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आगम विषय कोश--२
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पर्युषणाकल्प
ग्रहण करने से एक बार खाने के बाद शेष आहार को रख देने से भिक्षु अथवा भिक्षुणी गृहपति के घर में भिक्षा की प्रतिज्ञा से वह ठंडा हो जाता है, वह आहार उसके दुर्बल शरीर के प्रवेश कर पानक-जात (धोवन) को जाने-आटे का धोवन, अनुकूल नहीं होता।
उबले हुए केर आदि का धोवन, चावल का धोवन अथवा इस १२. तप और पानकप्रमाण
प्रकार का अन्य धोवन, जो अनाम्ल (जिसका स्वाद न बदला) ___वासावासं पज्जोसवियस्स निच्चभत्तियस्स भिक्खुस्स
हो, अव्युत्क्रांत (जिसकी गंध न बदली) हो, अपरिणत (जिसका कप्पंति सव्वाइं पाणगाइं पडिगाहेत्तए॥.."चउत्थभत्तियस्स
रंग न बदला) हो, विरोधी शस्त्र के द्वारा जिसके जीव ध्वस्त न भिक्खस्स कप्पंति तओ पाणगाई..... उस्सेडम संसेडम
हुए हों, उस अधुनाधौत-तत्काल के धोवन को अप्रासुक-अनेषणीय चाउलोदगं "छट्ठभत्तियस्सतिलोदए तुसोदए जवोदए॥
मानता हुआ मिलने पर ग्रहण न करे। ..."अट्ठमभत्तियस्स"आयामए सोवीरए सुद्धवियडे ॥...
____ यदि भिक्षु ऐसा जाने-पानक चिरधौत (अन्तर्मुहूर्त्तकाल के
बाद का धोवन), आम्ल (स्वाद बदला हुआ), व्युत्क्रांत (गंध विकिट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पइ एगे उसिणवियडे पडिगाहेत्तए, से वि य णं असित्थे 'नो वि य णं' ससित्थे॥
बदली हुई), परिणत (रंग बदला हुआ) और विध्वस्त (शस्त्र से
उपहत) है, उसे प्रासुक और एषणीय मानता हुआ मिलने पर ग्रहण __ (दशा ८ परि सू २४४-२४८) (दशा
करे। वर्षावास में स्थित नित्यभोजी भिक्षु सब प्रकार के पानक से भिक्खूवा भिक्खुणी वा गाहावइ-कुलं"अणुपविढे ग्रहण कर सकता है। चतुर्थभक्त (उपवास) वाला भिक्षु तीन समाणे सेज्जं पुण पाणगजायं जाणेज्जा, तं जहा-तिलोदगं प्रकार के पानक ग्रहण कर सकता है-१. उत्स्वेदिम-आटे का वा, तुसोदगंवा, जवोदगं वा, आयामं वा, सोवीरं वा, सुद्धधोवन। २. संसेकिम-उबले हुए केर आदि का धोवन। ३. चाउ
वियडं वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं पाणगजायं पव्वामेव लोदक-चावल का धोवन ।
आलोएज्जा-आउसो! त्ति वा भगिणि! त्ति वा, दाहिसि मे षष्ठभक्त (बेले की तपस्या) वाला भिक्षु तीन प्रकार के एत्तो अण्णयरं पाणग-जायं? पानक ले सकता है-तिलोदक, तुषोदक, यवोदक।
से सेवं वदंतं परो वदेज्जा-आउसंतो! समणा! तुमं चेवेदं अष्टमभक्त (तेले की तपस्या) वाला भिक्षु त्रिविध पानक
पाणग-जायं पडिग्गहेण वा उस्सिंचियाणं, ओयत्तियाणं ले सकता है-१. आयामक-अवस्रावण-ओसामन। ३. गिण्हाहि-तहप्पगारं पाणग-जायं सयं वा गिण्हेज्जा.परो वा सौवीरक-कांजी। ३. शुद्धविकट-उष्णोदक।
से देज्जा-फासुयं एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते विकृष्ट भक्तिक (चोले आदि की तपस्या करने वाला) पडिगाहेज्जा। भिक्षु केवल गर्म जल ले सकता है, वह भी ससिक्थ नहीं, असिस्था ..."अंब-पाणगं वा, अंबाडग-पाणगं वा, कविट्ठ-पाणगं ० विविध पानक : ग्रहण-विधि
वा, मातुलिंग-पाणगं वा, मुद्दिया-पाणगं वा, दाडिम-पाणगं से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं पिंडवाय- वा, खजूर-पाणगं वा, णालिएर-पाणगं वा, करीर-पाणगं पडियाए अणुपविढे समाणे सेज्जं पुण 'पाणग-जायं' वा, कोल-पाणगं वा, आमलग-पाणगं वा, चिंचा-पाणगं जाणेज्जा, तंजहा–उस्सेइमं वा, संसेइमं वा, चाउलोदगंवा- वा-अण्णयरं वा तहप्पगारं पाणग-जायं सअट्ठियं सकणुयं अण्णयरं वा तहप्पगारं पाणग-जायं अहुणा-धोयं, अणंबिलं, सबीयगं अस्संजए भिक्खु-पडियाए छब्बेण वा, दूसेण वा, अव्वोक्कंतं, अपरिणयं, अविद्धत्थं-अफासुयं अणेसणिज्जं वालगेण वा, आवीलियाण वा, परिपीलियाण वा, परिस्सातिमण्णमाणे लाभेसंते णो पडिगाहेज्जा..."चिराधोयं, अंबिलं, वियाण आहट्टदलएज्जा-तहप्पगारं पाणग-जायं-अफासुयं वुक्कंतं, परिणय, विद्धत्थं-फासुयं एसणिज्जति मण्णमाणे अणेसणिज ति मण्णमाणे लाभे संते णो पडिगाहेज्जा॥ लाभेसंते पडिगाहेज्जा॥ (आचूला १/९९, १००)
(आचूला १/१०१, १०४)
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