्ञाक्षर
१. श्रुतज्ञान के कर्ता कौन? ५. अक्षर-उपलब्धि-अनुपलब्धि : संज्ञी-असंज्ञी ६. अक्षर-अनक्षरश्रुत की पूर्वता
तं पुण केण कतं तू, सुतनाणं जेण जीवमादीया। . ७. सपर्यवसित श्रृत : देवभव में श्रुतग्रंथों की स्मृति
नजंति सव्वभावा, केवलनाणीण तं तु कतं॥ ___ * गमिक-अगमिक श्रुत द्र आगम
(व्यभा ४०४९) ८. तित्थोगाली में पूर्व-विच्छेद-विवरण
वह श्रुतज्ञान किसके द्वारा कृत है, जिसके बल पर परोक्षज्ञानी * उत्थानश्रुत आदि का अतिशय
द्र स्वाध्याय भी प्रत्यक्षज्ञानी की भांति जीव, अजीव आदि सभी भावों को जान , * स्वप्नभावना ग्रंथ
द्र स्वप्न लेते हैं? वह केवलज्ञानी द्वारा कृत है। ९. सूत्रग्रहण-प्रतिबोध : गज-श्लीपदी दृष्टांत
२. श्रुतज्ञान के हेतु |१०. बारह वर्ष सूत्रग्रहण, बारह वर्ष अर्थग्रहण
मतिविसयं मतिनाणं, मतिपुव्वं पुण भवे सुयन्नाणं। ११. सूत्र-अर्थ"कल्पिक : आर्यवज्र दृष्टांत
तं पुण समतिसमुत्थं, परोवदेसा व सव्वं पि॥
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