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आगम विषय कोश-२
४३३
भावना
स्त्री ने कहा-झूठ क्यों बोल रहे हो? आज भी तो कोई उष्ण से भावित उष्णसहिष्णु, व्यायाम से पुष्ट देह व्यायामसहिष्णु साध द्वार के पास सो रहा है, उसे लांघ कर कैसे आ गए? आदि द्रव्यभावना है।
यक्ष ने कहा-जो आज तुम्हारे द्वार पर सो रहा है, वह यतिवेश भावभावना के दो प्रकार हैं-प्रशस्त और अप्रशस्त। में चोर है-चारित्र से भ्रष्ट हो चोरी करना चाहता है।
२. द्रव्य-भाव भावना : स्वरवेध आदि दृष्टांत * ब्रह्मचर्य के दस समाधिस्थान आदि द्र श्रीआको १ ब्रह्मचर्य सरवेह-आस-हत्थी-पवगाईया उ भावणा दव्वे।।
अब्भास भावण त्ति य, एगटुं तत्थिमा भावे ॥ भावना-लक्ष्य के अनुरूप होने का पुनः-पुन: अभ्यास।
दुविहाओ भावणाओ, असंकिलिट्ठा य संकिलिट्ठा य। चित्त को भावित/वासित करने का उपाय।
मुत्तूण संकिलिट्ठा, असंकिलिट्ठाहि भावंति॥ १. भावना के प्रकार
(बृभा १२९०, १२९१) २. द्रव्य-भाव भावना : स्वरवेध आदि दृष्टांत ३. अप्रशस्त भावना : हिंसा आदि
· अभ्यास और भावना एकार्थक हैं। भावना के दो प्रकार ४. प्रशस्त भावना : दर्शन आदि
हैं-द्रव्य और भाव । द्रव्यतः भावना के दृष्टांत० दर्शन भावना-ज्ञान भावना
० स्वरवेध-धनुर्विद्या का अभ्यास करने वाला पहले स्थूल-द्रव्य ० चारित्र भावना-तप भावना
को, फिर केश से बंधी कपर्दिका को बींधता है और अभ्यास ० वैराग्य भावना : अनित्य आदि भावनाएं
करते-करते वह स्वर से भी लक्ष्य का वेधन कर शब्दवेधी बन ५. अनित्य भावना : आचार्य द्वारा प्रतिबोध
जाता है। * एकत्व भावना : पुष्पचूल दृष्टांत द्र जिनकल्प ० अश्व-अश्व प्रशिक्षित होने पर पैरों से भूमि का स्पर्श न करता . अन्यत्व भावना
हुआ बड़े-बड़े नदी-नालों को लांघ जाता है। ६. देवसंबंधी संक्लिष्ट भावना
० हाथी-प्रशिक्षणकाल में हाथी को पहले अपनी सूंड से काष्ठ कांदी भावना का स्वरूप
के टुकड़े उठाने का अभ्यास कराया जाता है। फिर कंकर, फिर ० दैवकिल्विषिकी भावना का स्वरूप
गोलिका, फिर बेर । वह अपने अभ्यास से अन्त में सरसों के दाने ० आभियोगी भावना : प्रश्न, प्रश्नाप्रश्न
भी उठा लेता है। ० आसुरी भावना का स्वरूप ० साम्मोही भावना का स्वरूप
० प्लवक- एक तैराक पहले बांस के सहारे तैरता है, फिर. ७. संक्लिष्ट भावना की निष्पत्ति
अभ्यस्त हो जाने पर बिना किसी आलम्बन के भी तैरने लगता है। ८. असंक्लिष्ट भावना की निष्पत्ति
अथवा एक नट पहले बांस, रस्सी आदि के सहारे, फिर अभ्यास * पांच असंक्लिष्ट भावनाएं
द्र जिनकल्प होने पर अधर रहकर भी नाना करतब दिखाता है। एक चित्रकार * महाव्रतों की पचीस भावनाएं
द्र महाव्रत अभ्यास की निरन्तरता से जीवन्त चित्र बनाने लगता है।
भावतः भावना के दो प्रकार हैं-असंक्लिष्ट भावना और १. भावना के प्रकार
संक्लिष्ट भावना। जिनकल्प स्वीकार करने के इच्छुक मुनि संक्लिष्ट दव्वं गंधंग-तिलाइएसु, सीउण्ह-विसहणादीसु।
भावना को छोड़कर असंक्लिष्ट भावना से अपने आपको भावित भावम्मि होइ दुविहा, पसत्थ तह अप्पसत्था य॥ करते हैं।
(आनि ३४९) ३. अप्रशस्त भावभावना : हिंसा आदि भावना के दो प्रकार हैं-द्रव्यभावना और भावभावना। पाणवह-मुसावाए, अदत्त-मेहुण-परिग्गहे चेव।
जातिकुसुम आदि सुगंधित द्रव्यों के द्वारा तिल आदि को कोहे माणे माया, लोभे य हवंति अपसत्था॥ वासित करना द्रव्यभावना है। इसी प्रकार शीत से भावित शीतसहिष्णु,
(आनि ३५०)
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