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ब्रह्मचर्य
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आगम विषय कोश-२
का निग्रह किया, वैसे ही क्या सिंहगुफावासी यति ने अपने मन मोह का उद्भव होता है। आहार से रस का उपचय, रसोपचय से का निरोध नहीं किया? निरोध करने पर भी वह सहायक सामग्री रक्त का उपचय, रक्तोपचय से मांसोपचय तथा इसी क्रम से वसा, के प्रभाव में आकर मार्गच्युत हो गया था।
हड्डी, मज्जा और शुक्र का उपचय होता है। शुक्रोपचय से वायुप्रकोप ___कोई मुनि ब्रह्मचर्य की विराधना करने वाले स्थानों में अपने ___ और वायुप्रकोप से प्रजनन अंग स्तब्ध हो जाते हैं। इस प्रकार मन को नियंत्रित करने में सक्षम हो या न हो, फिर भी उसे उन आहार एवं शरीरोपचय से मोहोदय होता है। स्थानों का वर्जन करना चाहिए। जैसे आम्रफल के खाने में दोष ० कल्याण आहार देखने वाले को आम्रवृक्ष की छाया का भी वर्जन करना चाहिए। ......"वाईकरणाऽऽहरणं, कल्लाणपुरोध उज्जाणे॥ १४. सहेतुक-अहेतुक मोहोदय
पणीयाहारो वाजीकरणं दप्पकारकेत्यर्थः। कंपिल्लपुरं कामं कम्मणिमित्तं, उदयो णस्थि उदओ उ तव्वज्जो। णगरं। ब्रह्मदत्तो राजा। तस्स कल्लाणगं णाम आहारो। सो तहवि य बाहिरवत्थं, होति निमित्तं तिमं तिविधं ॥ वरिसेण णिफिज्जति। तं च इत्थिरयणं चक्की य भुंजंति। सह वा सोऊणं, दटुं सरितुं व पुव्वभुत्ताई। तव्वइरित्तो अण्णो जइ भुंजति, तो उम्माओ भवति । पुरोहिओ सणिमित्तऽणिमित्तं पुण, उदयाहारे सरीरे य॥ य तमाहारमभिलसति। "राइणा रूसिएण भणिओ-कल्लं दिद्वीपडिसंहारो, दिटे सरणे विरग्गभावणा भणिता। णातिस्थिवग्गसहिओ णिमंतिओ सि।राइणा उज्जाणेजेमाविओ। जतणा सणिमित्तम्मी, होतऽणिमित्ते इमा जतणा॥ तेहिं मोहुदओ गोधम्मो समाचरितो।एवं पणीयाहारेण मोहदओ छायस्स पिवासस्स व, सहाव गेलण्णतो वि किसस्स। भवति।
(निभा ५७२ चू) बाहिरणिमित्तवज्जो, अणिमित्तुदओ हवति मोहे ॥ प्रणीत आहार दर्पकारक-उन्माद पैदा करने वाला होता है, आहारउब्भवो पुण, पणीतमाहारभोयणा होति।... जिसका उदाहरण है-कल्याण आहार। मंसोवचया मेदो, मेदाओ अट्ठि-मिंज-सुक्का णं। काम्पिल्यपुर में ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती 'कल्याणक' आहार करता सुक्कोवचया उदओ, सरीरचयसंभवो मोहे॥ था। कल्याणक आहार एक वर्ष में निष्पन्न होता है। उसे चक्रवर्ती
(निभा ५१५, ५१६, ५७०-५७३) और स्त्रीरत्न ही पचा सकते हैं । अन्य कोई भी व्यक्ति इसे खाता है संक्लिष्ट भाव का उदय कर्म के निमित्त से होता है, यह तो वह उन्मत्त हो जाता है। एक दिन पुरोहित ने उस आहार की सही है। कर्मोदय के बिना संक्लिष्ट कर्म नहीं होता। बाह्य वस्तु याचना की। राजा ने निषेध कर दिया। पुरोहित के अत्यधिक कर्मोदय में निमित्त बनती है। बाह्य निमित्त के तीन प्रकार हैं- अनुरोध करने पर राजा ने रुष्ट होकर कहा-कल उद्यान में तुम शब्दश्रवण, रूपदर्शन, भुक्तभोगस्मरण।
अपने ज्ञातिजनों के साथ आ जाना। दूसरे दिन पुरोहित अपने विकारयुक्त स्थानों पर दृष्टि पड़ते ही उसको वहां से हटा लेना ज्ञातिजनों के साथ उद्यान में आ पहुंचा। राजा ने सभी को भोजन चाहिए। वासनोत्तेजक शब्द सुनाई देने पर या पूर्वभुक्त भोगों की ___ कराया और पुरोहित को स्वयं के भोजन में से कुछ हिस्सा दिया। समति होने पर वैराग्य भावना से अपने आपको भावित करना चाहिए। पुरोहित ने वह भोजन किया और वह इतना उन्मत्त हो गया कि
बाह्य निमित्तों के बिना आंतरिक कारणों से जो वासना का वासना के तीव्र उद्रेक से अपनी बहिन-बेटियों के साथ भी कुकर्म उदय होता है, उसे अनिमित्तक कहा गया है। उसके तीन प्रकार हैं- कर बैठा। इस प्रकार प्रणीत आहार से मोहोदय होता है। १. कर्मप्रत्ययिक उदय-जो भूख-प्यास से पीड़ित है, जिसका १५. मोहचिकित्सा के विविध उपाय शरीर स्वभाव से या रुग्णता के कारण कृश है, उसके जो मोहोदय निव्विति ओम तव वेय, वेयावच्चे तधेव ठाणे य। होता है, वह शब्द आदि बाह्य निमित्त के बिना ही हो जाता है। आहिंडणा य मंडलि, .......॥ २,३. आहार एवं शरीर प्रत्ययिक उदय-प्रणीत आहार करने से
(व्यभा १६०१)
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