________________
पिण्डैषणा
३६६
आगम विषय कोश-२
उद्देश्य से कृत है, मात्र उसके लिए ही अग्राह्य है, शेष सबके लिए ण केवलं आहाकम्मेण पुढे पूतितं, पूतिएण वि पुढे ग्राह्य है। मध्यम श्रमणवर्ग के लिए कृत वस्तु श्रमणीवर्ग के लिए पूइं।"वत्थे आहाकम्मकडेण सत्तेण सिव्वति थिग्गलं वा ग्राह्य है। शेष सबके लिए अग्राह्य है। चरम में श्रमणवर्ग के लिए देति, पाए वि सीवति थिग्गलं वा देति। (निभा ८०५-८११ चू) कृत चरम श्रमण-श्रमणी वर्ग के लिए अग्राह्य तथा मध्यम के लिए
पूति दोष के दो प्रकार हैं-सूक्ष्म और बादर । ग्राह्य है।
० सूक्ष्मपूति-आधाकर्म आहार पकाते समय ईंधन से धुआं उठता ७. उद्गम का एक दोष : पूतिकर्म
है, उस धुएं से जो वस्तु स्पृष्ट होती है, वह पूतियुक्त है। वा सातिज्जति-तं
इसी प्रकार आधाकर्म आहार आदि के गंध-पुद्गलों अथवा सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घातियं॥ अन्य सूक्ष्म अवयवों से स्पृष्ट वस्तु भी पूतिदोषयुक्त है। जो सूक्ष्म
___ वावण्णं विणटुं कुहितं पूति भण्णति । इह पुण समए प्रति वर्ण्य है, उसका प्रायश्चित्त विहित है। विसुद्धं आहाराति अविसोधिकोटीदोसजुएणं सम्मिस्सं पूतितं ० बादरपूति-इसके तीन प्रकार हैं-आहार , उपधि, शय्या। भण्णति।
(नि १/५६ चू) १. आहारपूति-अशन आदि चार भेद । अथवा इसके दो भेद हैं__ पूती कुहितं, कम्ममिति आहाकम्म, समए तस्यानिष्टत्वात्, ० उपकरण पूति-जो वस्तु पकाने आदि में उपकारक है, वह तत् पूति, तदपि तेन संसृष्टं तदपि पूति, इह तु संसृष्टं परिगृह्यते। उपकरणपूति है। यथा-आधाकर्मिक चुल्ली, थाली आदि में पकाई
(निभा ८०४ की चू) गई या रखी हुई वस्तु पूति है। किसी ने साधु के निमित्त डोय या जो भिक्षु पूतिकर्म युक्त आहार करता है और करने वाले दर्वी बनवाई, वह आधाकर्मिक है। एक नई दर्वी अपने लिए दसरे का अनमोदन करता है, वह गरुमास प्रायश्चित्त प्राप्त करता बनवाई, जिसमें आधाकर्मिक दर्वी का कोई अवयव लगा दिय है। पूति का अर्थ है-व्यावर्ण, विनष्ट या कुथित । जिनशासन में और उसे शुद्ध आहार में डाल दिया- इस मिश्रण से, उपकरणपूति विशुद्ध आहार आदि अविशोधि कोटि के दोष से युक्त वस्तु के के कारण वह आहार कल्पनीय नहीं है। साथ मिश्रित होने पर पति कहलाता है।
० आहारपूति-गृहस्थ ने साधु के निमित्त पत्रशाक किया, नमक पृति और कर्म-पति यानी कथित और कर्म यानी आधाकर्म। सिद्धांत और हींग को पीसा या पकाया। इन आधाकर्मी द्रव्यों को अपने में आधाकर्म को भी अग्राह्य होने से पति कहा गया है। आधाकर्म लिए पकाये जाने वाले भोजन में थोड़ा-थोडा डाल दिया-वह से संसृष्ट को भी पूति कहा जाता है, उसी का यहां प्रसंग है। आहारपूति है। जहां आधाकर्म द्रव्य पकाया, उसको बाहर निकालकर ० पूति दोष के भेद : आहार-उपधि-शय्या
उसी में अपने लिए भोजन पकाया, आधाकर्मिक राई आदि से इंधणधमे गंधे, अवयवमादी य सहमपूईयं। संस्कारित और अग्नि आदि से धूपित द्रव्य में अपने लिए कोई जेसिं तु एत वजं, सोधी पुण विज्जते तेसिं॥ द्रव्य डाल दिया-यह सब आहारपूति है। बादरपूतीयं पुण, आहारे उवधि वसधिमादीसु। केवल आधाकर्म से मिश्रित शुद्ध आहार ही पूति दोष युक्त आहारपूइयं पुण, चउव्विहं होति असणादी॥ नहीं होता, पूति आहार से संस्पृष्ट शुद्ध आहार भी पूति है। अहवाऽऽहारे पूती, दुविधं तु समासतो मुणेयव्वं। २. उपधिपूति-आधाकर्मिक धागे से शुद्ध वस्त्र और पात्र की उवकरण पूति पढम, बीयं पुण होति आहारे॥ सिलाई करना, थेगली लगाना-यह उपधिपूति है। चुल्लुक्खलियं डोए, दव्वी छूढे य मीसियं पूति। ३. शय्यापूति-निर्दोष शय्या में मूल-उत्तरकरण संबंधी आधार्मिक डाए लोणे हिंगू, संकामण फोड संधूमे॥ बांस, काष्ठ आदि का उपयोग करना शय्यापूति है। ...."जावतियं
फासते
पूर्ति॥ (श्रद्धालु गृहस्थ ने आगन्तुक भिक्षुओं के लिए भोजन उवही य पूतियं पुण, वत्थे पादे य होति नायव्वं । .... निष्पादित किया। उस (आधाकर्म) भोजन से दूसरा भोजन मिश्रित वसधी य पूतियं पुण, मूलगुणे चेव उत्तरगुणे य।... हो गया। वह पूतिकर्म भोजन यदि भिक्षु हजार घरों के अंतरित हो
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org