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आगम विषय कोश-२
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प्रतिमा
इस प्रकार यवमध्यचन्द्रप्रतिमा मास के आदि में तन, मध्य यवमध्य-वज्रमध्य-चन्द्रप्रतिमाप्रतिपन्न अनगार एक मास में स्थूल तथा अंत में पुनः तनु हो जाती है।
पर्यंत नित्य व्युत्सृष्टकाय और त्यक्तदेह रहता है। ० वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा-इस चन्द्राकार प्रतिमा में मध्यभाग वज्रमध्य ० व्यत्सष्टकाय-वह वातिक, पैत्तिक और श्लैष्मिक रोग-आतंकों की तरह कुश तथा आदि-अंत भाग स्थूल होता है।
से स्पृष्ट होने पर भी शरीर का किञ्चित् भी परिकर्म नहीं करता। यह प्रतिमा कृष्णपक्ष में प्रारंभ की जाती है। इसमें भिक्षु . त्यक्तदेह-वह शरीर की प्रतिबद्धता से मुक्त होता है। कोई प्रतिपदा को पन्द्रह दत्तियां ग्रहण करता है। प्रतिदिन एक-एक दत्ती उसे बांधता है, निरुद्ध और आहत करता है अथवा मारता है, वह । घटाता हुआ अमावस्या को एक दत्ती ग्रहण करता है। शुक्लपक्ष उसका निवारण नहीं करता। वह उत्पन्न दिव्य, मानुषिक और की प्रतिपदा को दो दत्ती से प्रारंभ कर प्रतिदिन एक-एक दत्ती तिर्यंचयोनिक उपसर्गों को समभाव से सहन करता है। बढ़ाता हुआ चतुर्दशी को आहार-पानी की पन्द्रह-पन्द्रह दत्तियां ___० अनुकूल-परीषह-कोई उसको वन्दना-नमस्कार करे, सत्कारग्रहण करता है। पूर्णिमा को उपवास करता है।
सम्मान करे, कोई उसके कल्याण-मंगल-देव-ज्ञानरूप की पर्युपासना ० चन्द्रप्रतिमाप्रतिपत्ता की अर्हता
करे-वह इनमें गर्व नहीं करता। संघयणे परियाए, सत्ते अत्थे य जो भवे बलिओ। ० प्रतिकूल परीषह-किसी दण्ड, चाबुक आदि से शरीर पर प्रहार सो पडिमं पडिवज्जति. जवमज्यं वडरमज्यं च॥
___ करने पर वह उन सबको सम्यक् सहन करता है।
जैसे वृक्ष वसौले से काटने पर और चन्दन का लेप करने (व्यभा ३८३६)
पर सम होता है, वैसे ही रागद्वेषमुक्त मुनि सुख-दुःख में सम यवमध्य और वज्रमध्य चन्द्रप्रतिमाप्रतिपत्ता की संहनन, पर्याय
रहता है, अनुकूल-प्रतिकूल उपसर्गों को सम्यक् सहन करता है। और श्रुत संबंधी अर्हता एकलविहारी की भांति ज्ञातव्य है।
* उपसर्ग-परीषह
द्र श्रीआको १ परीषह ० चन्द्रप्रतिमाप्रतिपन्न उपसर्ग-परीषहजयी
० आहारग्रहण-विधि, अभिग्रह जवमज्झण्णं चंदपडिम पडिवन्नस्स अणगारस्स मासं ..."अण्णायउंछं सुद्धोवहडं निहित्ता बहवे समणनिच्चं वोसट्टकाए चत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तं माहण-अतिहि-किवण-वणीमगा, कप्पइ से एगस्स भुंजजहा-दिव्वा वा माणुसा वा तिरिक्खजोणिया वा,"अणुलोमा । माणस्स पडिगाहेत्तए, नो दोण्हं नो तिण्हं नो चउण्हं नो ताव वंदेज्जा वा नमसेज्जा वा सक्कारेज्जा वा सम्माणेज्जा वा पंचण्हं. नोगविणीए नो बालवच्छाए नो दारगं पेज्जमाणीए, कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जा, तत्थ पडिलोमा नो अंतो एलुयस्स दो वि पाए साहट्ट दलमाणीए नो बाहिं अण्णयरेणं दंडेण वा कसेण वा काए आउडेज्जा-ते सव्वे । एलुयस्स दो वि पाए साहट्ट दलमाणीए। एगं पायं अंतो उप्पण्णे सम्मं सहेज्जा॥
किच्चा एगं पायं बाहिं किच्चा एलुयं विक्खंभइत्ता एवं वइरमज्झण्णं चंदपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स मासं दलयइ, एवं से कप्पइ पडिगाहेत्तए॥ (व्य १०/३) निच्चं वोसटकाए चत्तदेहे। (व्य १०/२, ४) पडिमापडिवण्ण एस, भगवं अज्ज किर एत्तिया दत्ती।
वातिय-पित्तिय-सिंभियरोगातंकेहि तत्थ पुट्ठो वि। आदियति त्ति न नज्जाति, अण्णाउंछं तवो भणितो। न कुणति परिकम्मं सो, किंचि वि वोसट्ठदेहो उ॥ दव्वादभिग्गहो खलु, दव्वे सुद्धंछ मे त्ति या दत्ती। बंधेज्ज व रुंभेज्ज व, कोई व हणेज्ज अधव मारेज्ज। एलुगमेत्तं खेत्ते, गेण्हति ततियाएँ कालम्मि॥ वारेति न सो भगवं, चियत्तदेहो अपडिबद्धो॥ अण्णाउंछं च सुद्धं, पंच काऊण अग्गहं । वासीचंदणकप्यो, जह रुक्खो इय सुहदुक्खसमो उ। दिणे दिणे अभिगेण्हे, तासिमन्नतरी य तु॥ रागहोसविमुक्को, सहती अणुलोमपडिलोमे॥
(व्यभा ३८५४, ३८५५, ३८५७) (व्यभा ३८३९, ३८४१, ३८५१) प्रतिमाप्रतिपन्न अनगार शुद्धोपहृत (एक व्यक्ति के लिए
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