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आगम विषय कोश-२
भावना
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० मायी-मायावी अपने स्वभाव (अशुभ परिणामों) को छिपाता भवति-गौरवरहितः सन्नतिशयज्ञाने सति निस्पृहवृत्त्या है, दूसरों के विद्यमान गुणों का अपने अभिनिवेश के कारण घात प्रवचनप्रभावनार्थमेतानि कौतुकादीनि कुर्वन्नाराधको भवति करता है (परगुण छिपाता है), प्रच्छन्न पाप करने के कारण चोर उच्चैर्गोत्रं च कर्म बध्नाति, तीर्थोन्नतिकरणाद्। की भांति सबके प्रति सशंक रहता है, मायापूर्ण प्रवृत्ति करता है,
(बृभा १३०८-१३१४ वृ) असत्यभाषी होता है, वह किल्विषी भावना करता है।
जो कौतुक, भूतिकर्म, प्रश्न, प्रश्नाप्रश्न और निमित्त से ० आभियोगी भावना : प्रश्न, प्रश्नाप्रश्न आदि
अपनी आजीविका चलाता है, ऋद्धि, रस और सात का गौरव कोउअ भूई पसिणे, पसिणापसिणे निमित्तमाजीवी। करता है, वह आभियोगी भावना करता है। इडि-रस-सायगुरुतो, अभिओगं भावणं कुणइ॥ . कौतक-इसके अनेक रूप हैंविण्हवण-होम-सिरपरिरयाइ खारदहणाइँ धूवे य। विस्नपन-बालक आदि की रक्षा हेतु अथवा स्त्री के सौभाग्य असरिसवेसग्गहणं, अवयासण-उत्थुभण-बंधा॥ संपादन के लिए विशेष रूप से स्नान करवाना। भूईएँ मट्टियाएँ व, सुत्तेण व होइ भूइकम्मं तु। होम-शांति आदि के लिए अग्निहवन करना। वसही- सरीर- भंडगरक्खाअभियोगमाईया॥ शिरःपरिरय-कर-भ्रमण आदि से अभिमन्त्रित करना। पण्हो उ होइ पसिणं, जं पासइ वा सयं तु तं पसिणं। क्षारदहन-तथाविध व्याधिशमन के लिए अग्नि में लवण डालना। अंगुट्ठच्चिट्ठ-पडे, दप्पण-असि-तोय-कुड्डाई॥ धूप-तथाविध द्रव्ययोगयुक्त धूप करना। पसिणापसिणं सुमिणे, विजासिटुं कहेइ अन्नस्स। असदृशवेष–पुरुष होने पर भी स्त्री का वेष करना आदि। अहवा आइंखिणिया, घंटियसिटुं परिकहेइ॥ ० अवयासण-वृक्ष आदि का आलिंगन करवाना। तिविहं होइ निमित्तं, तीय-पडुप्पन्न-ऽणागयं चेव। अवस्तोभन-अनिष्ट की उपशांति के लिए थुथकारा डालना। तेण न विणा उ नेयं, नज्जइ तेणं निमित्तं तु॥ बन्ध-कण्डे आदि बांधना। एयाणि गारवट्ठा, कुणमाणो अभिओगियं बंधे। . भूतिकर्म-विद्या से अभिमन्त्रित भस्म, गीली मिट्टी या धागे से बीयं गारवरहिओ, कुव्वं आराहगुच्चं च॥ चारों ओर वेष्टन करना भूतिकर्म कहलाता है।
___...'अवयासणं' वृक्षादीनामालिङ्गापनम्, अवस्तो- वसति, शरीर और उपकरण की सुरक्षा तथा ज्वरशमन के भनम्- अनिष्टोपशान्तये निष्ठीवनेन थुथुकरणम्, बन्धः- लिए अभियोग-वशीकरण आदि किया जाता है। यह भूतिकर्म है। कण्डकादिबन्धनम्, एतत् सर्वमपि कौतुकमुच्यते।"अभि- ० प्रश्न/पसिण-इसके दो अर्थ हैंयोग:-वशीकरणम्, आदिशब्दाद् ज्वरादिस्तम्भन-परिग्रहः। १. देवता आदि से प्रश्न पूछना। 'प्रश्नस्तु' देवतादिपृच्छारूप: पसिणं भण्यते, यद्वा यत् 'स्वयम्' २. विभिन्न वस्तुओं में अवतीर्ण देवता आदि को अपने द्वारा तथा
आत्मना तुशब्दादन्येऽपि तत्रस्थाः पश्यन्ति तत् पसिणं तत्रस्थित दूसरे लोगों द्वारा देखा जाना तथा प्रश्न पूछना। प्राकृतशैल्याऽभिधीयते।... उच्चिट्ठ' त्ति कंसारादिभक्ष- अंगुष्ठ, कीटकों द्वारा काटा गया वस्त्र, दर्पण, असि, उदक, णेनोच्छिष्टे पटे..."विद्यया-विद्याधिष्ठात्र्या देवतया... भित्ति, बाहु आदि पर अवतरित देवता आदि को कुछ पूछा जाता है 'आइंखिणिया' डोम्बी तस्याः कुलदैवतं घण्टिकयक्षो नाम"। या देखा जाता है, वह प्रश्न/पसिण है।
"कालत्रयवर्तिलाभाऽलाभादिपरिज्ञानहेतुश्चूडामणि- ० प्रश्नाप्रश्न-स्वप्न में अवतीर्ण विद्या की अधिष्ठात्री देवी के प्रभृतिकः शास्त्रविशेषः..."विवक्षितशास्त्रविशेषेण विना द्वारा कही गई बात को पृच्छक को कहना प्रश्नाप्रश्न है। अथवा 'ज्ञेयं' लाभाऽलाभादिकं न ज्ञायत इति लाभाऽलाभादि- डोम्बी का घंटिकयक्ष नामक कुलदेवता कुछ पूछे जाने पर डोंबी के ज्ञाननिमित्तत्वाद् निमित्तमुच्यते। आभियोगिकं' देवादिप्रेष्य- कान में कुछ कहता है, उसे वह शुभ-अशुभ के बारे में पूछने वाले कर्मव्यापारफलं कर्म बध्नाति। 'द्वितीयम्' अपवादपदमत्र दूसरे व्यक्ति को बता देती है-यह प्रश्नाप्रश्न है।
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