________________
आगम विषय कोश - २
४०५
सोलह अंगुल तक खोदने पर क्रमशः षड्लघु और षड्गुरु प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। सतरह - अठारह अंगुल में छेद, उन्नीस-बीस में मूल, इक्कीस-बाईस में अनवस्थाप्य और तेईस - चौबीस अंगुल में पारांचित प्राप्त होता है। इस प्रकार अभीक्ष्ण खनन करने पर आठवीं बार में पारांचित आता है।
पहले चार-चार अंगुल और फिर दो-दो अंगुलपरिमाण से प्रायश्चित्त वृद्धि का कारण यह है कि पृथ्वी के नीचे उपरि भागों में अल्प जीव होते हैं, बहुत जीव शीत, आतप, हवा आदि से अभिहत हो जाते हैं। पृथ्वी के निम्न, निम्नतर भागों में जीवपरिमाण की अधिकता के कारण जीवविराधना भी अधिक होती है, अतः प्रायश्चित्त में वृद्धि हो जाती है।
..... आहारट्ठा व हे बलिया ।।
.....मूलपलंबणिमित्तं खणेज्जा । वातातवमादीहिं असोसिया सरसा य अहे बलिया ... ।
(निभा १६६ चू)
आहारहेतु भी पृथ्वी का खनन किया जाता है। मूलप्रलंब आदि वनस्पति पृथ्वी के अधोभागों में सरस और बलिक होती है, बाहरी धूप - हवा से उसका रस अवशोषित नहीं होता । २०. प्रायश्चित्त (व्यवहार) : गुरु-लघु-लघुस्वक
गुरुओ गुरुअतराओ, अहागुरूओ य होइ ववहारो । लहुओ लहुयतराओ, अहालहू होइ ववहारो ॥ लहुसो लहुसतराओ, अहालहूसो अ होइ ववहारो । एतेसिं पच्छित्तं, वुच्छामि अहाणुपुवीए ॥ गुरुगो य होइ मासो, गुरुगतरागो भवे चउम्मासो । अहगुरुगो छम्मासो, गुरुगे पक्खम्मि पडिवत्ती ॥ तीसा य पण्णवीसा, वीसा वि य होइ लहुयपक्खम्मि | पन्नरस दस य पंच य, अहालहुसगम्मि सुद्धो वा ॥ गुरुगं च अट्टमं खलु, गुरुगतरागं च होति दसमं तु । अहगुरुग दुवालसमं, गुरुगे पक्खम्मि पडिवत्ती ॥ छट्टं च चउत्थं वा, आयंबिल - एगठाण- पुरिमङ्कं । निव्वीयं दायव्वं, अहालहुसगम्मि सुद्धो वा ॥ (बृभा ६०३९-६०४४)
व्यवहार के तीन प्रकार हैं- गुरु, लघु और लघुस्वक । इन तीनों के तीन-तीन प्रकार हैं
Jain Education International
१. गुरुक, गुरुतरक यथागुरुक । २. लघुक, लघुतरक, यथालघुक । ३. लघुस्वक, लघुस्वतरक, यथालघुस्वक ।
गुरुक आदि नौ व्यवहारों का प्रायश्चित्त परिमाण एक मा आदि है, जो तेले आदि के तप से पूर्ण होता है। देखें यंत्रप्रायश्चित्त परिमाण
व्यवहार
१.
२.
३.
४.
गुरुक
एकमास
गुरुतरक
चार मास
यथागुरुक
छह मास
लघुक
तीस दिन
लघुतरक
पच्चीस दिन
यथालघुक
बीस दिन
लघुस्वक
पन्द्रह दिन
लघुस्वतरक
दस दिन
निर्विकृतिक
यथालघुस्वक पांच दिन अथवा जिसे यथालघुस्वक व्यवहार प्राप्त है, वह शुद्ध हैप्रायश्चित्तभागी नहीं है । परिहारतपप्रायश्चित्तप्रतिपन्न उस मुनि को आलोचनाप्रदानमात्र से शुद्ध किया जाता है।
(निशीथ टब्बा तथा जयाचार्यकृत झीणी चरचा, तात्त्विक ढाल ७ के आधार पर प्रायश्चित्तविधि का यंत्र - प्रायश्चित्त तप उपवास २५ दिन २५
छेद
भिन्नमास
२७
२७
३०
३०
१०५ १०५ १२० १२० १६५ १६५
५.
६.
७.
८.
९.
लघुमास
गुरुमास लघुचौमासी
गुरुचौमासी
लघु छहमासी
गुरु छहमासी
प्रत्याख्यान
निर्विकृतिक २५ पूर्वार्द्ध २७
For Private & Personal Use Only
एकासन ३०
आयंबिल ४
४
उपवास
बेला
तेला
22
33
"
प्रायश्चित्त
"
तप
तेला
चोला
पंचोला
बेला
""
उपवास
आचाम्ल
एकस्थान
पूर्वार्द्ध
"
22
६
६
१८० ,, १८० महानिशीथ के दूसरे अध्ययन तथा झीणी चरचा, तात्त्विक ढाल ८ के आधार पर उपवास आदि के अन्य मानदंडों की तालिका इस प्रकार है
१. १२०० गाथाओं का स्वाध्याय या १६०० नवकार का जाप या २००० गाथाओं का वाचन
"
12
27
एक उपवास
www.jainelibrary.org