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आगम विषय कोश-२
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प्रतिमा
पुनः-पुनः पीछे की ओर देखता है, वैसे ही प्रत्येक सप्तक में हाथ में या पात्र में प्राप्त भोजन भिक्षा है। वही भिक्षा भिक्षादत्तियां परावर्तित होती हैं।
विच्छिन्न रूप में जितनी बार में दी जाती है, उतनी दत्तियां होती हैं। ० दत्तिपरिमाण की करणगाथा, दत्ति-स्वरूप
अव्यवच्छिन्न रूप से एक साथ एक बार में एक धार से उद्दिट्ठवग्गदिवसा, य मूलदिणसंजुया दुहा छिन्ना। जितना आहार या जल दिया जाता है, वह एक दत्ति है। इससे इतर मूलेणं संगुणिया, माणं दत्तीण पडिमासु॥ भिक्षा कहलाती है।
(व्यभा ३७८६)
भिक्षा और दत्ति के चार विकल्प हैंउद्दिष्ट वर्गदिवसों को मल दिनों से संयत कर. तदनन्तर १. एक भिक्षा एक दत्ति-अव्यवच्छिन्न रूप में प्रदत्त भिक्षा। उन्हें द्विधा छिन्न कर मूल दिनों से संगुणित करने पर प्रतिमाओं की।
२. एक भिक्षा अनेक दत्तियां-व्यवच्छिन्न रूप में प्रदत्त भिक्षा। भिक्षादत्तियों का परिमाण निकल आता है। यथा
३. अनेक भिक्षा एक दत्ति-अनेक व्यक्तियों के भोजन को एकत्र सप्तसप्तमिकवर्गदिवस ४९ हैं। इनमें मूल सात दिवस
मिलाकर अव्यवच्छिन्न रूप में दी जाने वाली भिक्षा। जोड़ने पर ५६ तथा इन्हें आधा करने पर २८ होते हैं। २८ को मूल
४. अनेक भिक्षा अनेक दत्तियां-अनेक व्यक्तियों के भोजन को सप्तक से गुणन करने पर २८४७-१९६ भिक्षादत्तियां होती हैं। एकत्र मिलाकर व्यवच्छिन्न रूप में दी जाने वाली भिक्षा।
संखादत्तियस्स णं भिक्खस्स पडिग्गहधारिस्स जावड़यं- ५. मोयप्रतिमा के प्रकार एवं स्वरूप जावइयं केइ अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा तावड़याओ दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं जहा-खुड्डिया चेव ताओ दत्तीओ वत्तव्वं सिया, तत्थ से केइ छव्वेण वा दूसएण मोयपडिमा महल्लिया चेव मोयपडिमा॥ वा वालएण वा अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा
i मोयपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पड़ वि णं सा एगा दत्ती "तत्थ से बहवे भुंजमाणा सव्वे ते सयं से पढमसरदकालसमयंसि वा चरिमनिदाहकालसमयंसि वा पिंडं अंतो पडिग्गहंसि उवित्ता दलएज्जा, सव्वा वि णं सा बहिया गामस्स वा जाव सन्निवेसस्स वा वणंसि वा वणएगा दत्ती"॥
(व्य ९/४२) विदुग्गंसि वा पव्वयंसिवा पव्वयविदग्गंसिवा।भोच्चा आरुभड हत्थेण व मत्तेण व, भिक्खा होति समजता। चोदसमेणं पारेइ।अभोच्चा आरुभइ सोलसमेणं पारे॥ दत्तिओ जत्तिए वारे, खिवंति होंति तत्तिया॥ महल्लियण्णं मोयपडिम पडिवन्नस्स अणगारस्स...." अव्वोच्छिन्ननिवाताओ, दत्ती होति उ वेतरा। भोच्चा आरुभइ सोलसमेणं पारेइ।अभोच्चा आरुभइ अट्ठारएगाणेगासु चत्तारि, विभागा भिक्खदत्तिसु॥ समेणं पारेइ॥
__ (व्य ९/३९-४१) एगा भिक्खा एगा, दत्ति एग भिक्खऽणेग दत्ती उ। ___ मोयप्रतिमा के दो प्रकार हैं-क्षुल्लिकामोयप्रतिमा (लघु णेगातो वि य एगा, णेगाओ चेव णेगाओ॥ प्रस्रवणप्रतिमा) और महती मोयप्रतिमा।
(व्यभा ३८११-३८१३) क्षुल्लिकामोयप्रतिमाप्रतिपन्न अनगार प्रथम शरदकाल अथवा संख्यादत्तिक (दत्तियों की संख्या का अभिग्रह करने वाले) चरम निदाघकाल में गांव यावत् सन्निवेश के बाहर, वन, वनविदुर्ग, पात्रधारी भिक्षु को कोई गृहस्थ जितनी बार झुकाकर पात्र में भिक्षा पर्वत या पर्वतविदुर्ग में रहता है। यह प्रतिमा खाकर प्रारंभ की देता है, उतनी दत्तियां होती हैं। कोई दाता भिक्षपात्र में टोकरी. जाती है तो छह दिन के उपवास वस्त्र या बालों से बनाए हुए साधन से एक बार में एक साथ जितनी सात दिन के उपवास से पूर्ण होती है। भिक्षा देता है, वह सारी एक दत्ति होती है।
महती प्रस्रवणप्रतिमा की विधि क्षल्लिकाप्रस्रवण प्रतिमा के खाने वाले व्यक्ति बहत हैं, वे अपने-अपने भोजन में से समान ही है। केवल इतना अन्तर है कि जब वह खाकर आरंभ निकालकर इकट्ठा कर एक बार में एक साथ जितना पिंड देते हैं, की जाती है, तब सात दिन के उपवास से, अन्यथा आठ दिन के वह सब एक दत्ति है।
उपवास से पूर्ण होती है।
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