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ब्रह्मचर्य
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आगम विषय कोश-२
ब्रह्मचर्य-मैथुनविरति, इन्द्रिय-मन-संयम। आत्मरमण। १. द्रव्य-भाव ब्रह्मचर्य * ब्रह्मचर्य : चतुर्थ महाव्रत
द्र महाव्रत २. द्रव्य-भाव मैथुन ३. भाव मैथुन (अब्रह्मचर्य) के प्रकार ४. संवास के प्रकार ५. दिव्य रूप के प्रकार, दिव्य प्रतिमा
० परिगृहीत प्रतिमा और उसके प्रकार
० देवियों के दृष्टांत ६. देवशरीर अचित्त नहीं होता ७. मनुष्य-स्त्री : सुखविज्ञप्या आदि ८. तिर्यंचस्त्री के प्रकार
० तिर्यंच में मैथुन संज्ञा : सिंहनी दृष्टांत ९. कामवेग के दस प्रकार
० कामरागवृद्धि के प्रकार १०. अब्रह्मचर्य की उत्पत्ति के कारण ११. मोहोदय : शब्द आदि तुल्य-अतुल्य
० सजातीय का आकर्षण, विजातीय का विकर्षण १२. मुनि के भी वेदोदय १३. वेदोदय का हेतु : कर्म या सहायक सामग्री?
* तीन वेद : त्रिविध अग्नि से तुलना * वेदोदय में अवस्था प्रमाण नहीं
द्र वेद |१४. सहेतुक-अहेतुक मोहोदय १५. मोहचिकित्सा के विविध उपाय १६ एकांत स्थान : सागारिक शय्यानिषेध
० सदोष वसति : यंत्रप्रतिमा दृष्टांत * सचित्र उपाश्रय में रहने का निषेध
द्र शय्या १७. कामकथा-वर्जन ___ . मां के साथ धर्मकथा का वर्जन |१८. ब्रह्मचर्य का विघ्न : दृष्टिराग
० शब्दराग-रूपराग-वर्जन |१९. अब्रह्मचर्य दुःखशय्या २०. विषय-विराग ही ब्रह्मचर्य २१. ब्रह्मरक्षा हेतु सूत्रों में वैविध्य ____ * ब्रह्मरक्षा हेतु भावना
द्र महाव्रत २२. मैथुनधर्म का अपवाद नहीं २३. ब्रह्मचर्य की तेजस्विता : यक्ष दृष्टांत
१. द्रव्य-भाव ब्रह्मचर्य
दव्वबंभंतं दुविहं-आगमओ नो आगमओ य।आगमओ जाणए, अणुवउत्ते।नोआगमओ जाव वइरित्तं। अण्णाणीणं जो वत्थिसंजमो, जाओ यं अकामिआओ रंडकुरडाओ बंभं धरेंति तं सव्वं दव्वबंभं। भावबंभं दुविहं-आगमओ णोआगमओ य। आगमओ जाणए उवउत्ते। णोआगमओ साहूणं वस्थिसंजमो। वत्थिसंजमोत्ति मेहुणाओ विरती"अहवा सत्तरसविहो संजमो भावबंभं भवति।
(निभा १ की चू) __द्रव्य ब्रह्मचर्य के दो प्रकार हैंआगमतः-ब्रह्मचर्य का ज्ञाता, किन्तु अनुपयुक्त। नोआगमत:-इसके तीन भेद हैं-ज्ञ, भव्य और व्यतिरिक्त।
अज्ञानी का वस्तिसंयम तथा विधवा आदि द्वारा अकामभाव से ब्रह्मपालन द्रव्य ब्रह्मचर्य है। भाव ब्रह्मचर्य के दो प्रकार हैंआगमत:-ब्रह्मचर्य का ज्ञाता और उसमें उपयुक्त। नोआगमत:-साधुओं का वस्तिसंयम-मैथुन से विरति। अथवा पृथ्वीकायसंयम आदि सतरह प्रकार का संयम भाव ब्रह्मचर्य है। २. द्रव्य-भाव मैथुन रूवं आभरणविही, वत्थालंकारभोयणे गंधे। आओज्ज णट्ट णाडग, गीए सयणे य दव्वम्मि॥ जं कट्ठकम्ममादिसु, रूवं सट्ठाणे तं भवे दव्वं । जं वा जीवविमुक्कं, विसरिसरूवं तु भावम्मि॥
(निभा ५०९९, ५१००) मैथुन के दो प्रकार हैं१. द्रव्य मैथुन-रूप, आभरणविधि, वस्त्र, अलंकार, भोजन, गंध, आतोद्य, नृत्य, नाटक, गीत और शयनीय-ये द्रव्य मैथुन हैं।
काष्ठकर्म,, चित्रकर्म अथवा लेप्यकर्म में निर्मित पुरुषरूप और स्त्रीरूप स्वस्थान में (पुरुष के लिए पुरुषरूप और स्त्री के लिए स्त्रीरूप) द्रव्य मैथुन है। २. भाव मैथुन- जीवविप्रमुक्त विसदृश रूप भाव मैथुन है अर्थात् पुरुष शरीर पुरुष के लिए द्रव्य मैथुन है तथा स्त्री के लिए भाव मैथुन है। इसी प्रकार जीवमुक्त स्त्री का शरीर स्त्री के लिए द्रव्य मैथुन और पुरुष के लिए भाव मैथुन है।
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