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वस्त्र
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आगम विषय कोश-२
० वैताढ्य गिरि को छोड़ शेष पर्वत, डूंगर नष्ट हो जाएंगे। ० गंगा-सिन्धु को छोड़ शेष नदियां समतल बनेंगी। ० भूमि अंगारे की भांति तप्त, धूलि-बहुल हो जाएगी। ० मनुष्य सौन्दर्य, सदाचार और शक्ति से हीन हो जाएगा। ० मनुष्य के शरीर की ऊंचाई २४ अंगुल हो जाएगी। ० कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) प्रबल हो जाएगा। ० भोजन पोषणहीन होगा और रोग बढ़ जाएंगे। ० आयुष्य का कालमान १६ से २० वर्ष जितना होगा। ० प्राणी मरकर प्रायः नरक और तिर्यंच योनि में उत्पन्न होंगे।
इक्कीस हजार वर्ष वाले इस अर के बीतने पर उत्सर्पिणी कालखंड का प्रथम अर प्रारंभ होगा।-जम्बू २/१२९-१३८) ५. अधोलोकग्राम ___जम्बूद्वीपापरविदेहवर्त्तिनलिनावती-वप्राभिधानविजययुगलसमुद्भवा योजनसहस्रोद्वेधाः समयप्रसिद्धा येऽधोलोकग्रामा:"।
(बृभा ६७५ की वृ) जम्बूद्वीप के पश्चिमविदेहक्षेत्रवर्ती नलिनीवती और वप्राइन दो विजयों में समुद्भूत हजार योजन गहरे अधोलोक ग्राम हैं। (इन पर चक्रवर्ती का आधिपत्य होता है। द्र अवग्रह) वनस्पति-जीवनिकाय का एक भेद। द्र जीवनिकाय वन्दना-अभिवादन । स्तुति।
द्र कृतिकर्म वर्गणा-सजातीय पुद्गल समूह।
द्रद्रव्य वर्षावास-चातुर्मास।
द्र पर्युषणाकल्प वसति-उपाश्रय।
द्र शय्या वस्त्र-कपास आदि के तंतुओं से निर्मित पट।
१. वस्त्र के प्रकार : जांगिक आदि __ * कृत्स्न वस्त्र और सुलक्षण वस्त्र
द्र उपधि २. चर्ममय प्रावरण के प्रकार ३. महामूल्यवान् वस्त्रों के प्रकार १. वस्त्र के प्रकार : जांगिक आदि दव्वे तिविहं एगिंदि-विगल-पंचेंदिएहिँ निप्फन्नं ।....
(बृभा ६०४)
वस्त्र के तीन प्रकार हैं-१. एकेन्द्रिय निष्पन्न-सती वस्त्र। २. विकलेन्द्रिय निष्पन्न-रेशमी वस्त्र। ३. पंचेन्द्रिय निष्पन्न-भेड़, ऊंट आदि की ऊन से निष्पन्न वस्त्र।
"""जंगियं वा भंगियं वा साणयं वा पोत्तगं वा खोमियं वा तूलकडं वा तहप्पगारं वत्थं। (आचूला ५/१)
वस्त्र के छह प्रकार हैं-जांगिक, भांगिक, सानक, पोतक, क्षौमिक और तूलकृत (अर्कतूल से निष्पन्न)।
इनमें प्रथम प्रकार (जांगिक) विकलेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय से निष्पन्न तथा शेष पांच प्रकार एकेन्द्रिय से निष्पन्न हैं। जंगमजायं जंगिय, तं पुण विगलिंदियं च पंचिंदी।.... पट्ट सुवन्ने मलए, अंसुग चीणंसुके च विगलेंदी। उण्णोट्टिय मियलोमे, कुतवे किट्टे त पंचेंदी॥ अतसी-वंसीमादी, उ भंगियं साणियं च सणवक्के। पोत्तय कप्पासमयं, तिरीडरुक्खा तिरिडपट्टो॥
(बृभा ३६६१-३६६३) ० जांगिक-जंगम (स) जीवों के अवयवों से निष्पन्न वस्त्र।
जांगिक के दो प्रकार हैं-१. विकलेन्द्रियज और २. पंचेन्द्रियज। विकलेन्द्रिय से निष्पन्न-० पट्टसूत्रज-पट्टसूत्र से निष्पन्न। ० सुवर्णसूत्रज-किन्हीं-किन्हीं कृमियों से सुवर्ण वर्ण वाला सूत्र निष्पादित होता है, उससे निष्पन्न वस्त्र। ० मलयज-मलयदेश में उत्पन्न कीड़ों से बना वस्त्र। ० अंशुक-अत्यन्त मृदु सूत्र से निष्पन्न वस्त्र। ० चीनांशुक-'कोशिकार' कृमि से निष्पन्न सूत्र से अथवा चीन देश में उत्पन्न अत्यंत मृदु रेशमसूत्र से बना वस्त्र। पंचेन्द्रिय से निष्पन्न-० और्णिक-भेड़ की ऊन से निष्पन्न। ० औष्ट्रिक-ऊंट के केशों से निष्पन्न। ० मृगरोमज-मृग के रोमों से निष्पन्न। ० कुतव-छाग के रोमों से निष्पन्न। ० किट्टऊर्णारोम आदि के अवयवों से निष्पन्न। एकेन्द्रिय से निष्पन्न-० भांगिक-अतसी अथवा वंशकरीर के मध्य से निकाले रेशे से निष्पन्न। सानक-सन वृक्ष की छाल से निष्पादित। ० पोतक-कपास से बना वस्त्र। ० तिरीटपट्ट-तिरीट वृक्ष की छाल से बना वस्त्र।
(वस्त्र के पांच प्रकार हैं-अंडज, बोंडज, कीटज, बालज और वल्कज। इनका जांगिक आदि में समावेश होता है
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