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भिक्षुप्रतिमा
११. अहोरात्रिकी भिक्षुप्रतिमा, १२ एकरात्रिकी भिक्षुप्रतिमा ।
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* भिक्षुप्रतिमाप्रतिपत्ता की श्रुतअर्हता ......
द्र प्रतिमा
२. प्रथम सात प्रतिमाओं का स्वरूप
मासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स निच्चं वोसट्टकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उववज्जंति, तं जहादिव्वा वा माणुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, ते उप्पन्ने सम्म सहति ॥
...... कप्पति एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहेत्तए एगा पाणगस्स अण्णाउंछं सुद्धोवहडं निज्जूहित्ता बहवे दुपय-चउप्पयसमण-माहण- अतिहि-किवण-वणीमए, कप्पति से एगस्स भुंजमाणस्स पडिगाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्हं नो चउण्हं नो पंचन्हं, नो गुव्विणीए, नो बालवच्छाए, नो दारगं पिज्जेमाणीए दलमा
ए..ए पादं अंतो किच्चा एगं पादं बाहिं किच्चा एलुयं विक्खंभत्ता एवं दलयति एवं से कप्पति पडिग्गाहेत्तए । तओ गोयरकाला पण्णत्ता, तं जहा- आदिं मज्झे चरिमे।" छव्विधा गोयरचरिया पण्णत्ता, तं जहा - पेला, अद्धपेला, गोमुत्तिया, पयंगवीहिया, संबुक्कावट्टा, गंतुंपच्चागता ॥'''' जत्थ णं केइ जाणइ गामंसि वा कप्पति से तत्थ एगरायं वत्थए, जत्थ णं केइ न जाणइ कप्पति से तत्थ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए ।
....कप्पंति चत्तारि भासाओ भासित्तए, तं जहा - जायणी पुच्छणी अणुण्णमणी पुट्ठस्स वागरणी ॥ कप्पंति ओ उवस्सया पडिलेहित्तए । अणुण्णवेत्तए । उवाइत्तिए, तं जहा - अहेआरामगिहंसि वा अहेवियडगिहंसि वा अहेरुक्खमूलगिहंसि वा ॥ कप्पंति तओ संथारगा पडिले - हित्तए ''अणुण्णवेत्त उवाइणित्तए, तं जहा - पुढविसिलं वा कट्ठसिलं वा अहासंथडमेव ॥
''''' इत्थी उवस्सयं हव्वमागच्छेज्जा, सइत्थिए व पुरिसे, नो से कप्पति तं पडुच्च निक्खमित्त वा ॥
केइ उवस्स अगणिकाएण झामेज्जा णो से कप्पति तं पडुच्च निक्खमित्तए । केइ बाहाए गहाय आगसेज्जा नो से पति तं अवलंबित्तए, कप्पति से अहारियं रीइत्तए ॥
...पायंसि खाणू वा कंटए वा अणुपविसेज्जा"" ॥ "अच्छिसि रए वा परियावज्जेज्जानो से कप्पति नीहरित्तए
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आगम विषय कोश - २
वा विसोहित्तए वा ॥ जत्थेव सूरिए अत्थमेज्जा तत्थेव जलंसि वा थलंसि वा दुग्गंसि वा कप्पति से तं रयणिं तत्थेव उवातिणावेत्तए नो से कप्पति पदमपि गमित्त उट्ठियम्मि सूरे पाईणाभिमुहस्स वा पडीणाभिमुहस्स वा अहारियं इत्तए ॥ णो कप्पति अणंतरहिताए पुढवीए निद्दाइत्तए वा पयलाइत्तए वा।”“उच्चारपासवणेणं उव्वाहेज्जा नो से प् ओगिहित्तए वा, कप्पति से पुव्वपडिलेहिए थंडिले उच्चारपासवणं परिट्ठवित्तए ॥
.......नो कप्पति ससरक्खेणं काएणं गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा ॥ नो कप्पति सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा हत्थाणि वा पादाणि वा दंताणि वा अच्छीणि वा मुहं वा उच्छोलित्तए वा पधोइत्तए वा । णण्णत्थ लेवालेवेण वा भत्तामासेण वा ॥
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.....नो कप्पति आसस्स वा हत्थिस्स वा "दुट्ठस्स आवदमाणस्स पदमवि पच्चोसक्कित्तए, अदुट्ठस्स आवदमाणस्स कप्पति जुगमित्तं पच्चोसक्कित्तए ॥'''''नो कप्पति छायातो सीयंति उन्हं एत्तए, उण्हाओ उण्हंति नो छायं एत्तए, जं जत्थ जया सिया तं तत्थ अहियासए । एवं खलु एसा मासियभिक्खुपडिमा अहासुतं पालिया भवति ॥
दोमासियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स सेसं तं चेव, नवरं - दो दत्तीओ, तेमासियं तिण्णिचउमासियं चत्तारि ...पंचमासियं पंच'छम्मासियं छसत्तमासियं सत्त दत्तीओ। जतिमासिया तत्तिया दत्तीओ। (दशा ७/४-२६) भिक्षुप्रतिमाप्रतिपन्न भिक्षु की विहारचर्या इस प्रकार है० उपसर्ग - मासिकी भिक्षुप्रतिमाप्रतिपन्न अनगार व्युत्सृष्टकाय और त्यक्तदेह होता है। उसके जो कोई उपसर्ग होते हैं - देवसंबंधी, मनुष्यसंबंधी और तिर्यंचसंबंधी, वह उन उत्पन्न उपसर्गों को सम्यक् प्रकार से समभाव से सहन करता है ।
० दत्ति - वह भोजन और पानी की एक-एक दत्ति ग्रहण कर सकता है। (दाता द्वारा एक बार में एक धार से जितना दिया जाता है, वह एक दत्ति है । द्र प्रतिमा)
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• भिक्षाचर्या - वह अज्ञातकुलों से भिक्षाग्रहण करता है, शुद्धोपहतखाने के लिए साथ में लाया हुआ लेपरहित भोजन लेता है, अनेक द्विपद, चतुष्पद, श्रमण, माहन, कृपण और वनीपकों के लौट जाने
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