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आगम विषय कोश - २
श्रेयान् आर्यिकामपि गुरुराचार्यो गणी उपाध्यायः गणिनी प्रवर्तिनी रक्षन्ति । (व्यभा १५८९, १५९० वृ)
प्रवर्तिनी स्वच्छंदचारिणी साध्वी पर सदा अनुशासन करती । स्वच्छन्दता के मुख्य बिंदु पांच हैं
१. स्त्रीकथा आदि करना ।
२. गृहस्थ को जादू-टोना, मंत्र-तंत्र का प्रयोग बताना ।
३. कामोत्तेजक चेष्टा करना ।
४. शरीर और उपकरणों की विभूषा करना ।
५. पूर्वरात्र - अपररात्र में स्वाध्याय न करना ।
साध्वी के लिए प्रवर्तिनी के आदेश निर्देश में रहना श्रेयस्कर है। आचार्य, उपाध्याय और प्रवर्तिनी - ये तीनों साध्वी की सुरक्षा करते हैं। साध्वी त्रिसंगृहीत होती है। (द्र आचार्य)
* प्रवर्तिनी : श्रमणीगणसंचालिका
द्र स्थविरकल्प निग्गंथी कप्पड़ से पवत्तिणीनीसाए चेलं पडिग्गाहित्तए । (क ३/१३) साध्वी प्रवर्तिनी की निश्रा में वस्त्र ग्रहण करे । ...... एसा पवत्तिणी भे, जोग्गा गच्छे बहुमता य ।। सा एय गुणोवेता, सुत्तत्थेहिं पकप्पमज्झयणं ।'' (व्यभा २३१०, २३१४ वृ)
निशीथ के सूत्र और अर्थ को पढ़ चुकी है तथा गच्छ में बहुमान्य है, वह गुणयुक्त साध्वी प्रवर्तिनीपद के योग्य है।
कप्पड़ पवत्तिणीए अप्पतइयाए ॥ गणावच्छेइणीए अप्पचउत्थाए हेमंतगिम्हासु चारए ॥ कप्पड़ पवत्तिणीए अप्पचउत्थाए'''''''''गणावच्छेइणीए अप्पपंचमाए वासावासं वत्थए । (व्य ५ / २, ४, ६, ८)
हेमंत और ग्रीष्मऋतु में प्रवर्तिनी दो साध्वियों के साथ तथा गणावच्छेदिनी तीन के साथ विहरण कर सकती है।
वर्षावास में प्रवर्तिनी तीन साध्वियों के साथ तथा गणावच्छेदिनी चार साध्वियों के साथ रह सकती है।
( गणावच्छेदिनी गणावच्छेदक की भांति साध्वीवर्ग की व्यवस्था का दायित्व-निर्वहन करती है ।)
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प्रवर्तिन्या गणावच्छेदिन्या वा उत्तगेन संहननेन...... उत्तमया च धृत्या सूत्रमर्थश्च भूयान् गृहीतः ।
(व्यभा २३०६ की वृ)
के कारण विपुल श्रुत ग्रहण कर लेती हैं।
संघ
प्रवर्तिनी और गणावच्छेदिनी उत्तम संहनन और उत्तम धृति
० आचार्य आदि के अभाव में उत्पन्न दोष ....... आयरियादीण
जत्थ
गच्छम्म | पंचण्हं होतऽसती, एगो च तहिं न वसितव्वं ॥ एवं असुभ - गिलाणे, परिण्णकुलकज्जमादि वग्गे उ । अण्णऽसति ससल्लस्सा, जीवितघाते चरणघातो ॥
(व्यभा ९२०, ९२१ )
जिस गच्छ में आचार्य, उपाध्याय, गणावच्छेदक, प्रवर्तक और स्थविर - ये पांचों नहीं होते या इन पांचों में से कोई एक नहीं होता, उस गच्छ में नहीं रहना चाहिए। इनके न होने से मुख्यतः पांच दोष उत्पन्न होते हैं
०
० अशुभ- मृतक की परिष्ठापनविधि आदि में कठिनाई ।
• ग्लान की सेवा - व्यवस्था का अभाव ।
परिज्ञा - अनशनधारी की समाधि में बाधा ।
० कुल - संघ - कार्य आदि में बाधा ।
आलोचना के अभाव में सशल्य मरण से चरणनाश। ५. गणिविहीन गण नहीं
नच्चणहीणा व नडा, नायगहीणा व रूविणी वावि । चक्कं च तुंबहीणं, न भवति एवं गणो गणिणा ॥ (व्यभा २५९५ )
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जैसे नर्तनहीन नट, नायकविहीन रूपवती स्त्री और तुम्बहीन चक्र नहीं होता, वैसे ही गणी के बिना गण नहीं होता । ६. निरहंकारी : गण में मान्य व्यवहारी
गारवरहितेण तहिं, ववहरियव्वं तु संघमज्झम्मि।...... परिवार - इड्डि-धम्मकहि-वादि-खमगो तहेव नेमित्ती । विज्जा राइणियाए, गारवोत्ति ......जदि
अट्ठा होति ॥ अगीतो..... ॥
गारवेण
जंपेज्ज,
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