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ब्रह्मचर्य
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आगम विषय कोश-२
सिंहनी के साथ भी पुरुष मैथुन सेवन कर लेता है, फिर शेष पारस्परिक संदर्शन से पहले प्रीति उत्पन्न होती है। प्रीति जातियों की तो बात ही क्या?
से रति (चित्तविश्रांति) पैदा होती है। रति से विश्वास बढ़ता है। एक बार एक सिंहनी की कामवासना उद्दीप्त हो गई। उसे विश्वास से परस्पर कथा करते हुए अप्रशस्त राग उत्पन्न हो जाता सिंह का योग नहीं मिला तो वह किसी सार्थ में से एक पुरुष को है। इन पांच प्रकारों से राग बढ़ता है। उठाकर ले आई। गुफा में प्रविष्ट हुई और उसे चाटने लगी। १०. अब्रह्मचर्य की उत्पत्ति के कारण व्यक्ति ने उसके साथ प्रतिसेवना की। उनमें परस्पर सहज अनुराग
कोहाति समभिभूओ, जो तु अबंभं णिसेवति मणुस्सो। हो गया। वह प्रतिदिन उसे मांस लाकर देती। वह भी उसके साथ
चउ अण्णतरा मुलुप्पत्ती तु सव्वत्थ पुण लोभो॥ प्रतिसेवना करता।
(निभा ३५६) ९. कामवेग के दस प्रकार
क्रोध, मान, माया और लोभ-इन चारों में से किसी भी चिंता य दट्टमिच्छइ, दीहं नीससइ तह जरो दाहो। ,
___कारण से अभिभूत-आर्त व्यक्ति में मैथुन की उत्पत्ति हो सकती भत्तअरोयग मुच्छा, उम्मत्तो न याणई मरणं॥
है। लोभ की उपस्थिति सर्वत्र रहती ही है। पढमे सोयइ वेगे, दटुं तं इच्छई बिइयवेगे। नीससड तयवेगे. आरुहहु जरो चउत्थम्मि॥ ११. मोहोदय : शब्द आदि तुल्य-अतुल्य डज्झइ पंचमवेगे, छठे भत्तं न रोयए वेगे।
नत्थि अनिदाणओ होइ उब्भवो तेण परिहर निदाणं। सत्तमगम्मि य मुच्छा, अट्ठमए होइ उम्मत्तो॥
ते पुण तुल्ला-ऽतुल्ला, मोहनिदाणा दुपक्खे वि॥ नवमे न याणइ किंची, दसमे पाणेहिँ मुच्चइ मणूसो...
रस-गंधा तहिँ तुल्ला, सद्दाई सेस भय दुपक्खे वि। (बृभा २२५८-२२६१)
सरिसे वि होइ दोसो, किं पुण ता विसम वत्थुम्मि॥ स्त्रीदर्शन से मोहजन्य वेग (आवेग-आवेश) उत्पन्न होते
__ (बृभा १०४९, १०५०) हैं। वे दस हैं
मोह का उद्भव निदान (कारण) के बिना नहीं होता। चिन्ता-प्रथम वेग में प्राप्ति की चिन्ता रहती है।
इसलिए निदान (इष्ट शब्द, रूप आदि) का परिहार करो। दिदक्षा-दसरे वेग में वह उसे देखना चाहता है।
मोह के निदानभूत शब्द आदि स्त्रीवर्ग और पुरुषवर्गदीर्घश्वास-तीसरे वेग में दीर्घ निःश्वास छोड़ता है।
दोनों पक्षों में मोह की उत्पत्ति में तुल्य भी हैं, अतुल्य भी हैं। ज्वर-चतुर्थ वेग में ज्वर से पीड़ित हो जाता है।
स्त्री और पुरुष के मोहोद्भव में रस और गंध की समान दाह-पंचम वेग में सारे अंग जलने लग जाते हैं।
भूमिका है। पुरुषसम्बन्धी शब्द, रूप और स्पर्श में पुरुष का अरुचि-षष्ठ वेग में भोजन से अरुचि हो जाती है।
मोहोदय हो भी सकता है, नहीं भी होता। यदि होता है तो उतना मूर्छा-सप्तम वेग में मूर्च्छित हो जाता है।
तीव्र नहीं होता। स्त्रीसंबंधी शब्द आदि में पुरुष का मोहोदय उन्मत्तता-अष्टम वेग में उन्मत्त हो जाता है।
प्रायः होता ही है और तीव्र होना है। जड़ता-नवम वेग में वह निश्चेष्ट हो जाता है।
स्त्री के स्त्रीसंबंधी और पुरुषसंबंधी विषयों में भी यही मरण-दशम वेग में वह प्राणों को छोड़ देता है।
क्रम है। सदृश स्पर्श आदि में भी मोहोदय हो जाता है, तो विसदृश • कामराग-वृद्धि के प्रकार
वस्तु में तो वह होता ही है। संदंसणेण पीई, पीईउ रई रईउ वीसंभो। ० सजातीय का आकर्षण, विजातीय का विकर्षण वीसंभाओ पणओ, पंचविहं वड्डए पिम्मं॥ तत्थऽन्नतमो मुक्को, सजाइमेव परिधावई पुरिसो।
(बभा २२६८) पासगए वि विवक्खे, चरइ सपक्खं अवेक्खंतो॥
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