Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 2
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 505
________________ मरण ४६० आगम विषय कोश-२ वा तरुपडणाणि वा, गिरिपक्खंदणाणि वा मरुपक्खंदणाणि चारों में पतनक्रिया सामान्य होने के कारण यह मरण का एक वा भिगुपक्खंदणाणि वा तरुपक्खंदणाणि वा, जलपवेसाणि भेद है। वा जलणपवेसाणि वा, जलपक्खंदणाणि वा जलणपक्खंद- गिरिप्रस्कन्दन आदि चारों में प्रस्कन्दन सामान्य होने से णाणि वा, विसभक्खणाणि वा सत्थोपाडणाणि वा, वलय- यह मरण का द्वितीय भेद है। स्थान से ऊपर की ओर उत्पतन मरणाणि वा, वसट्टमरणाणि वा, तब्भवमरणाणि वा, कर गिरना पतन और निकट से ही दौड़कर गिरना प्रस्कन्दन है। णसमरणाणि वा, गिद्धपट्ठाणि वा प्रवेश सामान्य होने से जल और अग्नि में प्रवेश-यह मरण का अण्णयराणि वा तहप्पगाराणि बालमरणाणि ॥ (नि११/९३) तीसरा भेद है। मरण का चौथा भेद है-जल और अग्नि में बालमरण के २० प्रकार हैं प्रस्कन्दन। शेष विषभक्षण आदि आठ भेद हैं। इस प्रकार बालमरण १. गिरिपतन ११. जलप्रस्कन्दन के बारह भेद होते हैं। २. मरुपतन १२. अग्निप्रस्कन्दन * वलयमरण, वशार्त्तमरण आदि द्र श्रीआको १ मरण ३. भृगुपतन १३. विषभक्षण (निशीथ सूत्र में बालमरण के बीस प्रकार और निशीथ ४. तरुपतन १४. शस्त्रावपाटन चूर्णि में बालमरण के बारह प्रकार प्ररूपित हैं-यह संख्याभेद ५. गिरिप्रस्कन्दन १५. वलयमरण विवक्षा-सापेक्ष है। भगवती में यह बारह प्रकार का प्रज्ञप्त है६. मरुप्रस्कन्दन १६. वशार्त्तमरण १. वलयमरण-संयमजीवन से च्युत होकर मरना। ७. भृगुप्रस्कन्दन १७. तद्भवमरण २. वशार्तमरण-इन्द्रियों के वशवर्ती होकर मरना। ८. तरुप्रस्कन्दन १८. अंतःशल्यमरण ३. अन्तःशल्यमरण-माया आदि आंतरिक शल्य की दशा में मरना। ९. जलप्रवेश १९. वैहायसमरण ४. तद्भवमरण-तिर्यंच या मनुष्यभव में विद्यमान प्राणी पुनः १०. अग्निप्रवेश २०. गृध्रस्पृष्ट तिर्यंच या मनुष्यभवयोग्य आयुष्य का बंध कर वर्तमान आयु के इस प्रकार के बालमरण के अन्य प्रकार भी हैं। क्षय होने पर मरता है, उसका मरण तद्भवमरण है। जत्थ पवातो दीसति, सो तु गिरी मरु अदिस्समाणो तु। ५. गिरिपतन-पर्वत से गिरकर मरना। नदितडमादी उ भिगू , तरू य अस्सोत्थवडमादी॥ ६. तरुपतन-वृक्ष से गिरकर मरना। पडणं तु उप्पतित्ता, पक्खंदण धाविऊण जं पडति।.... ७. जलप्रवेश-जल में डूबकर मरना। गिरी""मरू भिगू"तरू-एतेहिंतो जो अप्पाणं मंचड ८. ज्वलनप्रवेश-अग्नि में प्रवेश कर मरना। मरणं ववसिउंतं पवडणं भन्नइ । एते चउरो विपडणसामन्नओ ९. विषभक्षण-जहर खाकर मरना। एक्को मरणभेदो।- (निभा ३८०२, ३८०३ चू) १०. शस्त्रावपाटन-शस्त्रों से शरीर को विदीर्ण कर मरना। ११. वैहानश-गले में फांसी लगा वृक्षशाखा आदि से लटक कर __ चउरोवि पक्खंदणा पक्खंदणसामन्नओ बिइओ मरण मरना। भेदो। जलजलणपवेसो पवेससामण्णओ तइओ मरणभेदो। १२. गृध्रस्पृष्ट-गीध आदि द्वारा मांस नोचे जाने पर मरना। जल-जलणपक्खंदणे चउत्थो मरणभेदो। सेसा विसभक्ख इस द्वादशविध बालमरण से मरता हुआ जीव अनंत भवग्रहण णाइया वा अटू पत्तेयभदा। (निभा ३८०४ का चू) से अपने आपको संयोजित करता है।.....पण्डितमरण से मरता जिस पर्वत पर आरूढ होने से प्रपातस्थान दिखाई दे, उसे हुआ जीव अनंत भवग्रहण से अपने आपको विसंयोजित करता गिरि और जहां से प्रपात दिखाई न दे, उसे मरु कहा जाता है। है।..-भ २/४९ नदीतट आदि भुग तथा अश्वत्थ, वट आदि तरु हैं। मरने का स्था २/४१३ में बालमरण के अंतिम दो भेद-वैहायस निश्चय कर इनसे गिरकर मरना गिरिपतन आदि मरण हैं। इन और गृध्रस्पृष्ट विशेष स्थिति में अनुज्ञात हैं। आयारो ८/५८ में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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