Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 577
________________ व्यवहार चेत् प्रगुणीभवति ततः सुन्दरमथ न भवति तर्हि भक्तविवेकः (व्यभा २०२१ २०२२ २०३० वृ) कर्त्तव्यः । आचार्य छहमास पर्यंत रुग्ण की सेवा करवाते हैं। फिर भी वह स्वस्थ न हो, तब तक क्रमशः तीन वर्ष के लिए कुल को, एक वर्ष के लिए गण को और फिर संघ को सौंप देते हैं। संघ यावज्जीवन उसकी सेवा - चिकित्सा करता है । यह कालावधि उसके लिए है, जो भक्तप्रत्याख्यान (अनशन) करने में असमर्थ है । जो भक्तपरिज्ञा कर सकता है, वह अठारह महीने चिकित्सा करने पर स्वस्थ न हो, तो अनशन करे। अथवा दूसरा आदेश यह है- सारा गच्छ आचार्य के अधीन होता है तथा आचार्य निरंतर यथाशक्ति सूत्र अर्थनिर्णय में प्रवृत्त होते हैं, अतः आचार्य की चिकित्सा जीवनपर्यंत करनी चाहिए। वृषभ बारह वर्ष तक चिकित्सा करवाए ताकि उस काल में समस्त गच्छ का भार उद्वहन करने में समर्थ कोई अन्य वृषभ तैयार हो जाये। फिर शक्ति होने पर अनशन करे। रुग्ण भिक्षु का चिकित्साकाल अठारह मास है । २१. असाध्य रोगी को अनशन की प्रेरणा किरियातीतं गाउं, जं इच्छति एसणाए जं तत्थ । सद्भावणा परिण्णा, पडियरण कहा णमोक्कारो ॥ (बृभा ३७७८) कोई साधु अथवा साध्वी उपचार करने पर भी स्वस्थ न हो, तो उसके रोग को असाध्य जानकर पूछा जाए कि तुम्हारी समाधि कैसे रहे? वह जिस द्रव्य को चाहे, उसकी एषणा की जाए। वह द्रव्य देकर उसमें अनशन की सघन इच्छा पैदा की जाए। अनशन स्वीकार कर लेने के पश्चात् प्रयत्नपूर्वक उसकी परिचर्या की जाए, धर्मकथा और नमस्कार महामंत्र सुनाया जाये, जिससे वह अनशन की सम्यक् आराधना कर सके। वैर- शत्रुता। - व्यवहार — प्रवृत्ति और निवृत्ति की हेतुभूत व्यवस्था । १. व्यवहार के निर्वचन * व्यवहार और प्रायश्चित्त एकार्थक २. व्यवहारी व्यवहार-व्यवहर्त्तव्य - Jain Education International द्र अधिकरण ५३० द्र प्रायश्चित्त आगम विषय कोश-: ३. द्रव्य-भाव व्यवहारी : कसौटी ४. व्यवहारी (आलोचनार्ह) की अर्हता लौकिक-लोकोत्तर व्यवहर्त्तव्य ५. • अव्यवहर्त्तव्य : कुंभकार दृष्टांत ६. व्यवहार के पांच प्रकार प्रधानता गौणता ० प्रथम चार व्यवहारों के धारक ७. आगम व्यवहार के भेद-प्रभेद ० प्रत्यक्ष-परोक्ष आगम व्यवहारी ८. प्रत्यक्ष-परोक्षज्ञानी: प्रायश्चित्तदान में समानता ० नालीधमक दृष्टांत ९. आगम व्यवहारी का स्वरूप १०. श्रुतव्यवहारी का स्वरूप • श्रुतव्यवहार : भद्रबाहु द्वारा निर्यूढ श्रुत * व्यवहार पठन की अर्हता * आलोचनार्ह : आगम- श्रुत-व्यवहारी ११. आज्ञा व्यवहार का स्वरूप शिष्य की परीक्षा ० आज्ञा व्यवहार की एक अन्य व्याख्या १२. धारणा व्यवहार का स्वरूप १३. जीत व्यवहार का स्वरूप ० जीत व्यवहार श्रुत-उपधान के संदर्भ में १४. जीत व्यवहार के आधार पर प्रायश्चित्त १५. सावद्य-निरवद्य जीत व्यवहार १६. जीत व्यवहार प्रवर्तन: बारह वस्तुओं का विच्छेद १७. जीत व्यवहार कब तक ? १८. व्यवहार के भेद आभवद और प्रायश्चित्त * आभवद व्यवहार अधिकारी : ० क्षेत्र आभवद्-श्रुत आभवद् व्यवहार • सुख-दुःख आभवद्-मार्ग आभवद् व्यवहार पश्चात्कृत शिष्य आभवद् व्यवहार विनयोपसम्पद् आभवद् व्यवहार * : द्र छेदसूत्र द्र आलोचना ***** For Private & Personal Use Only o • श्रुत आदि आभवद् व्यवहार का लाभ १९. गीतार्थ व्यवहर्त्तव्य, गीतार्थ के साथ व्यवहार २०. सम्यग् निर्णय में मध्यस्थता अनिवार्य २१. संव्यवहारी आराधक : आठ व्यवहारी शिष्य द्र अवग्रह द्र आचार्य १. व्यवहार के निर्वचन ....विविहं वा विहिणा वा ववणं हरणं च ववहारो ॥ , www.jainelibrary.org

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