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आगम विषय कोश - २
वृद्ध - दोनों में शैक्ष परिवार वाला रहे, चिरप्रव्रजित परिवार वाला विहार करे । साध्वियों की भी यही विधि है । अन्तर इतना है कि तरुणी और वृद्धा हों तो वृद्ध साध्वियां विहार करें, तरुणीवर्ग वहां रहे ।
८. साध्वीक्षेत्र और कुलस्थविर : भोजिक दृष्टांत ......थेरा पत्ता, दट्टु निक्कारणट्ठियं तं तु। भोइयनायं काउं, आउट्टि विसोहि निच्छुभणा ॥ एवं ता दप्पेणं, पुट्ठो व भणिज्ज कारण ठिओ मि ....... (बृभा २२०५, २२०६)
एक गांव में एक कुलस्थविर आए। उन्होंने साधुओं को ग्राम के प्रवेशद्वार पर ठहरे हुए देखकर पूछा- आर्य ! आप संयतीक्षेत्र में क्यों ठहरे हैं ? यदि निष्कारण ही ठहरे हों, तो स्थविर' भोगिक दृष्टांत' से उनको समझाए और वे विहरण करने के लिए तत्पर हो जाएं तो प्रायश्चित्त देकर उन्हें विहार कराए। स्थविर के पूछने पर यदि वे कहें कि सप्रयोजन यहां ठहरे हैं तो न प्रायश्चित्त प्राप्त होता है और न वहां से विहार करना होता है।
आभीराणं गामो, गामद्दारे य देउलं रम्मं । आगमण भोइयस्स य, ठाइ पुणो भोइओ तहियं ॥ महिलाजणो यदुहितो, निक्खमण पवेसणं च सिं दुक्खं । सामत्थणा य तेसिं, गो-माहिससन्निरोधो य ॥ ....... गामस्स विवच्छाओ, बाहिं ठाविंसु गावीओ ॥ वच्छग-गोणीसद्देण असुवणं भोइए अहणि पुच्छा । सब्भावे परिकहिए, अन्नम्मि ठिओ निरुवरोहे ॥ (बृभा २१९९, २२००, २२०२, २२०३ )
आभीरों के एक गांव में प्रवेश के द्वार के पास रमणीय देवकुल था। एक बार भोजिक ( ग्रामस्वामी) का वहां आगमन हुआ, वह वहां ठहरा। लज्जा के कारण महिलाओं का प्रवेशनिर्गम दुष्कर हो गया। उन्हें दुःखी देखकर आभीरों ने पर्यालोचन किया और अपनी गायों-भैंसों को गांव के बाहर तथा बछड़ों को गांव के भीतर रखा और ग्रामद्वार को बंद कर दिया । रातभर वे विस्वर स्वर में एक-दूसरे को पुकारते रहे। भोगिक को नींद नहीं आई। सूर्योदय होने पर उसने जिज्ञासा की तो आभीरों ने सही स्थिति बता दी । भोगिक अन्यत्र निर्बाध स्थान में ठहर गया ।
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शय्या
९. एक द्वार वाले क्षेत्र में रहना निषिद्ध
से गामंसि वा जाव रायहाणिसिं वा एगवगडाए एगदुवारा एगनिक्खमणपवेसाए नो कप्पइ निग्गंथाण य निग्गंथीण य एगयओ वत्थए ॥ (क १/१०) वगडा उ परिक्खेवो, पुव्वत्तो सो उ दव्वमाईओ । दारं गामस्स मुहं, सो चेव य निग्गम-पवेसो ॥ एगवगडेगदारा, एगमगा अग एगा य। चरिमो अणेगवगडा, अणेगदारा य भंगो उ॥ एगवगडं पडुच्चा, दोण्ह वि वग्गाण गरहितो वासो । जइ वसइ जाणओ ऊ, तत्थ उ दोसा ... ॥
वगडा-द्वारयोश्चत्वारो भंगा: पर्वतादिपरिक्षिप्ते क्वचिद् ग्रामादौ । प्राकारादिपरिक्षिप्ते चतुर्द्वारनगरादौ । पद्मसरःप्रभृतिपरिक्षिप्ते बहुपाटके ग्रामादौ । पुष्पावकीर्णगृहे ग्रामादौ । (बृभा २१२७, २१२९, २१३२ वृ) निर्ग्रथ और निर्ग्रथी एक वगडा ( बाड़ का घेरा / परिधि ), एक द्वार और एक निष्क्रमण-प्रवेश वाले ग्राम यावत् राजधानी में एक साथ नहीं रह सकते।
ग्राम के चारों ओर की परिधि वगडा कहलाती है। वह द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से अनेक प्रकार की है। ग्राम का जो मुख है, वह द्वार कहलाता है। उससे निर्गमन और प्रवेश होता है। वगडा-द्वार के चार विकल्प हैं - १. एक वगडा एक द्वार । यथापर्वत से परिक्षिप्त एक द्वार वाला ग्राम।
२. एक वगडा अनेक द्वार । यथा- प्राकार आदि से परिक्षिप्त वह नगर, जिसके चारों दिशाओं में चार द्वार हों ।
३. अनेक वगडा एक द्वार । यथा- वह ग्राम, जहां द्वार एक हो, किन्तु पद्मसर आदि से घिरे हुए अनेक पाटक (मुहल्ले) हों। ४. अनेक वगडा अनेक द्वार । यथा - पुष्पावकीर्णगृह वाला ग्राम ।
जिस नगर का एक ही द्वार हो, वहां साधु-साध्वियों का एकत्र रहना निन्दनीय है । जानते हुए भी जो वहां निवास करता है, वह अनेक दोषों का सेवन करता है।
१०. प्रतिबद्धशय्यानिषेध : पूपलिकाखाद दृष्टांत
नो कप्पड़ निग्गंथाणं पडिबद्धसेज्जाए वत्थए |..... कप्पड़ निग्गंथीणं..." ॥ ( क १/३०, ३१)
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