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विहार
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आगम विषय कोश-२
श्रमणी-रक्षक की नौ अर्हताएं हैं-१. कृतकरण-सुरक्षाकर्म निष्कारणिक-उत्तरापथ में धर्मचक्र, मथुरा में देवनिर्मित स्तूप, में अभ्यस्त। २. धृति-सम्पन्न। ३. सूत्रार्थ को जानने वाला। ४. कोशल में जीवंतस्वामी की प्रतिमा तथा तीर्थंकरों की जन्म आदि उस श्रमणीवर्ग के भ्राता आदि संबंध वाला। ५. शारीरिक बल से भूमियां-इन्हें देखने के लिए जाने वाले। युक्त। ६. निद्रा और इन्द्रियों को जीतने वाला। ७. कुशल। ८. उस २. आहिण्डक-सतत भ्रमणशील मुनि। इनके दो प्रकार हैंभूमि के लोगों से परिचित।९. मध्यम वयःप्राप्त।
० उपदेश आहिण्डक-सूत्र और अर्थ का अध्ययन कर गुरु के ४. पादविहारी के प्रकार : उपदेश आहिण्डक.....
निर्देशानुसार नाना देशों के आचार-व्यवहार, भाषा आदि के ज्ञान के .' दूताऽऽहिंड विहारी, ते वि य होंती सपडिवक्खा॥
लिए देशाटन करने वाले भावी आचार्य। दूइज्जंता दुविधा, णिक्कारणिगा तहेव कारणिगा।
० अनुपदेश आहिण्डक-कुतूहलवश देश-दर्शन करने वाले मुनि।
३. विहारी-मासकल्पविहारी। इनके दो प्रकार हैंअसिवादी कारणिता, चक्के थूभाईता इतरे॥ उवदेस अणुवदेसा, दुविहा आहिंडगा मुणेयव्वा।
० गच्छगत-ऋतुबद्ध काल में मासकल्पविहारी गच्छवासी।
० गच्छनिर्गत-जिनकल्पिक, प्रतिमाप्रतिपन्न, यथालंदिक और विहरंता वि य दुविधा, गच्छगता निग्गता चेव॥ अध्वप्रतिपन्नास्त्रिविधाः-द्रवन्त आहिण्डका विहारि
शुद्धपारिहारिक-ये विधिपूर्वक गच्छ से निर्गमन कर अपने
अपने कल्प के अनुसार विहरण करते हैं। जो संघीय सारणाणश्च। तत्र द्रवन्तः-ग्रामानुग्रामं गच्छन्तः, आहिण्डका:सततपरिभ्रमणशीलाः, विहारिणः-मासं मासेन विहरन्तः।
वारणा से परित्यक्त होकर अविधि से निर्गमन करते हैं, वे एकाकी ..."उपधेर्लेपस्य वा निमित्तं गच्छस्य वा बहुगुणतरमिति कृत्वा,
स्वच्छंदविहारी होते हैं। आचार्यादीनां वा आगाढे कारणे ये द्रवन्ति ते कारणिकाः। ये
___ उद्दद्दरे सुभिक्खे, खेमे निरुवद्दवे सुहविहारे। पुनरुत्तरापथे धर्मचक्रं मथुरायां देवनिर्मितस्तूपं आदिशब्दात्
जइ पडिवज्जति पंथं, दप्पेण परं न अन्नेणं॥ कोशलायां जीवन्तस्वामिप्रतिमा तीर्थकृतां वा जन्मादिभूमय
(बृभा ३०५३) एवमादिदर्शनार्थं द्रवन्तो निष्कारणिकाः।ये सूत्रा-ऽर्थी गृहीत्वा जहां पर्याप्त भिक्षा प्राप्त हो, आहार सुलभ हो, शत्रुसेना भविष्यदाचार्या गरूणामपदेशेन विषया-ऽऽचार-भाषो- आदि का भय न हो. महामारि आदि उपद्रव न हों. मासकल्पपलम्भनिमित्तमाहिण्डन्ते ते उपदेशाहिण्डकाः येत कौतकेन विधि से सखपर्वक विहरण संभव हो. ऐसे जनपद के होने पर भी देशदर्शनं कुर्वन्ति तेऽनुपदेशाहिण्डकाः। गच्छवासिनः यदि मुनि केवल दर्प से (देशदर्शन आदि के निमित्त) पथपरिव्रजन ऋतुबद्धे मासं मासेन विहरन्ति। गच्छनिर्गता द्विविधाः- करता है, तो वह प्रायश्चित्त का भागी होता है। विधिनिर्गता अविधिनिर्गताश्च। विधिनिर्गताश्चतुर्धा- ५. भावी आचार्य के लिए देशाटन अनिवार्य जिनकल्पिकाः प्रतिमाप्रतिपन्ना यथालन्दिकाः शुद्धपारिहारि- जइ वि पगासोऽहिगओ, देसीभासाजुओ तहा वि खलु। काश्चेति। अविधिनिर्गताः सारणादिभिस्त्याजिता एकाकी- उंदुय सिया य वीसुं, एरगमाई य पच्चक्खं ॥ भूताः।
___ (बृभा ५८२३-५८२५ वृ) जो वि पगासो बहुसो, गुणिओ पच्चक्खओ न उवलद्धो। मार्गप्रतिपन्न मुनि तीन प्रकार के होते हैं
जच्चंधस्स व चंदो, फुडो वि संतो तहा स खलु ॥ १. द्रोता-एक गांव से दूसरे गांव जाने वाले मनि के दो प्रकार हैं
आयरियत्तअभविए, भयणा भविओ परीइ नियमेणं। ० कारणिक-अशिव, दुर्भिक्ष, राजद्वेष आदि कारणों से गमन करने
अप्पतइओ जहन्ने, उभयं किं चाऽऽरियं त्तं ॥ वाले। अथवा वस्त्र, पात्र, लेप आदि लाने के लिए, गच्छ का
"उन्दुकम्' इति स्थानम्। सिय'त्ति स्यात् शब्दो भवत्यर्थे उपकार करने के लिए तथा आचार्य आदि के आगाढ कारण
आशंकायां भजनायां वा।... वीसुं' ति विष्वक् पृथगित्यर्थः । उत्पन्न होने पर गमन करने वाले।
'एरका' गुन्द्रा भद्रमस्तक इत्यर्थः पयः पिच्चंनीरमित्यादयश्च
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