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आगम विषय कोश-२
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भिक्षुप्रतिमा
पर भिक्षा करता है। एक व्यक्ति भोजन कर रहा हो, वहां भिक्षा एक कदम भी आगे नहीं चल सकता, फिर वह स्थान चाहे जल ग्रहण कर सकता है, दो, तीन, चार या पांच व्यक्ति भोजन कर रहे हो. स्थल हो. दर्ग हो, वह वहीं रात बिताता है। सर्योद हों, वहां भिक्षा नहीं ले सकता। गर्भवती, बालवत्सा और स्तनपान वह पूर्व, पश्चिम आदि किसी भी दिशा में ईर्यापूर्वक गमन कर कराती हुई स्त्री से भिक्षा नहीं ले सकता। दाता एक पैर देहली के । सकता है। (प्रतिमाप्रतिपन्न के ठहरने के स्थान के संदर्भ में जल भीतर और एक पैर देहली के बाहर कर देहली को विष्कंभित कर का अर्थ है अभावकाश और स्थल का अर्थ है अटवी। अंतरिक्ष से दे तो उससे भिक्षा ले सकता है।
सूक्ष्म अप्काय-जल गिरता है। निग्रंथ को यदि ऊपर से आच्छादित ० गोचरकाल-भिक्षाचर्या के तीन काल हैं-आदि (भिक्षावेला गृह न मिले तो वह सूक्ष्म जलकायिक जीवों की रक्षा के लिए से पूर्व), मध्य (वेला) और चरम (भिक्षावेला अतिक्रांत होने सघन निश्छिद्र वृक्ष के नीचे रहता है, खुले आकाश में नहीं। मार्ग पर)-इनमें से किसी एक काल में भिक्षा करता है।
में यदि वृक्ष के नीचे भी स्थान न मिले तो अभावकाश में भी रह ० गोचराग्र-गोचरचर्या के छह प्रकार हैं-पेटा, अर्धपेटा, गोमूत्रिका, सकता है।-दशा ७/२० की चू, बृभा ३५०९ की वृ पतंगवीथिका, शम्बूकावर्ता, गत्वाप्रत्यागता- इनमें से किसी एक सूक्ष्म स्नेहकाय तीनों लोकों में निरंतर गिरता है और शीघ्र का संकल्प कर भिक्षा करता है।
ही विध्वस्त हो जाता है।-भ १/३१४-३१६) * पेटा आदि का स्वरूप
द्र भिक्षाचर्या
० नींद, उत्सर्ग-वह सचित्तभूमी के निकट न नींद ले सकता है ० प्रवास-वह जिस गांव में कोई जानता हो,वहां एक रात और
और न ऊंघ सकता है। वह मल-मूत्र के वेग को नहीं रोकता। पूर्व कोई नहीं जानता हो, वहां एक या दो रात रह सकता है। प्रतिलेखित स्थंडिल में मल-मूत्र का विसर्जन करता है। ० भाषा-वह चार प्रकार की भाषा बोल सकता है-याचनी. वह सचित्त रजों से स्पृष्ट शरीर से गृहपति के घर भक्त-पान के पृच्छनी, अनुज्ञापनी और पृष्टव्याकरणी।
लिए नहीं जा सकता। ० उपाश्रय-वह आरामगृह में, विवृतगृह (चारों ओर दीवारों से ० प्रक्षालन-वह प्रासुक जल अथवा गर्म जल से हाथ, पैर, दांत, रहित किन्तु ऊपर से आच्छादित घर) में और वृक्ष के नीचे-इन
आंखें तथा मुंह नहीं धो सकता, किन्तु लेपयुक्त अवयव या आहार तीन प्रकार के उपाश्रयों-आवासों का प्रतिलेखन (गवेषणा) कर
से लिप्त मुंह आदि धो सकता है। सकता है, अनुज्ञा ले सकता है और उनमें रह सकता है।
० अभय-वह अश्व, हाथी आदि दुष्ट प्राणियों को सामने आते ० संस्तारक-वह पृथ्वीशिला, काष्ठशिला और यथासंस्तृत (घास
देख एक पैर भी पीछे नहीं हटता। सामने आने वाले तिर्यंच यदि आदिनारक टन तीन पक नारकों का पतिलेखन कर अदुष्ट हों तो वह युगमात्र भूमी पीछे हट सकता है। सकता है, अनुज्ञा ले सकता है, उनका उपयोग कर सकता है।
० धूप-छाया--वह सर्दी अधिक जानकर छाया से धूप में अथवा ० स्त्री-पुरुष-उपाश्रय में स्त्री या स्त्रीसहित पुरुष उसकी ओर गमी अधिक जानकर धूप से छाया में नहीं जाता। इस प्रकार यह शीघ्र आ जाए तो वह उनके कारण निष्क्रमण नहीं कर सकता।
मासिकी भिक्षुप्रतिमा सूत्र के अनुरूप पालित होती है। ० अग्नि-कोई उपाश्रय में आग लगा दे तो वह भिक्षु उससे
द्वैमासिकी भिक्षुप्रतिमा यावत् सप्तमासिकी भिक्षुप्रतिमा निष्क्रमण नहीं कर सकता। यदि कोई दूसरा उसके बाहु पकड़कर
प्रतिपन्न अनगार की समग्र विहारचर्या मासिकी भिक्षप्रतिमा की बाहर निकाले तो उसका आलम्बन नहीं ले सकता किन्तु ईर्यापूर्वक
भांति आचरणीय-अनुपालनीय है। केवल दत्ति-परिमाण में अंतर चल सकता है।
है-द्वैमासिकी में दो दत्ति. त्रैमासिकी में तीन दत्ति, चातुर्मासिकी ० कंटक-मार्ग में चलते हुए उस भिक्षु के पैरों में यदि स्थाण,
में चार दत्ति, पंचमासिकी में पांच दत्ति, पाण्मासिकी में छह दत्ति, कांटा आदि चुभ जाए अथवा आंख में रजकण आदि गिर जाए तो
सप्तमासिकी में सात दत्ति-जितने मास, उतनी दत्तियां। वह उन्हें निकाल नहीं सकता, ईर्यासमितिपूर्वक चल सकता है। ३. आठवीं से बारहवीं प्रतिमा : तप-आसन-स्थान ० विहार-वह भिक्षु जहां सूर्यास्त हो जाए, वहीं ठहर जाता है, पढमं सत्तरातिंदियण्णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अण
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