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वाचना
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आगम विषय कोश-२
के खरों में सेवाल के रेशे लग जाते हैं, उन रेशों से निष्पन्न वस्त्र। अथवा वनस्पति विशेष से बना वस्त्र। ० कायक-काय देश में काकजंघा (तण वनस्पति विशेषधुंघची) की मणि (अग्रभाग) जिस तालाब में गिरती है, उसकी आभा से रंजित वस्त्र। इन्द्रनीलवर्ण कपास से निर्मित वस्त्र। ० क्षौमिक-सामान्य कपास से निर्मित बारीक वस्त्र। अथवा फलों या वृक्षों के रेशों से निर्मित। ० दुकूल-गौड़ देश में उत्पन्न विशिष्ट कपास से निष्पन्न। दुकूल वृक्ष की छाल को ऊखल में कूटकर, भूसी जैसी बनाकर, पानी में भिगोकर, उसके रेशों से वस्त्र बनाया जाता है। ० तिरीटपट्ट-पट्ट-तिरीट वृक्ष की छाल के तंतु पट्टसदृश होते हैं, उन तंतुओं से निष्पन्न। पट्टसूत्रों से निष्पन्न। (द्र श्रीआको १ सूत्र) ० मलयज-मलय देश में मलयज सूत्र से निर्मित। ० पत्तुन्न-पत्रोर्ण, वल्कल तंतु से निष्पन्न। ० अंशुक-दुकूल वृक्ष के आभ्यंतर अवयव से निष्पन्न। ० चीनांशुक-दुकूल के सूक्ष्म सूत्र से अथवा चीन देश में निष्पन्न। ० देशराग-जिस देश में रंगने की जो विधि हो, उससे रंगा हुआ। ० अमिल-रोम देश में सूक्ष्म रोओं से निर्मित वस्त्र। ० गज्जल-बिजली के समान कड़कड़ शब्द करने वाला वस्त्र। ० स्फटिक-स्फटिक के समान निर्मल कंबल। ० कोयव-कोयव देश में निष्पन्न, रजाई। सिल्हक का सूता। ० कौतव-चूहे के रोमों से निष्पन्न। ० कम्बल और प्रावार। वस्त्रकल्पिक-'वस्त्रैषणा' अध्ययन का ज्ञाता।
द्र उपधि वाचना-शिष्यों को आगम पढ़ाना, सूत्रार्थ प्रदान करना। १. वाचनीय और अवाचनीय * छेदसूत्र की वाचना के अयोग्य
द्र छेदसूत्र * अपरिणामी-अतिपरिणामी अयोग्य द्र शिष्य
० अविनीत आदि को वाचना देने से हानि २. पात्र-अपात्र विवेक : पात्र को भी वाचना नहीं ३. वाचना के अयोग्य : अव्यक्त और अप्राप्त ४. अविधि से श्रुतग्रहण का प्रायश्चित्त
५. ज्ञानहेतु स्थविर भी कृतिकर्म करे ६. स्थविर के प्रति वाचनाचार्य का दायित्व | ७. वाचनाचार्य के प्रकार : सिंहानुग आदि ____ * वाचना संपदा
द्र गणिसम्पदा ८. प्रवाचिका प्रवर्तिनी की अर्हता | * आर्यरक्षित तक साध्वी को छेदसूत्र की वाचना द्र छेदसूत्र | ९. सूत्रार्थ मण्डली व्यवस्था |१०. वाचना मण्डली के प्रकार : क्षेत्र आभवद् व्यवहार । पृच्छा और अवग्रह ११. मण्डली में अभ्युत्थान विधि १२. एकाग्रता से महान् उपलब्धि १३. उत्क्रम से आगमवाचना का निषेध | * आगम वाचना और संयम पर्याय * उद्देश-समुद्देश-अनुज्ञा
द्र श्रुतज्ञान * वाचना परिमाण : ओज-अनोज उद्देशक * योगवहन और आहार
द्र उत्सारकल्प * यथालन्दिक को वाचना
द्र यथालंदकल्प १४. वाचना-स्वाध्याय से लाभ १. वाचनीय और अवाचनीय
तओ नो कप्पंति वाइत्तए, तं जहा-अविणीए विगईपडिबद्धे अविओसवियपाहुडे॥
तओ कप्पंति वाइत्तए, तं जहा-विणीए नो विगईपडिबद्धे विओसवियपाहुडे॥ (क ४/६, ७)
तीन प्रकार के व्यक्ति वाचना देने के अयोग्य होते हैं१. अविनीत, २. रसलोलुप, ३. अव्यवशमित प्राभूत-कलह का ठपशमन नहीं करने वाला।
तीन वाचना के योग्य होते हैं-१. विनीत, २. विकृति में अप्रतिबद्ध, ३. व्यवशमितप्राभृत। ० अविनीत आदि को वाचना देने से हानि इहरा वि ताव थब्भति, अविणीतो लंभितो किमु सुएण। मा णट्ठो णस्सिहिती, खए व खारावसेओ तु॥ गोजूहस्स पडागा, सयं पयातस्स वड्वयति वेगं। दोसोदए य समणं, ण होड न निदाणतल्लं वा॥ विणयाहीया विज्जा, देंति फलं इह परे य लोगम्मि। न फलंति विणयहीणा, सस्साणि व तोयहीणाइं॥
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