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आगम विषय कोश - २
६. सादृश्यमूढ---जो पुरुष को स्थाणु और स्थाणु को पुरुष मानता है। ७. अभिभवमूढ - जो शस्त्र, अग्नि, शास्त्रार्थ, श्वापद आदि से अभिभूत हो उनके भय से मूढ बन जाता है।
८. वेदमूढ - अत्यन्त वेदमोहोदय होने से जो अनंगक्रीड़ा करता है। ९. व्युद्ग्राहणामूढ - कुछ पंडितमानी व्यक्ति पहले से ही व्युद्ग्राहित - मिथ्याभिनिविष्ट होते हैं, बहकावे में आ जाते हैं, फिर वे किंचित् भी कारण सुनना नहीं चाहते, वे व्युद्ग्राहणामूढ हैं। १०. अज्ञानमूढ - जो कुतीर्थिकमत में मूढ बन जाता है। ११. कषायमूढ - जो कषाय- क्रोध-मान- माया - लोभ के उदय कारण हित-अहित कार्य-अकार्य को नहीं जानता । १२. मत्तमूढ - जो यक्षावेश, मोहोदय अथवा मद्यपान से उन्मत्त हो जाता है और हित-अहित का विवेक नहीं करता ।
* मूढ: दीक्षा के अयोग्य
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मूढ: सम्यक्त्व और वाचना के अयोग्य
द्र दीक्षा
द्र सम्यक्त्व
मेधावी - अवग्रहण - धारण- पटु । मर्यादा- कुशल । उग्गहण धारणाए, मेराए चेव होइ मेधावी । तिविहम्मि अहीकारो, मेरा संजुत्तों मेहावी ॥ अवग्रहणमेधावी सूत्रार्थग्रहणपटुप्रज्ञावान्। धारणामेधावी पूर्वाधीतयोः प्रभूतयोरपि सूत्रार्थयोश्चिरमवधारणाबुद्धिमान् । मर्यादामेधावी चरणकरणप्रवणमतिमान्।'मर्यादामेधाविनो ग्रहण - धारणामेधाभ्यां सम्पन्नस्यासम्पन्नस्य वा दातव्यम्, मर्यादाविकलयोरितरयोर्न दातव्यम् । (बृभा ७५९ वृ)
मेधावी के तीन प्रकार हैं - १. अवग्रहणमेधावी - सूत्र और अर्थ का ग्रहण करने वाली पटु प्रज्ञा से सम्पन्न । २. धारणा मेधावी - पूर्व अधीत विपुल सूत्र और अर्थ को चिरकाल तक धारण करने वाली बुद्धि से सम्पन्न ।
३. मर्यादा मेधावी - चरण- करण-आचारविषयक मर्यादा में प्रवण मतिमान् । कल्प, व्यवहार आदि ग्रंथों के अध्ययन के लिए तीनों प्रकारों से संयुक्त मेधावी अधिकृत है । मर्यादाविहीन ग्रहणधारणामेधावी अयोग्य है। मर्यादामेधावी ग्रहण - धारणामेधा से सम्पन्न हो या असम्पन्न, वह सूत्र अध्ययन के योग्य है।
जो मेरा - मर्यादा से संयुक्त है, वह मेधावी है।
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मेधा अपूर्वा पूर्वऊहणोहात्मको (ऊहापोहात्मको) ज्ञानविशेषः । (व्यभा ७५८ की वृ) (विमर्श-निर्णयात्मक) ज्ञान
अपूर्व-अपूर्व ऊहा-अपोहात्मक विशेष को मेधा कहा जाता है।
* मेधा और धारणा बल कैसे ?
मोक्ष
......धारण, उग्गह सीले
धारणा दृढस्मृतिः । बहुबहुविधक्षिप्रानिश्रितासंदिग्धध्रुवाणां उग्गहं करेति । अक्कोहणादिणा सीलेण जुत्तो सीलवं । चक्कवालसामायारीए जुत्तो कुसलो वा । (निभा २६०९ चू)
मुक्त होने की साधना
* मोक्ष : साध्य सिद्धि-क्रम
मेधावी धारणा - अवग्रह - शील- सामाचारी से युक्त होता है । • धारणा-दृढ स्मृति/चिरस्थायी स्मरणशक्ति से सम्पन्न । • अवग्रह - बहु, बहुविध, क्षिप्र, अनिश्रित, असंदिग्ध और ध्रुवमतिज्ञान के इन छह प्रकारों से अवग्रहण में कुशल । शील - शांति, ऋजुता आदि शीलों से युक्त ।
• सामाचारी - चक्रवालसामाचारी के पालन में निपुण । मोक्ष - कर्मबंधन से मुक्त अवस्था । अव्याबाध सुख । सव्वारंभपरिग्गहणिक्खेवो सव्वभूतसमया य । एक्कग्गमणसमाहाणया य अह एत्तिओ मोक्खो ॥ (बृभा ४५८५)
सर्वआरंभ (हिंसा) और सर्वपरिग्रह से संन्यास, सर्व प्राण, भूत, जीव और सत्त्वों के प्रति समता तथा एकाग्र मनसमाधानतायह इतना मोक्ष है। ( हिंसाविरति आदि मोक्ष के उपाय हैं, कारण में कार्य का उपचार कर इन्हें मोक्ष कहा गया है ।) अपासत्थाए अकुसीलयाए अकसाय - अप्पमाए य । अणिदाणयाइ साहू, संसारमहण्णवं तरई ॥ (दशानि १४३) साधु अपार्श्वस्थता (संविग्नविहार), सुशीलता, निष्कषायता, अप्रमत्तता और अनिदानता से संसार-महासागर को तर जाता है । द्र अंतकृत द्र श्रीआको १ मोक्ष
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द्र चिकित्सा सामायारी ॥
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