________________
आगम विषय कोश-२
३६३
पिण्डैषणा
ग्रहण नहीं करता है, वह पिण्डकल्पिक-भिक्षाटन के योग्य है। अलिप्त हाथ या पात्र से गृहस्थ अशन आदि दे-उसे प्रासुक और * उद्गम आदि के दोष द्र श्रीआको १ एषणासमिति
एषणीय मानता हुआ मिलने पर ग्रहण करे। २. पिण्डैषणा-पानैषणा-प्रतिमा
२. द्वितीय पिंडैषणा–संसृष्ट हाथ और संसृष्ट पात्र ।
३. तृतीय पिंडैषणा-उपनिक्षिप्तपूर्वा (उद्धृता)-किसी पात्र से ."सत्त पिंडेसणाओ, सत्त पाणेसणाओ...॥"पढमा
(परोसने के लिए) पहले से ही निकाला हुआ हो, जैसे थाल में, पिंडेसणा-असंसटे हत्थे असंसटे मत्ते-तहप्पगारेण असंसटेण
पिठर में। असंसृष्ट हाथ संसृष्ट पात्र से अथवा संसृष्ट हाथ हत्थेण वा, मत्तेण वा असणं वा..."परो वा से देज्जा–फासुयं
असंसृष्ट पात्र से पात्र या हाथ में निकालकर लाकर दे, उसे लेना। एसणिज्जं ति मण्णमाणे लाभे संते पडिगाहेज्जा.॥
४. चौथी पिंडैषणा-अल्पलेपा-बेर का चूर्ण, चावल या चावल ___ अहावरा दोच्चा पिंडेसणा-संसटे हत्थे संसटे मत्ते...॥
का आटा आदि रूखा आहार लेना। उनके ग्रहण करने पर पश्चात्कर्म अहावरा तच्चा पिंडेसणा........."अण्णतरेसु विरूवरूवसु दोष नहीं लगता तथा तृष आदि पर्यव परिष्ठापनीय नहीं होते। भायण-जाएस उवणिक्खित्तपुव्वे सिया, ते जहा-थालसि पांचवीं पिंडैषणा-उपहत भोजनजात (अवगहीता)-खाने के वा. पिढरंसि वा..."असंसद्रुण हत्थेण संस?ण मत्तेण, सस?ण लिए थाली में परोसा हआ आहार लेना। वा हत्थेण असंस?ण मत्तेण, अस्सि पडिग्गहगंसि वा पाणिंसि
६. छठी पिंडैषणा-प्रगृहीत भोजनजात (प्रगृहीता), जो स्वयं के वा णिहट्ट उवित्तु दलयाहि ।....
लिए प्रगृहीत है, दूसरों के लिए प्रगृहीत है, वह भोजन पात्र में चउत्था पिंडेसणा"मथुवा, चाउलं वा, चाउल-पलंबं स्थित है अथवा हाथ में रखा हुआ है, उसे लेना। वा। अस्सि खलु पडिग्गहियंसि अप्पे पच्छाकम्मे अप्पे पज्ज- ७. सातवीं पिंडैषणा-उज्झितधर्मा-बहुउज्झितधर्मिक भोजनजात वजाए""पंचमा पिंडेसणा..."उवहितमेव भोयणजायं ॥" को जाने-जिसे अन्य बहुत द्विपद (दास), चतुष्पद (पशु), श्रमण, छट्ठा पिंडेसणा... पग्गहियमेव भोयण-जायं..."सयट्ठाए माहन, अतिथि, कृपण और वनीपक नहीं चाहते, उसे लेना। पग्गहियं, जं च परवाए पग्गहियं, तं पाय-परियावन्नं, तंपाणि- पानैषणा के सात प्रकार हैंपरियावण्णं ....॥"सत्तमा पिंडेसणा बहुउज्झिय-धम्मियं १. प्रथम पानैषणा-असंसृष्ट हाथ असंसृष्ट पात्र से पानक लेना। भोयण-जायं जाणेज्जा-जं चण्णे बहवे दुपय-चउप्पय- २! द्वितीय पानैषणा–संसृष्ट हाथ संसृष्ट पात्र। समण-माहण-अतिहि-किवण-वणीमगाणावकंखंति ॥ ३. तृतीय पानैषणा-उद्धृता (उपनिक्षिप्तपूर्वा)।
.."पढमा पाणेसणा-असंसद्धे हत्थे असंसट्टे मत्ते... ४. चतुर्थ पानैषणा-अल्पलेपा-तिलोदक, तुषोदक आदि पानक। दोच्चा पाणेसणा-संसटे हत्थे संसटे मत्ते।"तच्चा पाणेसणा
(द्र पर्युषणाकल्प) उवणिक्खित्तपव्वे""चउत्था पाणेसणा.... पाणग-जायं.... ५. पांचवीं पानैषणा-अवगृहीता-उपहत पानकजात। तिलोदगंवा, तुसोदगंवा ॥ पंचमा पाणेसणा"उवहितमेव ।
पंचसापासणावद्वितमेव ६: छठी पानैषणा-प्रगृहीता-प्रगृहीत पानकजात। पाणग-जायं "छटा पाणेसणा"पग्गहियमेव पाणगजायं ७. सातवीं पानैषणा-उज्झितधर्मा-बहुउज्झितधर्मिक पानकजात। ""सत्तमा पाणेसणा... बहुउझियधम्मियं पाणग-जायं...॥
इन सात पिंडैषणाओं और सात पानैषणाओं में से किसी इच्चेयासिं सत्तण्हं पिंडेसणाणं, सत्तण्डं पाणेसणाणं
प्रतिमा (अभिग्रह) को स्वीकार कर ऐसा न कहे-ये भगवान अण्णतरं पडिमं पडिवज्जमाणे णो एवं वएज्जा -मिच्छा
(साध) मिथ्याप्रतिपन्न हैं, केवल मैं सम्यकप्रतिपन्न हं । मैं और ये पडिवन्ना खलु एते भयंतारो, अहमेगे सम्म पडिवन्ने।"""सव्वे ।
सब अर्हत् की आज्ञा में उपस्थित हैं।
(अलेप, अल्पलेप आदि द्रव्यवेते उ जिणाणाए उवट्ठिया"॥ (आचूला १/१४०-१५५)
० अलेप-ओदन, मण्डक, सत्तू, कुल्माष, चवला, चना आदि। पिण्डैषणा के सात प्रकार हैं
० अल्पलेप-बथुए आदि का शाक, यवाग, कोद्रव, तक्र-उल्लण, १. प्रथम पिंडैषणा-असंसृष्ट हाथ, असंसृष्ट पात्र-देय वस्तु से सूप, कांजी, तीमन आदि।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org